मुंबई 24 दिसंबर। सिनेमा के इतिहास में जब-जब हिंदी सिनेमा की बात होगी तो एक नाम हमेशा चर्चा का विषय रहेगा, श्याम बेनेगल साहब का। इन्होंने उस सिनेमा के साथ खुद की उस जिंदगी को जिया, जिसको कला फिल्मों के नाम से भी जाना जाता है। कला फिल्मों की एक के बाद बेहतरीन प्रस्तुतियों के साथ कला और फिल्म प्रेमियों की नज़रों में चढ़कर चमकने-दमकने वाला सितारा 23 दिसंबर 2024 की शाम नज़रों से ओझल हो गया। 14 दिसंबर 1934 में ब्रिटिश भारत के हैदराबाद यानि तेलंगाना प्रदेश के तिरुमालागिरी में जन्मे फिल्मकार श्याम बेनेगल साहब एक से एक उम्दा कला फिल्मों के चलते समानांतर सिनेमा के अग्रणी और बेहद सुलझे हुए फिल्म निर्देशकों में शुमार किए जाते हैं।
श्याम बेनेगल के नाम सबसे ज्यादा नेशनल अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड है। उन्हें 8 फिल्मों के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
श्याम सुंदर बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 में हैदराबाद में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अर्थशास्त्र में पढ़ाई की। बाद में फोटोग्राफी शुरू कर दी। बॉलीवुड में उन्हें आर्ट सिनेमा का जनक भी माना जाता है। जब वे बारह साल के थे, तब उन्होंने अपने फोटोग्राफर पिता श्रीधर बी. बेनेगल के दिए गए कैमरे पर अपनी पहली फिल्म बनाई थी। उनके परिवार में पत्नी नीरा बेनेगल और बेटी पिया बेनेगल हैं।
श्याम बेनेगल की फिल्मों ने भारतीय सिनेमा को बेहतरीन कलाकार दिए, जिनमें नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, अमरीश पुरी, अनंत नाग, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल और सिनेमेटोग्राफर गोविंद निहलानी प्रमुख हैं।
जवाहरलाल नेहरू और सत्यजीत रे पर डॉक्यूमेंट्री बनाने के अलावा उन्होंने दूरदर्शन के लिए धारावाहिक ‘यात्रा’, ‘कथा सागर’ और ‘भारत एक खोज’ का भी निर्देशन किया।
श्याम ने 24 फिल्में, 45 डॉक्यूमेंट्री और 15 एड फिल्म्स बनाई हैं। जुबैदा, द मेकिंग ऑफ द महात्मा, नेताजी सुभाष चंद्र बोसः द फॉरगॉटेन हीरो, मंडी, आरोहन, वेलकम टु सज्जनपुर जैसी दर्जनों बेहतरीन फिल्मों को उन्होंने डायरेक्ट किया।
फिल्म जगत को दिए योगदान के लिए उन्हें 1976 में पद्मश्री और 1991 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा इनके खाते में 8 नेशनल अवॉर्ड हैं। सबसे ज्यादा नेशनल अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड इन्हीं के नाम है। बेनेगल को 2005 में भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड भी दिया गया।
श्याम बेनेगल ने 1974 में पहली फिल्म अंकुर बनाई थी। इस फिल्म में उन्होंने आंध्र प्रदेश के किसानों के मुद्दों को उठाया था। वहीं, ‘मुजीब – द मेकिंग ऑफ अ नेशन’ उनकी आखिरी फिल्म थी। मुजीब की शूटिंग दो साल तक हुई थी। यह फिल्म मुजीबुर रहमान की जिंदगी पर आधारित थी।