पणजी 18 जनवरी। गोवा में बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस के दो स्टूडेंट्स को बॉम्बे हाईकोर्ट ने ओल्ड एज होम में दो महीने के लिए सामुदायिक सेवा करने का आदेश दिया है. दोनों स्टूडेंट्स कॉलेज परिसर में स्टालों से आलू के चिप्स, सैनिटाइज़र, चॉकलेट, एक फोन स्टैंड, लैंप और एक ब्लूटूथ स्पीकर की चोरी में शामिल थे. चीफ जस्टिस देवेन्द्र उपाध्याय और जस्टिस एमएस सोनक की बेंच ने बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस के दो छात्रों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की, जिन्हें उनके पहले सेमेस्टर के लिए रोक दिया गया था.
संस्थान ने 5 छात्रों के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी, जिनमें से 3 को माफ कर दिया गया था, लेकिन बाकी 2 को नहीं, जिसके बाद उन्हें उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा. छात्रों ने चोरी की बात स्वीकार कर ली और लिखित माफी के साथ चोरी का सामान वापस कर दिया. इसके बावजूद, संस्थान ने उन्हें अपना पहला सेमेस्टर लिखने से रोक दिया और प्रत्येक पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया.
छात्रों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था क्योंकि उनकी पहले सेमेस्टर की परीक्षा 6 जनवरी, 2024 को शुरू होने वाली थी. उच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश के माध्यम से निर्देश दिया कि छात्रों को परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए और उनकी उत्तर पुस्तिकाएं सीलबंद कवर में रखी जाएं.
कोर्ट ने कहा कि निदेशक को सुधारात्मक दृष्टिकोण पर विचार करना चाहिए और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों के अनुसार छात्रों को दंडित करना चाहिए, जो सामुदायिक सेवा को एक उपयुक्त अनुशासनात्मक उपाय के रूप में निर्धारित करता है.
संस्थान के निदेशक ने छात्रों को माफ़ करने से इनकार कर दिया, ये कहते हुए कि माफ़ी देना एक उदाहरण स्थापित करेगा, जिससे छात्रों को भविष्य के मामलों में संस्थान द्वारा माफ़ी नहीं दिए जाने पर अदालत में हस्तक्षेप की मांग करने की अनुमति मिल जाएगी.
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि जब संस्थान द्वारा लगाया गया जुर्माना संस्थान के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है, तो संस्थान न्यायिक समीक्षा से छूट का दावा नहीं कर सकता है.
“ हम निदेशक के इस दृष्टिकोण से आहत हैं. क्योंकि हम इस बात को ध्यान में रखते हैं कि हमारे सामने दो याचिकाकर्ताओं को अगले कुछ वर्षों के लिए उत्तरदाताओं के साथ अपनी शिक्षा पूरी करनी होगी और इसके कारण उन्हें जीवन भर के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा.”
इन टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने उस आदेश को निलंबित कर दिया जिसने छात्रों को परीक्षा में बैठने से रोका था.
पीठ ने संस्थान को छात्रों द्वारा भुगतान की गई जुर्माना राशि का 50% वापस करने और शेष 50% उन्हें सामुदायिक सेवा से गुजरने के बाद वापस करने का भी निर्देश दिया.