लखनऊ 15 जनवरी। मर्ज की पहचान किए बिना ही किए जा रहे इलाज ने मरीज की जान ले ली। तबियत बिगड़ने पर परिजनों की सहमति बगैर मरीज को वेंटीलेटर पर रख दिया। मृतक की 36 वर्षीय पत्नी और दो छोटी बच्चियां थीं। पिता ने अस्पताल की इस लापरवाही के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में अपील की। दस साल पहले हुई इस घटना पर राज्य आयोग ने फैसला सुनाया और सदस्य विकास सक्सेना ने 25 लाख रुपये का जुर्माना अस्पताल पर लगाया।
पिता जय प्रकाश पांडेय ने आयोग में अपील कर बताया कि उनके बेटे नवनीत कुमार को कुछ दिन से पेटदर्द था। 17 जनवरी 2014 को उसे फोर्ड अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह तीन दिन अस्पताल में भर्ती रहा लेकिन बीमारी का ही पता नहीं लग सका। उन्होंने कहा कि अस्पताल ने अनुमान के आधार पर उसे मलेरिया बता दिया और फैलिसगो मलेरिया की दवा नवनीत को खिलाते रहे। नवनीत दर्द से तड़पता रहा लेकिन कोई आराम नहीं मिला। इसके बावजूद फैलिसगो दवा बिना मलेरिया के और बिना चिकित्सकीय सलाह के ही नवनीत को दी जाती रही। इससे उसकी हालत बिगड़ गई।
तबियत ज्यादा खराब होने पर नवनीत को वेंटीलेंटर पर रखने के लिए परिजनों की सहमति भी नहीं ली गई। आखिरकार आठ दिन बाद 22 जनवरी 2014 को उसकी मौत हो गई। पिता ने अस्पताल पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया कि उनकी वजह से बेटे की मौत हो गई।
आयोग ने मामले की सुनवाई के दौरान कुल 25 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति भरने का आदेश दिया। हालांकि पहले प्रिसाइडिंग जज राजेन्द्र सिंह ने 40 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया था। सदस्य सुशील कुमार ने क्षति का आंकलन 20 लाख रुपये किया। इसे आयोग के सदस्य विकास सक्सेना ने सही माना। इस रकम के अलावा अलग-अलग मद में पीड़ित को लगभग पांच लाख रुपये और देने के आदेश दिए गए।