हिंदी दुनियाभर में अपना साम्राज्य स्थापित कर रही है। देश में इसे बढ़ावा देने और इसे अपनाने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हेतु सरकारें और हिंदी से जुड़े संगठन भरपूर भूमिका निभा रहे हैं। उसके बावजूद नगर के बीचो बीच पटेल नगर स्थित राजश्री पुरुषोत्तम दास टंडन हिन्दी भवन की जो वर्तमान स्थिति है और रखरखाव है वो शर्मनाक तो है ही जिम्मेदारों की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठाता है। क्योंकि पूर्व में एक नेता जी जैन साहब इससे जुड़े तो उन्होंने यहां भैंस पालने और भूसे के ढेर लगवाना गोबर पथवाना नागरिकों के अनुसार शुरू कर दिया था। बाद में शहर की अनेकों संस्थाओं में पदों पर आसीन और वर्तमान में ऋषभ एकाडेमी के अध्यक्ष दिनेश जैन इसके अध्यक्ष बने लेकिन स्थिति में सुधार और हिंदी भवन की गरिमा कम ही होती चली गई। तब जिम्मेदारों द्वारा सोचा गया कि इसका रखरखाव और सुरक्षा के लिए सिविल डिफेंस का ऑफिस यहां खुलवाया दिया जाए। वो खुला तो लेकिन हिंदी भवन की कायाकल्प तो नहीं हुआ लेकिन जगह जरूर कम हो गई। बीच में महिला नेत्री रवि मोहन को रहने के लिए यहां जगह दी गई कि शायद उनके यहां रहने से कुछ सुधार होगा लेकिन ज्यो ज्यो दवा की मर्ज बढ़ता ही गया के समान हिंदी भवन की अरबो रूपये की संपत्ति खुर्द बुर्द होती रही। जली कोठी के कबाड़ियों और अन्य लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए इसमें जगह भी बनाई लेकिन काम कुछ नहीं किया। अब कारण कोई भी हो पटेल नगर स्थित जिस स्थान पर हिन्दी भवन बना था, वह अगर देखा जाये तो आज अरबों रूपए की सम्पत्ति है, लेकिन अधिकारी और जनप्रतिनिधि इस जमीन को संज्ञान में नहीं ले रहे है। और इसके लावारिश के रूप में डाल रखी है। जिसकी वजह से इस जमीन पर आसपास के लोग अवैध कब्जा कर रहे हैं। अधिकारी चाहें तो यहां पर फिर से पुस्तकालय शुरू करा सकते हैं या किसी भी विभाग का कार्यालय बन सकता है, लेकिन अधिकारियों ने एक प्रकार से इस जगह पर वही के लोगों को कब्जा करने के लिए छोड़ दी और साथ ही इस भवन की तरफ जाकर देखते तक नहीं है, अगर उधर से अधिकारी निकलते भी है तो आंखें बन्द करके चले जाते हैं।
करीब 50 वर्ष पुराना पटेल नगर स्थित राजश्री पुरुषोत्तम दास टंडन हिन्दी भवन कागजों में सिमटकर रह गया। जिसको अब कोई देखना वाला ही नहीं है। जबकि कई बार अधिकारी इसकी जांच करने आए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं कर सके। कई एकड़ में बने इसके परिसर में एक विशाल पुस्तकालय हुआ करता था। जहां शहर के लोग अपनी जरूरत की किताब पढ़ने के लिए आया करते थे। जोकि आज सब कुछ टूट गया है और अगर अब देखा जाये तो सिर्फ उसका खाली पड़ा मैदान उस पर भी अवैध कब्जा हो गया या हो जाएगा।
हिन्दी भवन की पहचान सिर्फ और सिर्फ बाहर सड़क पर लगा टूटा बोर्ड है। वह भी हर किसी को दिखाई नहीं देता है। एक समय यह हुआ करता था कि यहां पर सुबह से रात तक पुस्तक पढ़ने वालों का आना जाना लगा रहता था। जब यहां पर एक गार्ड की ड्यूटी लगी रहती थी, जो अब नहीं आता है। वह गेट के बाहर बैठा रहता था और अन्दर किसी को घुसने नहीं देता था।
बताया जाता है कि पुस्तकालय के भवन को तोड़कर कर वहां मैदान बना दिया गया है। उस मैदान मेें वही के रहने वाले व जली कोठी के कबाड़ियों ने अपनी गाड़िया खड़ी करने की अवैध पार्किंग बना दी है। सभी लोग अपने कबाड़ में प्रयोग करने वाले वाहन वही पर खड़े करते हैं। पुस्तकालय के चारों तरफ की बनी दीवार में रास्ता तोड़कर जली कोठी व छतरी वाले पीर की तरफ बनी मार्केट में जाने का रास्ता भी वही के रहने वाले लोगों ने बना लिया बताते हैं।
मेरा मानना है कि माननीय दिनेश जैन जी आदि ईमानदार और सरल स्वभाव के व्यक्ति तो हैं लेकिन अगर वो संगठन को आगे नहीं बढ़ा सकते या उसकी व्यवस्था में सुधार के लिए भूमिका नहीं निभा सकते तो ऐसे अच्छे लोगों को संगठन में पद प्राप्त करने की मंशा का त्याग ही करना चाहिए। क्योंकि कुछ जानकारों का कहना है कि हिंदी भवन के अलावा पूर्व कमिश्नर देवदत्त जी द्वारा बहुसंख्यकों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सूरजकुंड पर पांच नदियों से लाए गए जल से स्नान कराकर अंतिम संस्कार यहां आने वाले मृतकों के लिए व्यवस्था की थी। आदरणीय दिनेश जी उससे भी संबंध है लेकिन वो धार्मिक व्यवस्था पूर्ण रूप से बंद बताई जाती है। इसी प्रकार बीते दिनों ऋषभ एकाडेमी में जो जैन समाज द्वारा संचालित है उनके अध्यक्ष पद पर रहते हुए क्रिकेट एकेडमी से संबंध व्यक्तियों द्वारा ईद पर केक काटा गया जिसके समाचार तमाम अखबारों में छपे। लोगों का कहना है कि जब पद और उसकी गरिमा नहीं संभलती तो उस पर बने रहने का किसी को कोई अधिकार नहीं है। मेरी निगाह में दिनेश जैन जैसे अच्छे और ईमानदार व्यक्ति बहुत कम नजर आते हैं। वो शहर के सामाजिक संगठनों पर पदाधिकारी के रूप में रहे लेकिन अपने पद के तहत आने वाले कार्यो का निस्तारण और संगठन का गौरव व व्यवस्था भी बनाई रखी जानी चाहिए अगर वो ऐसा नहीं करते तो उन्हें स्वयं ही किसी योग्य व्यक्ति जो हिंदी भवन आदि संस्थाओं का उद्धार और सम्मान बना सके उसके हाथों में इस्तीफा देकर इसकी बागडोर सौंप देनी चाहिए।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
मंडलायुक्त जी और डीएम साहब दें ध्यान! पुरुषोत्तम दास टंडन हिन्दी भवन की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन ? दिनेश जी संस्था का सम्मान कायम नहीं रख पा रहे हैं तो पदों से इस्तीफा दे दीजिए
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