asd नौकरशाहों से मतदाताओं ने बनाई दूरी

नौकरशाहों से मतदाताओं ने बनाई दूरी

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लखनऊ 07 जून। नौकरशाह से राजनीतिज्ञ बनने की चाह रखने वालों को यूपी के मतदाताओं ने आमतौर पसंद नहीं किया है। लोकसभा चुनावों में तो एक-दो को छोड़ दें तो नामी-गिरामी नौकरशाह तक को जमानत बचाने तक का वोट नहीं मिला है। इनमें प्रदेश के ऐसे-ऐसे नौकरशाह रहे हैं, जिनकी किसी जमाने में तूती बोलती रही है। मजे की बात यह है कि प्रदेश में ऐसे नौकरशाहों की फेहिरस्त भी अच्छी-खासी है।

2024 के लोकसभा चुनाव में कई नौकरशाह चुनाव मैदान में उतरे लेकिन मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया। इसमें पूर्व आईपीएस अधिकारी अरविन्द सेन का नाम शामिल है जो माकपा से फैजाबाद से चुनाव लड़े लेकिन बुरी तरह से हार गए। इसी प्रकार पूर्व आईआरएस अधिकारी सुरेश सिंह बसपा के टिकट पर मथुरा से चुनाव लड़े लेकिन तीसरे स्थान पर रहे। पीपीएस अधिकारी रहे एसएन गौतम भी बसपा के टिकट पर कौशाम्बी से चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं सके जबकि पूर्व पीसीएस श्याम सिंह यादव भी अबकि चुनाव हार गए हैं। हालांकि श्याम सिंह यादव 2019 के चुनाव में जीत गये थे।

पूर्व नौकरशाह में प्रदेश के सबसे चर्चित अधिकारी पीसीएस से आईएएस बने बाबा हरदेव सिंह का नाम प्रमुख है। हरदेव सिंह 2014 में मैनपुरी संसदीय सीट से आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए। इसी प्रकार से मायावती की सरकार में एडिशनल कैबिनेट सेक्रेट्री रहे तेज-तर्रार आईएएस अधिकारी विजय शंकर पाण्डेय ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व लोक गठबंधन पार्टी बनाई थी। उसी वर्ष वे फैजाबाद सीट से चुनाव भी लड़े थे लेकिन बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा।

मायावती के ही करीबी अधिकारियों में से एक पीएल पुनियां जो 2009 में कांग्रेस के टिकट पर बाराबंकी से चुनाव जीत गये लेकिन उसके बाद 2014 के चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। इससे पूर्व 1972 बैच के आईएएस डा. राय सिंह भी 2004 में कांग्रेस पार्टी की टिकट पर पीलीभीत से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा।

इसी प्रकार और एक-दो नौकरशाहों ने चुनाव में जीत दर्ज की है। इसमें अयोध्या के डीएम रहे आएएस अधिकारी के के नायर का नाम सबसे पहले आता है जो 1967 में बहराइच से सांसद बने। वहीं अयोध्या के ही एसपी रहने के दौरान चर्चा में आए तत्कालीन आईपीएस अधिकारी डीबी राय का नाम भी प्रमुख है, जो दो बार सांसद चुने गये थे।

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