केंद्र और कई राज्यों में सत्ता चला रही भाजपा के बड़े नेता हमेशा वंशवाद का विरोध करते हुए कांग्रेस को निशाने पर लेते रहे हैं। लेकिन सही तो यह लगता है कि चाहने के बाद भी ऐसी सोच वाले नेताओं की पूरी चल नहीं रही है क्योंकि पार्टी के कुछ प्रमुख नेताओं द्वारा अपने परिवार के सदस्यों को आगे बढ़ाया जा रहा है तो सहयोगी दलों के नेताओं का भी यही हाल है। अगर हम बात फिलहाल बिहार के सीएम नीतीश कुमार की करें तो वो बीच में एक साल छोड़ लगातार बीस साल से सीएम पद पर आसीन हैं और वह अपनी राजनीति के कई रंग प्रस्तुत कर चुके हैं। कहते हैं कि हुकुमत करने के नए समीकरण उनके द्वारा बनाए गए जिससे बिहार में उन्हीं की सत्ता ज्यादातर बनी रही है।
अब नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों से पहले नीतीश कुमार द्वारा अपने पुत्र निशांत बाबू को आसान तरीके से राजनीतिक क्षेत्र में पहचान दिलानी शुरू कर दी गई बताई जाती है। हमेशा मीडिया से अच्छे संबंध रखने और हर बात का सही जवाब देने के लिए पहचाने जाने वाले नीतीश कुमार जुझारू समझदार नेताओं में गिने जाते हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त नेताओं की श्रेणी में भी शामिल हैं। बिहार के सीएम रहने के साथ साथ वो केंद्र में कई बार मंत्री रहे। इमरजेंसी के दौरान शुरू हुए जेपी आंदोलन में भी उनकी सक्रियता खूब नजर आती थी लेकिन बताते हैं कि चौधरी चरण सिंह द्वारा 70 के दशक में नीतीश कुमार को अपनी पार्टी लोकदल की युवा शाखा का अध्यक्ष बनाकर एक नई पहचान दी गई। दोस्तों भले ही अन्य प्रदेशों के लोग कभी कभी मजे में बिहारियों का मजाक उड़ाते हों मगर यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चंद्रगुप्ता मौर्य और सम्राट अशोक व गया धाम के अलावा अनेको प्रकार की महत्वपूर्ण व्यवस्थाओं से ओतप्रोत बिहार ऐसा प्रदेश है जिसके लोगों की बदौलत हर राज्य में विकास कार्य खेती और उद्योग चलते हैं और उनकी मेहनत के दम पर आगे बढ़ते हैं। इसके अलावा सिविल सेवाओं में यहां के युवाओं द्वारा आगे बढ़कर प्रदेश को एक अलग ही पहचान दिलाई है। जैसा कि बताते हैं कि भले ही बिहार के बारे में लोग कुछ भी कहते हों मगर यहां के लोगों को राजनीति के दांव पेचों को समझने के साथ ही दुनिया में होने वाली घटनाओं का ज्ञान इन्हे होता है। फिलहाल हम बात नीतीश कुमार के बेटे निशांत की कर रहे हैं। अभी तक इतने बड़े राजनेता का पुत्र होने के बाद भी निशांत सुर्खियों में नजर नहीं आते लेकिन अब चुनाव से पूर्व उनके नाम का चर्चाओं में आना इस ओर इशारा करता लगता है कि राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार को लगने लगा है कि अब समय आ गया है बेटे को आगे लाने और राजनीति की एबीसीडी मजबूती से समझाने का। यह तो समय ही बताएगा कि क्या होता है। लेकिन फिलहाल राज्य विधानसभा में भाजपा की 75 सीटें होने के साथ ही जदयू की सीटें 43 से नीचे ना जाएं इसके लिए व्यूह रचना करने के साथ ही वो अपने बेटे को यही समझाना चाहते हैं। नीतीश कुमार की यह खासियत कह सकते हैं कि वो ठेट समाजवादी होने के बाद भी भाजपा से तालमेल रखने और आगे भी इस गठजोड़ को रख अपने पुत्र को राजनीति में सफलता से पर्दापण कराने की तैयारी शायद कर चुके हैं। यह कहने में कोई हर्ज महसूस नहीं होता है कि अगर अपनी भाषा के उपयोग के लिए पूर्व सीएम लालू प्रसाद दुनियाभर में जाने जाते हैं तो नीतीश कुमार भी अपने राजनीतिक दांव पेचों के चलते हमेशा राजनीति के शिखर पर अपनी पहचान बनाने लगते हैं। कुछ नेताओं का कहना है कि जिस भाजपा के साथ तालमेल कर वह शासन चला रहे हैं उसके कारण उनकी पार्टी के रसातल में जाने की संभावनाएं भी बन सकती हैं। राजनीति में कब कौन किस करवट बैठे और क्या निर्णय ले ले यह कोई नहीं कह सकता लेकिन यह पक्का है कि नीतीश कुमार सभी द्वार सत्ता तक पहुंचते के खुले रखते हैं और अपनी वाकपटुता के चलते ही वह समाजवादी होने के बाद भी भाजपा के सहयोगियों में शुमार होते हैं। अब देखना यह है कि राजनीति में गुपचुप सक्रिय हो रहे बेटे का नीतीश कुमार राजतिलक चुनाव से पहले करते हैं या बाद में। और निशांत बाबू पूर्व डिप्टी सीएम रहे तेजस्वी यादव से राजनीति में किस हद तक मुकाबला करने में सफल होंगे। अगर सब कुछ ठीक रहा तो क्या नीतीश कुमार पहले ही चरण में अपने बेटे को राजनीति में मजबूत कर राष्ट्रीय राजनीति के लिए तैयार करने हेतु अपने स्थान पर सीएम के पद पर बैठाना पसंद करेंगे या अभी अपने मार्गदर्शन में राजनीति का कखग पढ़ाकर मजबूत करने में अभी और समय लगाएंगे।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
धीरे से बिहार की राजनीति में प्रवेश करने वाले सीएम नीतीश कुमार के पुत्र निशांत बाबू क्या धमाका करेंगे
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