देश की जनसंख्या नीति 1998 और 2002 में तय की गई थी। इसके अनुसार अगर किसी समाज की जनसंख्या वृद्धि 2.1 से नीचे चली जा सकती है तो वो समाज नष्ट हो सकता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए नागपुर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा जनसंख्या में आ रही कमी को चिंता का विषय बताते हुए यह कहा गया कि कम से कम समाज बचाने के लिए तीन बच्चे हैं जरूरी। अगर प्रथम दृष्टया देखे तो भागवत का बयान समयानुकुल जनता व देशहित का है। क्योंकि अगर पड़ोसी देशों में अगर जिस प्रकार जनसंख्या को बढ़ाने के लिए अब एक से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अनुमति है तो उन्हें देखते हुए भागवत का बयान देश की सुरक्षा के लिए जरूरी कह सकते हैं।
सपा कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसको लेकर जबानी तीर चलाने और आलोचना करने का कार्य शुरू कर चुके हैं। मेरा मानना है कि सही मुददों पर अपनी बात रखने के लिए विपक्षी नेताओं को ना तो चूकना चाहिए और ना ही समय का इंतजार करना। लेकिन जैसा हम देशहित और जनमानस के मुददे पर एक हो जाते हैं उसी प्रकार भागवत के कथन की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए विरोधी दलों को इस मुददे पर आलोचना से बचना और सत्ताधारी दल व सहयोगियों को दो या तीन बच्चो वाले बयान का समर्थन करना चाहिए। जहां तक बात आम आदमी की है तो यह उससे स्पष्ट होता है कि इससे संबंध खबर पढ़कर चर्चाएं सुनाई दी ज्यादातर का रूझान मोहन भागवत की बात के समर्थन में दिखाई दिया।
मैं किसी राजनीतिक दल का समर्थक तो नहीं हूं लेकिन देश का नागरिक होने के चलते मुझे भी अपनी बात कहने का अधिकार है उससे यह जरूर कह सकता हूं कि पक्ष और विपक्ष बिना सोचे किसी बयान और घोषणा का यह सोचकर कि विरोध करना है आलोचना का अभियान नहीं चलाना चाहिए।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
मोहन भागवत के बयान में गंभीरता को समझें
0
Share.