पिछले कुछ सालों में सभी धर्मों को मानने वालों में काफी जागरूकता आई है। और धार्मिक स्थलों के संचालकों पुजारियों द्वारा भी धर्म स्थलों की गरिमा कायम रखने के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं। जिसके तहत पूर्व में फटी जींस, निक्कर जैसे कपड़े पहनकर मंदिरों में प्रवेश पर कई जगह रोक लगाई गई थी। यहां तक तो सब ठीक था क्योंकि अर्द्धनग्नता धार्मिक स्थलों पर सही नहीं कही जा सकती। मगर आज के एक खबर पढ़ने को मिली कि कुछ मंदिरों के संचालकों और पुजारियों ने व्यवस्था दी है कि दर्शनों के लिए धोती कुर्ता या साड़ी पहनकर आने पर ही मिलेगा प्रवेश। इस संदर्भ में सम्राट पैलेस स्थित राजराजेश्वरी मंदिर में खबर के अनुसार मंदिर के महंत की ओर से एक बोर्ड लगाया गया जिसमें श्रद्धालुओं का मर्यादित वस्त्र पहनकर आने के निर्देश दिए गए। मर्यादित और सम्मानजनक वस्त्र पहनना सही है लेकिन यह तय करना कि धोती कुर्ता और साड़ी पहनकर ही भक्त आएं इसे हिटलर शाही आदेश और भक्तों की भावना पर कुठाराघात ही कहा जा सकता है क्योंकि सलवार कुर्ता पायजामा कमीज पैंट कमीज आदि वस्त्र भी मर्यादा के अनुकुल है। इसलिए इन्हें पहनकर आने वालों को अगर रोका जाता है तो वो आम आदमी के धार्मिक मामलों में मानवाधिकारों पर कुठाराघात ही कह सकते हैं। इसलिए उक्त आदेश लिए जाएं वापस। फटी जींस और अर्धनग्न की श्रेणी में आने वाले वस्त्रों पर रोक लगाना गलत नहीं है। इससे संबंध एक खबर में एक और नजर आ रहा है जिसमें लिखा है कि नियम का पालन करें उल्लंघन करना अपराध है। शिवजी पर जल ना चढ़ाएं केवल दर्शन करें। शिवमंदिर में आना सख्त मना है दीप जलाकर स्टैंड पर ही रखें। रूद्राभिषेक के समय धोती कुर्ता वा साड़ी ही पहने। मुझे लगता है कि उक्त आदेश करने वाले पुजारी को मंदिरों के बाहर 1000 साड़ियां और इतने ही धोती कुर्ता की व्यवस्था करने के साथ साथ महिलाओं पुरूषों को अलग अलग वस्त्र बदलने के लिए 100-200 कमरों की व्यवस्था करनी चाहिए। कुल मिलाकर कहने का आश्य सिर्फ इतना है कि धोती कुर्ता या साड़ी की शर्त किसी भी रूप में उचित नहीं कही जा सकती। इस आदेश पर पुन विचार करें।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
धोती कुर्ता साड़ी ही क्यों पायजामा कुर्ता पहनकर दर्शन करने और रूद्राभिषेक में क्या कमी है
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