asd डीएम ने गौशालाओं को दान देने की अपील के साथ ही यह जो संदेश दिया कि डिग्री लेने से बेहतर है बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाना ?

डीएम ने गौशालाओं को दान देने की अपील के साथ ही यह जो संदेश दिया कि डिग्री लेने से बेहतर है बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाना ?

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कुछ ही समय में निष्पक्ष कार्यप्रणाली व काम के प्रति समर्पण एवं जनसमस्याओं का प्राथमिकता से निस्तारण करने के लिए अलग पहचान बनाते जा रहे प्रशासनिक कार्यों में दक्ष और काम न करने वालों पर सख्त रवैया अपनाने में लगे मेरठ के जिलाधिकारी डॉ. वीके सिंह ने दैनिक जागरण आईनैक्सट समाचार पत्र के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि डिग्री लेने से बेहतर है बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाना। डीएम की बात अगर ध्यान से सोचें तो सही और समाजहित बच्चों के स्वर्णिम भविष्य में प्रेरणा स्त्रोत कही जा सकती है। क्योंकि हम बच्चों को बढ़िया स्कूलों में पढ़ाने और उनके खर्चे उठाने में अपनी आर्थिक स्थिति खराब करते चले आ रहे हैं। स्कूल अपना रिजल्ट श्रेष्ठ दिखाने के लिए बच्चों को जो नंबर की दौड़ में शामिल कर रहे हैं। उससे भविष्य कितनों का सुधरेगा वो तो एक अलग बात है लेकिन मां बाप पर आर्थिक बोझ और बच्चों का मानसिक विकास इस दौड़ में कुंद हो रह है। इसलिए बच्चे जरा सी डांट पर आत्महत्या करने के लिए तैेयार हो जाते है। मेरा मानना है कि सब स्कूल अच्छे है। अभिभावकों की इनकी चमक धमक में ना फंसकर अपने बच्चों को ऐसे स्कूल में पढ़ाना चाहिए जहां उनका मानसिक शारीरिक विकास हो । नंबर चाहे 60 प्रतिशत ही आए। क्योंकि बड़े बड़े विज्ञापन छपवाकर मोटी फीस लेकर आयोजनों को प्रायोजित कर जो झूठी शान दिखा रहे हैं। उससे रिजल्ट नहीं सुधरता। अगर सुधरता है तो फिर यह 40 प्रतिशत वालों को दाखिला देकर 80 प्रतिशत कराए। यह उनके लिए संभव नहीं हैं क्योंकि यह पहले ही 70 से 75 प्रतिशत अंकों वाले बच्चों को दाखिला देते हैं और फिर 85 प्रतिशत होने पर अपनी पीठ थपथपाते हैं।
इसलिए गौशालाओं को दान देने और गायों को रहने खाने का अच्छा माहौल मिले इसके लिए जो उनके द्वारा कहा गया कि डिग्री लेने से बेहतर है बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाना वो अभिभावकों के लिए अच्छा संदेश दे सकते हैं। कुछ समय पहले एक एसडीएम ने अपने बच्चे का प्रवेश सरकारी स्कूलों में कराया और अब ज्यादातर देखने को मिलता है कि बड़े घरों के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ते नजर आते हैं और पास भी होते है। कितने ही व्यापारी और उद्योगपति है तो कुछ बड़े अफसर। सरकारी सेवा भी करते देखे जाते है। इसलिए चमक धमक वाले स्कूलों के पीछे ना भागकर बच्चों का भविष्य सुधारें और उन्हें रिश्तों का आदर करने वाला बनाएं तो मुझे लगता है कि आए दिन जो कत्ल कर रहे हैं ऐसी घटनाओं में भी कमी आएगी। चमक धमक के पीछे भागने की दौड़ का भी यह नतीजा हो सकता।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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