पूर्व सीएम बसपा सुप्रीमो मायावती हमेशा किसी भी मुददे पर तुरंत निर्णय लेने और उसे लागू करने में विश्वास रखने वाली राजनेता कहलाई जाती है चाहे वह मुख्यमंत्री रही हो या बसपा मुखिया। कुछ मामलों में हमेशा यह रहा कि वो कब क्या निर्णय लेंगी क्या नहीं यह उनके निकट सूत्र भी आसानी से नहीं समझ पाते। अभी पिछले दिनों अपने भतीजे आकाश आनंद को उन्होंने बसपा का उत्तराधिकारी बनाकर जिस तरह सबको चौंकाया था उसी प्रकार से बीते दिनों उन्हें इस पद से हटाने का निर्णय लेकर सबको चौंका दिया। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि उनकी पार्टी के मामले में कोई भी फालतु दखलअंदाजी करने की कोशिश ना करें अपने घर को संभाले। बताते हैं कि पहले चरण में यूपी में आकाश आनंद की 21 सभाएं लगाई गई थी जिनमें से 16 सभाएं वो कर चुके थे। 28 अप्रैल को सीतापुर और लखनऊ के मोहनलाल गंज में सभाएं थी जिसमें सीतापुर के बाद लखनउ का कार्यक्रम रद कर दिया गया। पिछले लोकसभा चुनाव में कुछ इसी प्रकार से अपने भाई आनंद कुमार को पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से हटा दिया था। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि आकाश आनंद को हटाकर मायावती ने सहयोगियों को एक ऐसा संदेश दिया है जो समझदार के लिए काफी है। लेकिन एक बात विशेष रूप से कही जा सकती है कि एक समय में जिस प्रकार से मायावती के भाषण को सुन मतदाताओं के हर वर्ग में एक जोश की लहर दौड़ जाती थी और समर्थकों का रूझान उनके प्रति बढ़ता था उसी प्रकार आकाश आनंद की 16 सभाओं में जो संबोधन इस युवा नेता द्वारा किया गया उससे पार्टी के युवाओं में जोश बढ़ता जा रहा था और कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि इस चुनाव में 18 साल के मतदाता बने नौजवानों का रूझान आकाश आनंद के प्रति बढ़ा था जो एक बसपा के लिए लाभ का सौदा बना था। कुछ मीडिया वालों का यह भी मानना है कि आकाश आनंद का यही बढ़ता कद पार्टी मुखिया के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा था। इसे परिवारवाद ना पनपने देने और विरोधी दलों के आरोपों को सिरे से नकारने की रणनीति भी इस निर्णय को माना जा सकता है। अब मायावती परिवार वाद के आरोप को खारिज कर भाजपा पर राजनीति में हमलावर हो सकती है। तथा आकाश का जो बढ़ता कद था वो कैडर की राजनीति में समाहित कर उसे और मजबूत बनाया जा सकता है।
लेकिन लखनऊ के राजनीतिक गलियारों में चर्चा के अनुसार भले ही आकाश आनंद को नेशनल कोर्डिनेटर के पद से हटा दिया गया हो लेकिन आकाश आनंद ही अनकहे रूप से संभालेंगे मायावती की सियासी विरासत। अगर ध्यान से सोचें तो इसमें गलत भी नजर नहीं आता है क्योंकि युवाओं को लुभाने की ताकत आकाश आनंद में नजर आई। पार्टी की रणनीति और बसपा सुप्रीमों की सोच के अनुसार ढलकर वो बसपा का जनाधार जोड़े रखने में सक्षम हो सकते हैं। इस बात को इससे भी बल मिलता है आकाश आनंद को पद से हटाया गया है लेकिन उनके पिता पद पर बने रहेंगे। इसे देखकर कोई भी कह सकता है कि कोई भी नाराजगी है वो दूर हो सकती है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
आकाश आनंद ने थोड़े समय में बसपा के युवा समर्थकों में अपनी अलग पहचान बनाई
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