चंडीगढ़ 15 जुलाई। दुनिया के सबसे उम्रदराज मैराथन धावक के रूप में मशहूर फौजा सिंह का 114 साल की उम्र में निधन हो गया। पंजाब के जालंधर के ब्यास गांव में सोमवार दोपहर करीब 3:30 बजे एक वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी। गंभीर चोटों के कारण उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन वहां उनकी मृत्यु हो गई। 1911 में जन्मे फौजा सिंह ने 89 साल की उम्र में मैराथन दौड़ना शुरू किया था। 100 साल की उम्र में उन्होंने कई विश्व रिकॉर्ड बनाए, जिनमें लंदन और टोरंटो मैराथन शामिल हैं।
एक अप्रैल, 1911 को ब्यास गांव में जन्मे फौजा सिंह एक किसान परिवार से थे। अपने माता-पिता के चार बच्चों में वह सबसे छोटे थे।मूलरूप से पंजाब के ब्यास के रहने वाले फौजा सिंह ब्रिटेन में रहते थे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वेटरन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हिस्सा लेकर कई रिकॉर्ड बना चुके थे। वह चंडीगढ़ की रहने वाली 100 वर्ष से अधिक उम्र की वेटरन एथलीट बीबी मान कौर के बड़े प्रशंसक थे। एक कार्यक्रम के दौरान सुखना लेक पहुंचे फौजा सिंह ने कहा था कि लंबी उम्र जीनी है तो रोजाना सैर व व्यायाम करें और जंक फूड से बचें।
फौजा सिंह भारत की उम्रदराज धाविका बीबी मान कौर के प्रदर्शन से बेहद प्रभावित थे। जब भी मान कौर किसी अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स इवेंट में हिस्सा लेने विदेश जाती थीं, खासकर ब्रिटेन तो फौजा सिंह उनसे मिलने जरूर पहुंचते थे। वह एथलेटिक्स ट्रैक पर मान कौर को दौड़ते देख ताली बजाकर हौसला बढ़ाते थे। एक बार जब मान कौर 97 वर्ष की थीं, तो मोहाली में आयोजित एक मैराथन में हिस्सा लेने फौजा सिंह विशेष रूप से ब्रिटेन से चंडीगढ़ आए थे। उस मैराथन में मान कौर ने भी दौड़ लगाई थी। उन्हें अपने से आधी उम्र के धावकों के साथ दौड़ते देख फौजा सिंह ने कहा था…ओ वेखो दौड़ी सरदारनी मान कौर। उन्होंने यह भी कहा था कि हर किसी को मान कौर से प्रेरणा लेनी चाहिए। इस उम्र में भी दौड़ते हुए मेडल जीत रही हैं, यह बेहद काबिल-ए-तारीफ है।
सुखना लेक पर भी दौड़े थे फौजा सिंह
फौजा सिंह चंडीगढ़ के सुखना लेक पर एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे। कार्यक्रम से पहले उन्होंने कुछ देर लेक के किनारे टहलने के बाद ट्रैक पर दौड़ लगाई। जब वह बिना रुके लेक के आधे रास्ते तक दौड़ते हुए पहुंचे तो वहां मौजूद लोग उन्हें देखकर हैरान रह गए। जब लोगों को पता चला कि यह वही फौजा सिंह हैं जो 100 वर्ष की उम्र पार कर चुके हैं तो हर कोई उनसे ऑटोग्राफ लेने के लिए उमड़ पड़ा। वहां उन्होंने अपनी सेहत का राज साझा करते हुए कहा कि इस उम्र में भी वह किसी मशीन पर निर्भर नहीं रहते। वह रोजाना दौड़ते हैं और अपने लगभग सभी काम खुद करते हैं। उन्होंने बताया कि वह अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देते हैं और जंक फूड बिल्कुल नहीं खाते। उनका मानना था कि अगर लंबा और स्वस्थ जीवन चाहिए तो नियमित सैर और व्यायाम करें और जंक फूड से बचें।
साल 2000 में शुरू किया मैराथन करिअर
फौजा सिंह ने अपना मैराथन करिअर वर्ष 2000 में शुरू किया और कुल आठ अंतरराष्ट्रीय मैराथन में भाग लिया। 2011 में उन्होंने टोरंटो मैराथन में भाग लेकर दुनिया का ध्यान खींचा और दुनिया के सबसे बुजुर्ग मैराथन धावक के रूप में प्रसिद्धि हासिल की। हालांकि, उनके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं होने के कारण उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज नहीं हो सका।
20 किमी की दौड़ पूरी कर सबको चौंकाया था
2012 में उन्होंने लंदन मैराथन में 20 किलोमीटर दौड़ पूरी कर एक बार फिर सबको चौंका दिया। साल 2013 में 101 वर्ष की आयु में उन्होंने हांगकांग मैराथन में हिस्सा लेकर अपनी अंतिम पेशेवर दौड़ पूरी की। फौजा सिंह ने एक बार बताया था कि जीवन में एक गहरी व्यक्तिगत क्षति ने उन्हें भीतर से तोड़ दिया था और वह अवसाद की ओर बढ़ने लगे थे। उसी समय उन्होंने लंबी दूरी की दौड़ शुरू करने का निश्चय किया और अपनी इच्छाशक्ति व आत्मबल से लाखों लोगों को प्रेरणा दी।
फौजा सिंह ने अपने जीवन में एक दुखद व्यक्तिगत क्षति के बाद मैराथन दौड़ की ओर रुख किया था। 89 साल की उम्र में एक दुर्घटना में उनकी पत्नी और बेटे की मृत्यु हो गई थी। इस घटना ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया और वे अवसाद से जूझने लगे जिसके बाद उन्होंने लंबी दूरी की दौड़ में शामिल होने का फैसला किया और अपनी दृढ़ता और दृढ़ संकल्प से दुनिया भर के लाखों लोगों को प्रेरित किया।
पांच साल तक चल नहीं सके थे
फौजा सिंह का जन्म 1911 में हुआ था। वह पांच साल की उम्र तक चल नहीं पाए थे। उनके पैर पतले और कमजोर थे। 90 के दशक में वह अपने बेटे के साथ ईस्ट इंग्लैंड के इलफोर्ड शहर में बस गए थे। उन्होंने 89 साल की उम्र में दौड़ को गंभीरता से लिया और कई अंतरराष्ट्रीय मैराथन में भाग लिया।
फौजा सिंह के निधन पर पंजाब के राज्यपाल व चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाबचंद कटारिया ने किया शोक व्यक्त
पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाबचंद कटारिया ने वेटरन एथलीट फौजा सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया है। प्रशासक ने कहा कि फौजा सिंह केवल एक धावक नहीं थे बल्कि वे संकल्प, प्रेरणा और आशा के प्रतीक थे। कटारिया ने बताया कि दिसंबर 2024 में उनके पैतृक गांव से शुरू हुए दो दिवसीय नशा मुक्त-रंगला पंजाब मार्च में उन्हें सरदार फौजा सिंह के साथ चलने का मौका मिला था। उन्होंने कहा कि उस समय भी उनकी ऊर्जा और उपस्थिति ने पूरे अभियान को जोश से भर दिया था। कटारिया ने कहा कि यह बेहद दुखद है कि अपने ही गांव में हुए एक सड़क हादसे में उन्होंने अंतिम सांस ली। फौजा सिंह की विरासत उन सभी के दिलों में जीवित रहेगी, जो पंजाब को नशामुक्त और स्वस्थ बनाना चाहते हैं। कटारिया ने शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी संवेदनाएं उनके परिवार और दुनिया भर में फैले उनके प्रशंसकों के साथ हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।