बढ़ती बीमारियों से बचाव एवं नागरिकों को स्वस्थ रखने हेतु स्वच्छ पेयजल की आवश्यकता देश के हर घर में महसूस की जा रही है। यह बड़े ताज्जुब की बात है कि तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी जी द्वारा जब पहली बार सत्ता संभाली गई थी तो दो अक्टूबर गांधी जयंती के अवसर पर स्वच्छता अभियान की शुरूआत की गई थी। बीते दिनों इस अभियान को चलते दस साल हुए लेकिन कहीं ना कहीं उस अभियान का हिस्सा होने के बाद भी गंगा-यमुना समेत देश की नदियां कुछ नागरिकों के अनुसार प्रदूषित हो रही हैं। इनका पानी पीना तो दूर नहाने लायक भी नहीं है।
आखिर अब तब लगभग 7000 करोड़ रूपये खर्च होने और इसके लिए विभिन्न अभियान चलाने के साथ ही पीएम मोदी का यह मुख्य अभियान होने के बावजूद ऐसा क्यों हो रहा है और नदियों के पानी की गुणवत्ता क्यों प्रभावित हो रही है यह देखा जाना और दोषियों पर कार्रवाई होना समय की बड़ी मांग कही जा सकती है।
लेकिन समाज में आम आदमी से संपर्क होने के चलते जो जानकारियां या बातें सुनने को मिलती है उससे यह लगता है कि एक तो दलों की आपसी राजनीति दूसरा केंद्र और प्रदेश में अलग अलग दलों की सरकार होने के चलते जो वैचारिक व्यवस्थाएं विपरित रूप से हैं वो प्रतिबंध के बावजूद स्थानीय निकाय और नगर निगम समेत अन्य विभागों के नौकरशाहों की लापरवाही उदासीनता और नागरिकों के अनुसार बैंक बैलेंस बढ़ाने और काम को सही ना करने वालों से गठबंधन के चलते सफाई का कार्य प्रभावित हो रहा है। फिलहाल यमुना नदी के दिल्ली में बहने वाले क्षेत्र को लें। यहां उपराज्यपाल वीके सक्सेना जी ने बीते मंगलवार को यमुना नदी का निरीक्षण के दौरान कहा कि उदेशिया घाट को 15 दिन में साफ सुथरा बनाने की कोशिश है तथा 30 जून तक यमुना सफाई का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन यहां दिल्ली का उपराज्यपाल होने के बावजूद निरीक्षण में उनके द्वारा इशारों इशारों में एक बार फिर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की सरकार की तरफ इशारा करते हुए यह दर्शाया गया कि सफाई क्येां नहीं हो पा रही हैं। उनका कहना है कि जिम्मेदार कौन है यह भी तय होगा। निरीक्षण के दौरान की एक तस्वीर भी सोशल मीडिया पर साझा की गई जिसमें यमुना के पानी में बुलबुले उठते दिखाई दे रहे हैं। जहां तक सवाल छठ पूजा का है तो तब तक दिल्ली सरकार घाटों को नहाने योग्य बना देगी लेकिन सही बात तो यही है कि दिल्ली में यमुना को लेकर अरविंद केजरीवाल को ही दोषी क्यों ठहराया जा रहा है। 22 किमी लंबे यमुना किनारे को साफ सुथरा बनाने और नया रूप देने के प्रयास केंद्र प्रदेश सरकार के सहयोग से उपराज्यपाल खुद भी क्यों नहीं कर पा रहे हैं।
मुझे लगता है कि यमुना हो या गंगा जो नदियां प्रदूषित हैं पीने के पानी की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सभी सरकारों को मिलकर इस बारे में काम करना होगा। जहां तक मुझे लगता है पीएम मोदी इस काम के लिए अपना कोई प्रतिनिधि नियुक्त कर उसके माध्यम से इससे जुड़े व्यक्तियों और सरकार के बीच तालमेल बनाने की व्यवस्था बनाकर नदी के जल को पीने और नहाने योग्य बनाएंगे तो यह काम जल्दी हो सकता है क्योंकि चाहे केजरीवाल हो या दिल्ली के उपराज्यपाल सभी पीएम का सम्मान करते हैं और उनका सहयोग करने में पीछे नहीं रहेंगे।
एक खबर के अनुसार दिल्ली में यमुना की कुल लंबाई केवल 22 किलोमीटर है। यह उसकी कुल लंबाई 1370 किलोमीटर का लगभग दो प्रतिशत है। यही दो फीसदी हिस्सा यमुना की कुल गन्दगी का 80 फीसदी हिस्सा पैदा करता है। इस दो प्रतिशत हिस्से की सफाई के लिए केंद्र-दिल्ली सरकार ने पिछले सात सालों में 7000 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि खर्च किया है, लेकिन यमुना के किसी भी हिस्से का पानी पीने और नहाने लायक तो छोड़िए, छूने लायक भी नहीं बताया जा रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यमुना के गंदे पानी में हाथ डालना भी बीमारियों को न्योता देने जैसा है। दिल्ली के साथ साथ इसका सबसे बड़ा नुकसान उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है जिनकी जिंदगी यमुना पर ही आश्रित है।
क्या कहते हैं आंकड़े
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी के एक आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2017-18 से 2020-21 के बीच पांच वर्षों में यमुना की सफाई में जुटे विभिन्न विभागों को 6856.9 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की गई थी। यह धनराशि यमुना में गिरने वाले गंदे पानी के शोधन के लिए दिया गया था। 2015 से 2023 की पहली छमाही तक केंद्र सरकार ने यमुना की सफाई के लिए दिल्ली जल बोर्ड को लगभग 1200 करोड़ रुपये दिए थे। इसमें नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के अंतर्गत 1000 करोड़ रुपये और यमुना एक्शन प्लान-3 के अंतर्गत 200 करोड़ रुपये दिए गए थे।
केजरीवाल सरकार ने किया खर्च
आम आदमी पार्टी ने 2015 में दिल्ली की सत्ता में आने के बाद से 700 करोड़ रुपये यमुना की साफ-सफाई पर खर्च किया है। जल शक्ति मंत्रालय ने एक बयान जारी कर दावा किया था कि उसने 11 प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए अरविंद केजरीवाल सरकार को 2361.08 करोड़ रुपये दिया था। इसका उपयोग यमुना में गिरने वाले गंदे जल को शोधित करने के लिए एसटीपी का निर्माण करना था। इस धन का कितना उपयोग हुआ, यमुना का गंदा पानी बता रहा है।
नमामि गंगे योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने 4290 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत किया था। इस धनराशि से यमुना में गिरने वाले गंदे जल को ट्रीट कर शुद्ध करने के लिए 23 प्रोजेक्ट पर काम किया जाना था। इसकी कुल क्षमता 1840 एमएलडी थी। इसमें 12 प्रोजेक्ट राजधानी दिल्ली में थे, जबकि हिमाचल प्रदेश में एक, हरियाणा में दो और उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर आठ एसटीपी बनाए जाने थे।
क्यों साफ नहीं होती यमुना
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला का कहना है कि केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार को यमुना की सफाई के लिए हजारों करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता दी है, लेकिन अरविंद केजरीवाल सरकार ने यह पैसा अपने झूठे प्रचार पर खर्च किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी के भ्रष्ट शासन के कारण दिल्ली से पैदा होने वाले गन्दे जल को एसटीपी में साफ नहीं किया जा रहा है और इसकी कीमत यमुना और दिल्ली वालों को भुगतनी पड़ रही है।
यमुना पर चलती है हमारी जिंदगी- गोताखोर
यमुना नदी में एक गोताखोर लालमणि ने कहा कि हम यमुना के किनारे काम करने के बाद यहीं बैठकर भोजन करते थे और इसका पानी पीते थे। लेकिन आज यमुना का पानी नहाने लायक भी नहीं बचा है। लेकिन इसके बाद भी अपनी जीविका चलाने के लिए उनके जैसे अनेक लोग इसी यमुना के पानी में काम करते हैं। इसका असर उनके शरीर पर पड़ता है। बीमारी होती है और इलाज पर भारी खर्च करना पड़ता है, लेकिन फिर भी जीवित रहने के लिए वे इस काम को करने के लिए मजबूर हैं।
सभी समझें अपनी जिम्मेदारी
नदी जल अधिकार कार्यकर्ता नवीन जैन के अनुसार यमुना के साफ न हो पाने के तीन कारण बहुत स्पष्ट हैं। केंद्र-राज्य सरकारों के द्वारा दिल्ली में पैदा हो रहे गंदे जल का पूर्ण शोधन न किया जाना और इसको यमुना में गिराया जाना यमुना की गंदगी का सबसे बड़ा कारण है। यदि एसटीपी बनाकर दिल्ली राजधानी क्षेत्र में पैदा हो रहे गंदे जल का शोधन कर इसे यमुना में गिराया जाए तो इसे गंदा होने से बचाया जा सकता है।
नवीन जैन के अनुसार, पूरी दिल्ली में जगह-जगह पर फैक्ट्रियां लगी हुई हैं। इनमें कपड़ों पर रंग चढ़ाने का काम भी होता है। कई अन्य फैक्ट्रियों में रसायनों का निर्माण होता है, लेकिन खतरनाक रसायनों को बिना शोधन किए सीधे यमुना में गिरा देना, इसे रोकने के लिए कोई उपयुक्त मैकेनिज्म का न होना इसकी गंदगी का सबसे बड़ा कारण है।
नागरिक बोध की कमी
यमुना की गंदगी के लिए सबसे बड़ा कारण नागरिकों में अपने कर्तव्य बोध की कमी है। वे पूजा करने के बाद फल-फूल की गंदगी यमुना में गिराने को किसी तरह गलत नहीं समझते। पढ़े-लिखे लोग भी आस्था के नाम पर यमुना को गंदा करते हैं और ऐसा करने में वे कुछ गलत नहीं समझते। नागरिकों में इस सोच की कमी के कारण यमुना की साफ-सफाई सरकारों की प्राथमिकता में भी नहीं आता। यही कारण है कि यमुना कभी साफ नहीं हो पाती।
सिर्फ इस कारण से पवित्र नदियों में बढ़ रही गदगी को उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता। धार्मिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए सरकार के साथ साथ नागरिकों और जल संरक्षण के लिए काम कर रहे लोगों केा मिलकर इस समस्या का समाधान खोजना होगा। क्योंकि जो चल रहा है ठीक है सरकार देखेंगी यह कहकर हम अपनी जिम्मेदारी ने नहीं बच सकते।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सात हजार करोड़ खर्च भी साफ नहीं हो पाई यमुना, पीएम अपनी देखरेख में चलवाएं नदियों की सफाई का अभियान
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