asd डिप्टी रजिस्टार चिट फंड सोसायटी क्या कर रहे हैं! एनजीओ और संस्थाओं पर कब्जे की बढ़ती प्रवृति, निष्क्रिय होते संगठन, सरकार दे ध्यान

डिप्टी रजिस्टार चिट फंड सोसायटी क्या कर रहे हैं! एनजीओ और संस्थाओं पर कब्जे की बढ़ती प्रवृति, निष्क्रिय होते संगठन, सरकार दे ध्यान

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डिप्टी रजिस्टार चिट फंड सोसायटी के कार्यालय चाहे वह किसी भी जिले में हों उसमें पंजीकृत होने वाली संस्थाओं व एनजीओ की संख्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही है मगर उनमें पद पाने और कब्जा जमाने वालों की मनोवृति के चलते संगठन निष्क्रिय होते जा रहे लगते हैं। क्योंकि कई संस्थाएं तो चुनाव ही नहीं कराती हैं। घर में बैठकर पांच सात लोगों को बुलाकर पदों की बंदरबांट कर ली जाती हैं। जिस कारण सेवा भाव से काम करने वाले नागरिकों का अभाव और मीडिया में अपने फोटो व नाम छपवाने वालों की गिनती इनमें लगातार बढ़ रही है। कुछ संस्थाओं के पदाधिकारी जहां वो सदस्य हैं उनकी मीटिगों में जाकर जो मांग करते हैं कि पुराने सदस्यों की मीटिंग बुलाई जाए। समय से चुनाव कराए जाएं जिन संस्थाओं में वह मंत्री या महामंत्री हैं उनमें यह व्यवस्था वह लागू नहीं करना चाहते।
वर्तमान समय में तो कोई ज्यादा संपत्ति बहुतायत में किसी को दान करने की स्थिति में नहीं है कुछ को छोड़कर लेकिन दशको पूर्व जब समाजसेवा की भावना को ध्यान में रखते हुए हमारे पूर्वजों द्वारा जमीनें दान देकर कॉलेज, अनाथालय मंदिर खुलवाए होंगे तो उनकी जो भावना रही वो अब नहीं है, लेकिन अब उन संस्थाओं में जो व्यक्ति उस समय कुछ रूपये देकर सदस्य बन गए अब वो संस्थाओं के लिए एक प्रकार से उनकी प्रगृति में बाधा बनने लगे हैं। इसलिए पद मिलते ही निष्क्रिय होकर बैठ जाते हैं। मीटिंग में आते नहीं। नए लोगों को मौका नहीं देना चाहते और सदस्य बनाने को तैयार नहीं होते और इसके लिए उनके पास बहुत से कारण है कि लोग कब्जा कर लेंगे इसलिए नए लोगों को नहीं बनाना चाहिए। अब कोई पूछे कि तुम दशकों से बैठे हो संस्था को बर्बाद कर दिया तुम क्या करते रहे। मगर यह भी कोई क्यों पूछे क्योंकि बोलते ही मनमुटाव शुरू हो जाता है और समाज में चर्चा फैला दी जाती है कि फलां व्यक्ति विवाद करता है। इसलिए उसे संस्थाओं से दूर रखों वरना हमारा वर्चस्व समाप्त हो जाएगा।
आश्चर्य की बात यह है कि स्कूल हो या कॉलेज अनाथ आश्रम हो या योग साधना केंद्र अस्पताल जितनी भी संस्थाएं डिप्टी रजिस्टार चिट फंड सोसायटी के कार्यालय में पंजीकृत होती हैं उन्हें नवीनीकरण भी कराना होता है और सबका एक संविधान और उददेश्य पत्र भी पंजीकरण के समय उपलब्ध कराया जाता है और कोई फेरबदल होता है तो नवीनीकरण के दौरान उसकी जानकारी दी जाती है। इस सबके बावजूद लालफीताशाही के चलते और निजी लाभ को ध्यान में रखते हुए डिप्टी रजिस्टार चिट फंड सोसायटी के कार्यालय के अधिकारी व कर्मचारी संस्थाएं क्या गुल खिला रही हैं उस ओर ध्यान देने से बचते हैं। कोई शिकायत हो जाए तो कार्रवाई करने के बजाय अपनी जेब गर्म करने बैंक बैलेंस बढ़ाने की व्यवस्था शुरू कर दी बताई जाती है। कहने का आश्य है कि हमारे पूर्वजों ने समाज को शिक्षित करने के लिए गरीबों व अनाथों को आश्रय देने के लिए जो संस्थाएं बनाई गई थी और उसके लिए जमीन और साधन उपलब्ध कराए गए थे वो वर्तमान में करोड़ों अरबों के हो चुके हैं लेकिन कुछ लोगों की कब्जा जमाउ नीति और औरों को अंदर ना देने की सोच के चलते संस्थाएं निष्क्रिय होती जा रही हैं। लगभग 40 हजार गज की संस्था में दानवीर द्वारा एक मंदिर भी बनवाया गया था। अब 20 साल बाद पहली बार संस्था सचिव की मेहरबानी से उसमें पूजा शुरू हुई वरना पदाधिकारियों और सदस्यों ने बैठक के अलावा कुछ नहीं किया। यह आम आदमी को यह सोचने के लिए मजबूर कर रहे हैं कि वह दान क्यों दे जब उसका सही उपयोग जिम्मेदार नहीं कर पा रहे। इसलिए चिकित्सा उपलब्ध कराने वाली संस्थाएं भी निष्क्रिय होती जा रही है। मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संबंधित मंत्रियों व अधिकारियों से विचार कर प्रदेश में लाखों एनजीओ के आय व्यय का ऑडिट हर साल करवाने के साथ ही आदेश यह भी कराया जाए कि संस्था में जो उसके उददेश्य को पूरा करता हो सदस्य बन सकता है। नए सदस्यता देने पर रोक पदाधिकारी नहीं लगा सकते तथा जो एक बार पदाधिकारी बन जाए दोबारा अध्यक्ष मंत्री सचिव ना बन पाए। क्योंकि जितना केंद्र व प्रदेश सरकारें जरूरतमंद लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए काम कर रहे हैं तो संगठन कहीं चंदा एक लाख रूपये करने और आर्थिक साधनों को उपयोग करने की मनोवृति समाप्त होनी चाहिए। यह वक्त की सबसे मांग कही जा सकती है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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