बच्चों का पालन पोषण करना और उन्हें समय देते हुए देखभाल करना गलत नहीं है। लेकिन यह सुविधा सिर्फ सरकारी सर्विस करने वाली माता बहनों के साथ ही व्यापार या घरेलू कार्य या निजी क्षेत्र में काम करने वाली शिक्षिकाओं को भी मिलना चाहिए क्योंकि माता बच्चो का प्रेम और जिम्मेदारियां दोनों की एक समान होती है। इसलिए हो सकता है कि मेरा कथन गलत हो लेकिन हर मातृशक्ति को ऐसे मौके पर यह सुविधा प्राप्त होनी चाहिए। खबर के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयागराज के सोनबरसा स्थित विद्यालय में सहायक अध्यापिका की 180 दिन के वेतन सहित मातृत्व अवकाश की अर्जी पर विचार करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने याची को सभी तथ्यों व प्रावधान के हवाले के साथ दो सप्ताह में नए सिरे से मातृत्व अवकाश की अर्जी देने को कहा है। यह भी कहा कि कोई कानूनी अड़चन हो तो यथाशीघ्र याची को सूचित किया जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने रोली पांडेय की याचिका पर उनके अधिवक्ता जैनेन्द्र पांडेय और सरकारी वकील को सुनकर दिया है।
याची का कहना था कि वर्ष 2011 में उसे बेटी हुई तो मातृत्व अवकाश मिला था। इसके बाद वर्ष 2019 में बेटा हुआ, तब भी मातृत्व अवकाश मिला। बेटे की बीमारी से मृत्यु हो गई। अब उसके पास केवल 13 साल की बेटी है। उसने नियमानुसार 180 दिन का मातृत्व अवकाश मांगा तो उसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि याची दो बार मातृत्व अवकाश ले चुकी है। अवकाश में दो साल का अंतर होना चाहिए और कहा कि सेवा काल में तीन से अधिक मातृत्व अवकाश नहीं दिया जा सकता।अवकाश के लिए आवेदन करने वाली बहन की बात मानी जाए मुझे उससे कोई शिकायत नहीं है लेकिन इस बारे में विचार करने वाले उन गरीब महिलाओं को देखें जो आर्थिक तंगी और पारिवारीक समस्याओं के चलते सरकारी नौकरी पेशा महिलाओं से ज्यादा काम करती है और बच्चों को पालने वाला भी कोई नहीं होता ऐसे में इन पर दोहरी मार पड़ती है इसे ध्यान रखते हुए सरकार जिस तरह बिना काम करे कुछ माह की तनख्वाह देती है उसी प्रकार प्राइवेट सेक्टर में कार्यरत महिलाओं को भी इतनी अनुदान राशि सरकार की तरफ से दी जाए जिससे वो सहायिका रखकर बच्चे का पालन कर सके। एक सज्ज्न का इस बारे में कथन कि प्राइवेट और घरेलू कामकाजी महिलाओं के साथ परिवार सास नंद और भाभी होती है तो ऐसा सरकारी नौकरी करने वाली महिलाओं के साथ। जब संविधान के तहत सभी को एक समान न्याय की व्यवस्था है तो इस मामले में सरकारी सेवा वाली महिलाओं के साथ निजी क्षेत्रों में कार्यरत और घरेलू महिलाओं को भी पूर्ण अधिकार मिले क्योंकि परिवारों के हित में काम तो इनके द्वारा भी किया जा रहा है। कई मामलों में तो महिलाएं सुबह से रात तक काम करती हैं और बच्चों को भी पालती है। तो फिर इनकी इस सुविधा में अनदेखी क्यों। सरकार हर महिला के लिए एक अनुदान राशि तय करे और वो ही ऐसी परिस्थितियों में सभी को दी जाए। कुछ इससे वंचित क्यों रहे।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
महिला प्राइवेट क्षेत्र में कार्यरत हो या घरेलू सरकार उसे भी मातृत्व अवकाश के दौरान अनुदान राशि उपलब्ध कराए
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