राजनीतिक दलों में एक व्यक्ति को कई बार उसी पद पर अलंकृत करने की बात तो मानी जा सकती है क्योंकि इस क्षेत्र में सक्रिय लोग काफी कुछ मेहनत कर जानकारियों और उपलब्धियों का जखीरा बनाते हैं जो पार्टी और मिलने वाले पदों को मजबूती प्रदान करता है। लेकिन सरकारी पदों पर एक ही व्यक्ति को दोबारा इस नाम पर कि इनका कार्यकाल बहुत बढ़िया रहा तय समय से ज्यादा नियुक्ति दिया जाना सही नहीं कह सकते। क्योंकि इससे जो अन्य और प्रतिभाएं मेहनत कर आगे बढ़ रही है उनको मिलने वाले मौकों पर कुठाराघात ही कह सकते है। फिलहाल हम बात चौधरी चरण सिंह विवि की कुलपति पद की बात करे तो चर्चा है कि प्रोफेसर संगीता शुक्ला जी द्वारा तीन साल में विवि को रैंकिंग नैक ग्रेडिंग दिलाई और शैक्षिक प्रदर्शन भी अच्छा रहा। इस बात से कोई इनकार नहीं करता लेकिन यह क्या जरूरी है कि इनके बात कोई दूसरा तैनात हो तो वो अच्छा काम नहीं करेगा।
और अगर किसी व्यक्ति की उपलब्धियों को लेकर उसे ही पुराने पद पर तैनाती दिया जाने की परंपरा तो अभी नहीं बनी है लेकिन अगर ऐसा होता है तो फिर केंद्र सरकार को चाहिए कि आरबीआई गर्वनर के पद पर दोबारा से शक्तिकांत दास को ही तैनाती दे दी जाए क्येांकि उनके कार्यकाल में तो देश में सफलता से नोटबंदी का काम हुआ और जीएसटी लागू हुई जो महत्वपूर्ण मुददे कहे जा सकते हैं। और केंद्र सरकार की नीति का प्रमुख अंश भी रहे लेकिन ऐसा ना करके केंद्र सरकार ने उनके स्थान पर संजय मल्होत्रा की नियुक्ति की है। तो फिर जब इतनी बड़ी उपलब्धि के बावजूद केंद्र सरकार आरबीआई के गवर्नर की जिम्मेदारी दूसरे व्यक्ति को दे सकती है तो फिर सीसीएसयू के कुलपति के पद पर दोबारा से संगीता शुक्ला जी का महिमामंडन की चर्चा ही क्यों। यह बात सही है कि उनकी उपलब्धियों को नहीं नकारा जा सकता तो यह भी सही है कि अब भी चौधरी चरण सिंह विवि परिसर में अपनी परीक्षाओं से संबंध कठिनाईयों को लेकर वीसी ऑफिस तक छात्रों को धरना प्रदर्शन क्यों करना पड़ रहा है। चर्चा तो यह भी है कि पूर्व में भी कई विवाद विवि में आए दिन होते रहते हैं और कई मौकों पर तो यहां होने वाले सरकारी कार्यक्रमों और उपलब्धियों को प्राप्त करने के नाम पर जो खर्च हुए उनको लेकर भी चर्चाएं चलती रही। इसकी असलियत तो चर्चा करने वाले और विवि के लोग ही जान सकते है। मैं किसी रूप में वर्तमान कुलपति जिनका कार्यकाल 23 दिसंबर तक है की काबिलियत और ईमानदारी पर तो सवाल नहीं उठा रहा हूं लेकिन अगर एक ही व्यक्ति को बार बार एक पद पर बैठाने की व्यवस्था चलती रही तो बाकी प्रोफेसर दिन रात मेहनत कर उपलब्धियां प्राप्त कर रहे हैं उन्हें मौका कब मिलेगा। जहां तक बात काम को समझने की है तो सरकारी पदों पर किसी की भी नियुक्ति कर दी जाए। उसके सहयोगी उन्हें हर काम समझाने योजना बताने और सफलता से उन्हें लागू करने एवं परिस्थितियों से निपटने के लिए बताने के लिए मौजूद रहते ही है। शिक्षा के क्षेत्र के सम्मानित पद पर संगीता शुक्ला को ही आगे मौका मिलता है या कोई और विराजमान होता है वो तो अब दिसंबर के आखिरी सप्ताह तक मालूम हो पाएगा। लेकिन एक बात जो चर्चित है कि आखिर पुराने की ही तैनाती क्यों। नयों को कब मिलेगा मौका को ना तो झूठलाया जा सकता है ना नजरंअदांज किया जा सकता है। किसकी नियुक्ति होगी यह तो राजभवन को तय करना है मुझे तो लगा कि अपनी बात कहनी चाहिए इसलिए यह सवाल उठा।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सीसीएसयू के कुलपति पद पर संगीता शुक्ला जी ही क्यों, किसी और काबिल व्यक्ति को क्यों ना मिले मौका
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