देश के धार्मिक स्थलों पर जो अपार धन संपत्ति है और उसे लेकर जो मामले सामने आ रहे हैं और अधिकारी पकड़े जा रहे हैं उसे ध्यान में रखते हुए अब यह जरुरी हो गया है कि श्रद्धाभाव से दान देने वालों और सामान का सदुपयोग भगवान से संबंध कार्यो में होने के साथ ही अब जनहित में किए जाने की मांग उठ रही है। अभी पिछले दिनों बांके बिहारी मंदिर के खजाने के संदूक खाली मिलने और ५४ साल बाद भी माहौल साफ सुथरा होने से संदेह उत्पन्न हुए। खबरों के माध्यम से जनता के बीच आने पर चर्चा भी खूब चल रही है। अभी उनकी सुर्खियां मंदी भी नहीं हुई थी कि २०१९ में मुख्य आरोपी उन्निकृष्णन पोटी ने मुख्य द्वार पालकों की तस्वीर को इलेक्ट्रोप्लेटिंग करने का प्रस्ताव टीडीबी को भेजा था। उस प्रस्ताव को बाबू हरिप्रसाद ने देवास्वोम कमिश्रर के पद पर कार्यरत थे और सोने की प्लेटों को तांबे का बताया गया था। दोबारा उक्त प्रस्ताव भेजने पर पोटी को निलंबित किया गया। बाबू हरिप्रसाद डिप्टी कमिश्नर के पद पर कार्यरत थे। कर्मचारियों की भूमिका पर संदेह जताए जाने पर पोटी की लापरवाही पर एसआईटी ने मुख्य आरोपी उन्निकृष्णन पोटी को गिरफतार किया था और अब सबरीमाला से सोना चोरी में मुरारी को गिरफ्तार किया है। उन्हें उनके घर से हिरासत में लिया गया। इससे पहले भी बड़े धार्मिक स्थलों में रखे गए खजाने को लेकर कई प्रकार की चर्चाएं चलती रही हैं।
मैं यह तो नहीं कहता कि प्रबंध समितियों या पंडे पुजारियों ने कोई घोटाला किया होगा लेकिन बिना किसी आधार के इतने बड़े मामले ना तो खुलकर आते हैं और ना किसी को आरोपी बनाया जाता है। बांके बिहारी और सबरीमाला और बड़े धार्मिक स्थलों में अनियमितता के मामले मिल चुके हैं। उन्हें देखकर मैं किसी पर कोई आरोप तो नहीं लगा रहा हूं और ना ही किसी को वित्तीय अनियमितताओं का दोषी मानता हूं कि स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े उत्तरी भारत के प्रसिद्ध मेरठ के काली पलटन मंदिर जिसमें भक्तों के अनुसार दिल खोलकर धन संपत्ति या अन्य कीमती वस्तुएं लोग दान देते हें वो किस स्थिति में कहां रखी जाती हैं तथा खजाने में कितनी धन संपत्ति होगी शायद यह किसी को पता नहीं है। ५० साल से मैं भी हर क्षेत्र में सक्रिय हूं लेकिन कभी यह नहीं सुना कि मंदिर की प्रबंध समिति द्वारा आय व्यय और मौजूद धन का सार्वजनिक खुलासा किया हो। जिस प्रकार पांच अंगुली समान नहीं होती उसी प्रकार हर आदमी की सोच भी समान नहीं होती। पांच दशक पूर्व पत्ता मोहल्लें में रहने वालों के द्वारा काफी कुछ कहा जाता था लेकिन उनके बाद कोई नहीं बोलता। मुझे लगता है कि मंदिर समिति के पदाधिकारी जिनकी समाज में छवि अच्छी है उन्हें उसे कायम रखने हेतु मंदिर के खजाने की किसी प्रशासनिक अधिकारी की देखरेख में छानबीन कर भक्तों को उससे अवगत कराया जाए कि कितना हीरा जवाहररात और सोना चांदी व बैंकों में धन जमा है और उसकी देखभाल कैसे होती है और खर्च की क्या शर्ते हैं। कई बार मंदिर समिति के अध्यक्ष की निरंकुश कार्यप्रणाली की चर्चा करते हुए कई लोग बहुत कुछ कह जाते हैं। सबको सही नहीं माना जा सकता लेकिन जब कुछ बोल निकले थे तो गलत भी नहीं कह सकते। शिवरात्रि पर मंदिर में भंडारा करने वालों से भी दस हजार की पर्ची काटे जाने की बात निकलकर सामने आई। एक दिन में कईभंडारे होते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि मंदिर कमेटी भक्तों से धन उगाही का कोई मौका नहीं छोड़ती है अगर यह बात सही है तो मंदिर कमेटी को प्रशासनिक अधिकारियों से वार्ता कर सांसद, कैंट विधायक और पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों व्यापार कर और आयकर के अधिकारियों व मंदिर कमेटी के सदस्यों की देखरेख में खजाने की जांच होनी चाहिए। कोई किसी पर आरोप नहीं लगा रहा है लेकिन भक्तों को इतना अधिकार तो है ही कि उनके ईष्टदेव को जो चढ़ावा चढ़ाया जाता है उसका रखरखाव कैसे होता है और वर्तमान समय में मंदिर निर्माण से अब तक कितना पैसा सोना चांदी जमा है और हर साल चुनाव से पहले कमेटी उसका सार्वजनिक प्रकाशन कराए।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

