आये दिन विभिन्न विभागों के अधिकारी कहीं प्रतिबंध के नाम पर तो कहीं हो रहा है नुकसान या फैल रही है बिमारियां आदि शब्द दोहराकर नागरिकों और खासकर व्यापारियों का मानसिक सामाजिक व आर्थिक उत्पीड़न करने का कोई मौका नहीं चूक रहे है। पाठक अवगत है कि हर वर्ष होली दीवाली दशहरा जैसे बड़े धार्मिक पर्वों पर खानपान में मिलावट के नाम पर खूब छापेमारी होती है। कहीं रसगुल्ले तो कहीं मावा कुछ तादाद में जमीनदोज कर दिया जाता है एक दो मामले जांच के लिए भेज दिये जाते है ऐसे में क्या होता होगा दोषी दुकानदारों और संबंधित अफसरों के बीच यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। इसी प्रकार आये दिन नगर निगमों सहित स्थानीय निकायों के अफसरों के बने दल सड़को पर निकल आते है और सिंगल यूज प्लास्टिक बेचने सामान देने या उपयोग करने के नाम पर सामाजिक व आर्थिक उत्पीड़न कर व्यापारी को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है। ऐसा ही हर वर्ष कहीं पटाखों का जखीरा इक्ट्ठा करने तो कहीं अवैध रूप से बनाने या बेचने के नाम पर तीज त्योहार से पूर्व छापेमारी की जाती है। कहीं थोड़े बहुत पटाखे पकड़े दिखाकर मामले को समाप्त करने की कोशिश की जाती है। इस दीपावली से पूर्व एक खबर पढने को मिली थी जिसमें व्यापारी का कहना था कि बिना किसी कार्रवाई के पटाखे उठाकर ले गये पीड़ित व्यापारी व उपभोक्ता जो सेटिंग व गेटिंग की बात करते है वो अलग है।
मेरा मानना है कि नागरिक व समाज के हित में सरकार और जिम्मेदार अफसरों को हर कदम उठाना चाहिए और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी करें। मगर सवाल यह उठता है कि यह त्योहारों के मौके पर ही क्यों होता है। सरकार ने हर जिले में सैम्पल भरने और मिलावट रोकने के लिए विभाग खोल रखे है और उनमें अधिकारी भी तैनात किये गये है। तो यह अधिकारी जब तनख्वाह 12 महीने लेते है तो नागरिकों के स्वास्थ से होने वाले खिलवाड़ को रोकने के लिए पूरे वर्ष नामचीन हो या छोटा बड़ा कोई भी संदेह के नाम पर बिना उत्पीड़न किये कार्रवाई करे तो यह विश्वास से कहा जा सकता है कि त्योहारों के मौकों पर मिलावट रोकने में सफलता मिल सकती है। इसी प्रकार सिंगल यूज प्लास्टिक गलत है तो छापेमारी करने और व्यापारियों के उत्पीड़न की बजाए इसका और आतिशबाजी के उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाता। आज हम बहुत खुश है कि ग्रीन पटाखे चलाने की अनुमति मिल गई लेकिन इसकी आड़ में व्यापारियों का जो आर्थिक व मानसिक उत्पीड़न हुआ उसका खामियाजा पांच से दस प्रतिशत मुनाफा बढ़ाकर उपभोक्ताओं से लिया। ग्रामीण कहावत खरबूजा छूरी पर गिरे या छूरी खरबूजे पर गिरे कटना तो उसी को है। क्योंकि छापेमारने वालों की तो पांचों अंगुली व सिर कड़ाई में होता है। व्यापारी का जो आर्थिक व मानसिक उत्पीड़न होता है उसकी पूर्ति वो भी महंगे सामान बेचकर कर लेता है। लेकिन घूमाफिराकर सारा बोझ उपभोक्ताओं पर ही क्यों पड़ता हैं। जबकि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी आम आदमी की खुशहाली व उसे सस्ता व शुद्ध सामान उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत है। इस परिस्थिति में कितने ही नागरिकों का मानना है कि आ आदमी के हित में सरकार 12 महीने 20 दिन शुद्धता बनाये रखने के लिए अभियान चलवाये जिससे कोई भी उपभोक्ता के स्वास्थ से खिलवाड़ करने की हिम्मत न जुटा पाए। दूसरे उपभोक्ताओं की आर्थिक मानसिक व सामाजिक स्थिति सही बनी रहे इसके लिए सिंगल यूज प्लास्टिक व पटाखों के उत्पादन की फैक्ट्रियों में पूर्ण रूप से उत्पादन पर प्रतिबंध लगाया जाए। तथा उपभोक्ता सही मायनों में खुशी से त्योहार मनाये और इसके लिए जो इलैक्ट्रानिक फूलझड़ी बम जो बाजार में आ रहे है क्योंकि यह मजा तो उतना ही देते है और प्रदूर्षण नहीं फैलाते। एक बार ले लो तो दादा पौते कहावत के सामान बार बार बजा लो बिना किसी खर्च किये और प्रदूषण फैलाये। अगर लगे फिर भी कि आतिशबाजी होनी चाहिए तो जो मानक है निर्माण के समय उनका पालन कराया जाए और कमी होने पर उपभोक्ता और व्यापारी पर इसका भार नहीं पड़ना चाहिए। फैक्ट्री मालिक पर हो कार्रवाई यह वक्त की सबसे बड़ी आवश्यकता बताई जाती है।
(प्रस्तुतिः- अंकित बिश्नोई राष्ट्रीय महामंत्री सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए व पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी संपादक पत्रकार)
