आए दिन पोता दादा को बेटा बाप को बहु सास हो पति पत्नी को मारने की खबरें अखबारों में पढ़ने और चैनलों पर सुनने को मिलने लगी है। क्योंकि एक तो एकल परिवारों में मुश्किल घड़ी में एक दूसरे को सांत्वना देने और स्थिति सही हो जाएगी का आश्वासन देने वाला कोई नहीं होता। पूर्व में परिवार में कई कई बच्चे होते थे। माता पिता और दादा दादी साथ रहते थे तो किसी समस्या का समाधान बड़ों ने निकाल लिया और कुछ मामला बच्चों ने समाप्त कर दिया। ऐसे में परिवार हंसते फूलते आगे बढ़ते थे। अब ज्यादातर माता पिता को साथ नहीं रखना चाहते और कहीं मजबूरी हो तो दिखावट के लिए लाड प्यार दिखाते हैं लेकिन यह नहीं चाहते कि वह उनके साथ रहे। बच्चे भी अब दो रह गए और सुविधा प्राप्त करने की दौड़ में उच्च शिक्षा के लिए घर से बाहर भेज दिया जाता है या मां बाप इतना दबाव बनाते हैं कि वह पढ़ने के अलावा कुछ नहीं सोचते तो कुछ बच्चे पढ़ाई की आड़ में मां बाप को धोखा देने में पीछे नहीं रहते। कहने का मतलब है कि एकल परिवार एक तो धैर्य समाप्त कर रहे हैं और मुसीबत में कोई साथ नहीं रहता। हर साल की भांति आज 15 मई को हम संयुक्त परिवार दिवस बना रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सब जगह ही एकल परिवार की व्यवस्था बढ़ रही है। यूपी के शाहजहांपुर के घुसगवां गांव के श्याम सिंह का कहना है कि बुजुर्ग कह गए थे कि खुशियां वहीं आती हैं जिस घर में सब साथ रहते है। बताते हैं कि इस गांव में श्याम सिंह के परिवार में चार पीढ़ियों से सब साथ रहते हैं और वर्तमान में 64 सदस्य इस परिवार में एक दूसरे का दुखं बाटने व पालन पोषण में योगदान दे रहे हैं। कोई खेती कर रहा है तो कोई नौकरी। इस कारण परिवार में कोई आर्थिक तंगी नहीं होती क्योंकि खेती से सब कुछ आ जाता है। कुछ कमी रही तो नौकरी वाले बच्चे उसे पूरा करते हैं और परिवार की जिम्मेदारी निभागते हैं। स्मरण रहे कि कुछ दशक पूर्व जब परिवार के सब सदस्य साथ रहते थे तो आत्महत्या करने वालों और खून का रिश्ता भूलकर मरने मारने पर उतारू की घटनाएं कम सुनाई देती थी लेकिन जब से परिवार बिखरने लगे। बच्चे बाहर बसने लगे। बुजुर्ग गांव में ही रह गए। ऐसे में एक दूसरे को ढांढस बंधाने वाला कोई नहीं होता। यह घटनाएं बढ़ती ही जा रही है। विश्व परिवार दिवस हम हर साल मनाते हैं और हो सकता है मेरी निगाह गलत हो लेकिन अलगाव की समस्या परिवारों में बढ़ रही है। कुछ बच्चों और बड़ों को बाहर रहकर एक दूसरे की कमी महसूस होती है तो रिश्तों में गरिमा लौटने लगती है। अभी ऐसा नहीं हो रहा है। मुझे लगता है कि समाज के समझदार बुजुगो। और युवाओं को परिवार की महिलाओं को साथ लेकिर ऐसे प्रयास करने चाहिए कि एकल परिवार की व्यवस्था कम हो और संयुक्त परिवार ज्यादा बढ़ें। बाहर काम करने वाले बच्चे अगर निकट हैं तो सप्ताह माह में एक बार परिवार से मिल सकते हैं। ऐसा नहीं है तो सोशल मीडिया के दौर में हर दूरी समाप्त हो गई है। परिवार के सदस्य एक दूसरे से लैपटॉप या मोबाइल पर बात कर गरिमापूर्ण यादें बनाए रखने में मदद दे सकते हैं। कहने का मतलब है कि संयुक्त हो या एकल दोनों परिवारों में रहने वालों की सोच अच्छी हो। दोनों में प्यार बना रहे इसके लिए किसी ना किसी रूप में आपस में संबंध भी बनाएं रखे जा सकते हैं।
लेकिन इस मामले में परिवार के बुजुर्गों को थोड़ा संयम समझदारी से काम लेना होगा क्योंकि जब बच्चों की शादी होती है तो लड़की वाले उसे कुशल और सर्वगुण संपन्न है। लड़के वाले तनख्वाह अच्छी बताते है। शादी के बाद जब यह झूठ निकलता है तो परिवारों में कलह और नफरत की जो शुरूआत होती है वो भी एकल परिवारों की संख्या के लिए जिम्मेदार कही जा सकती है। बुजुर्गों को अपनी जवानी के किस्सों को भूलकर बच्चे क्या चाहते हैं अगर वह सही है तो उसमें सहयोग करने में पीछे नहीं रहना चाहिए। इससे पोता पोती धेवता धेवती आपसे जुड़े रहेंगे।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
विश्व संयुक्त परिवार दिवस! एकल परिवारों के बढ़ने के लिए युवा ही नहीं घर के बुजुर्ग भी हैं जिम्मेदार, शादियों के समय पेश की गई झूठी तस्वीर बनती है विवादों का कारण
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