हिंसक हो रहे आवारा जानवरों की उग्रता पर रोक लगाने के लिए बहुत प्रयास होने की खबरें पढ़ने सुनने को खूब मिलती हैं। स्थानीय निकाय और वन विभाग के अफसर इस बारे में काम करने और कई बार व्यवस्थाएं ना होने का रोना भी रोते हैं मगर जितना नजर आता है उससे यही लगता है कि जनहित में इस बारे में काम करने की इच्छाशक्ति का अभाव और मिले धन का सदुपयोग करने की जिम्मेदारी जिन्हें मिली है वो आंकड़े और बहानेबाजी व खोखले दावे करने और दिखाने में समय गुजार रहे हैं। शायद यही कारण है कि हिंसक कुत्ते बंदर बिल्ली और अन्य जानवरों भेड़ियों गुलदार का आतंक बढ़ता ही जा रहा है।
आज पूरे विश्व में रैबीज दिवस मनाया गया। इसका मूल उददेश्य यही नजर आता है कि इनके काटने के बाद क्या क्या करना चाहिए और कैसे इनसे बचना है। और जो लोग इन्हें पालते हैं उन्हें क्या करना जरूरी है कि महत्वपूर्ण जागरूकता हो सकती है। जानकारों का कहना कि काटने से ही नहीं खरोंच से भी रहता है रैबीज का खतरा। टीकाकरण केंद्रों के अनुसार 150 से ज्यादा देशों में रैबीज वैश्विक खतरा बनती जा रही है। इस बारे में एक खबर के अनुसार घबराएं नहीं पर सतर्क रहें। परिवार के पालतू जानवर (कुत्ता या बिल्ली) के काटने या खरोंच से भी रेबीज हो सकता है। यूपी समेत पूरे देश में ऐसे मामले पिछले सालों मे तेजी से बढ़े हैं।
आंकड़ों के अनुसार, 40 फीसदी से ज्यादा लोग पालतू जानवरों के काटने के बाद रेबीज टीकाकरण के लिए अस्पताल पहुंचे। इनमें से भी 98 फीसदी से ज्यादा मामले कुत्तों के काटने तथा शेष दो फीसदी बिल्ली-बंदर या किसी जंगली जानवर के काटने या हमले के चलते टीकाकरण को आए। विभिन्न शोध और इनसे जुड़े विशेषज्ञ ही नहीं बल्कि टीकाकरण का डाटा-विश्लेषण भी इसकी पुष्टि करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मुख्य रूप से एशिया और अफ्रीका के साथ 150 से ज्यादा देशों में रेबीज वैश्विक खतरा है।
विश्वभर में 70 हजार, तो भारत में 20 हजार लोगों की हर साल इससे जान जाती है। इनमें भी 40 फीसदी से ज्यादा 15 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं। शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों की स्थिति बेहद नाजुक है। रेबीज के टीकाकरण-उपचार की जानकारी न होने और संसाधनों की सीमाओं के चलते हालात बिगड़ते हैं।
डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता, निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस बीएचयू का कहना है कि 40 फीसदी मामले पालतू या घरेलू जानवरों से जुड़े हैं। रांची के सिविल सर्जन डा. प्रभात कुमार का कहना है खेलने या खिलाने के दौरान पालतू जानवर चिड़चिड़े होकर काट देते हैं। घरों में कैलोरी बर्न का इंतजाम नहीं होना भी एक कारण है।
ऐसे होती है लापरवाही
विशेषज्ञों के मुताबिक, कुत्तों और बिल्ली के बच्चों को तीन से चार सप्ताह के अंतराल पर कई टीके लगवाने होते हैं। साथ ही छह माह, एक साल और तीन साल में बूस्टर टीका भी लगवाना होता है लेकिन जानवर पालने वाले अक्सर इसकी अनदेखी करते हैं। इसके चलते ही रेबीज की संभावना बढ़ जाती है। कुत्तों को डिस्टेंपर, हेपेटाइटिस, पार्वोवायरस और बोर्डेटेला ब्रोंचीसेप्टिका, बिल्लियों को फेलिन राइनोट्रेकाइटिस, कैलीसिवायरस, पैनलेकोपेनिया वायरस और फेलिन ल्यूकेमिया वायरस के लिए टीका लगवाना चाहिए।
जानकारी अनुसार अकेले यूपी के मेरठ जनपद में हर साल डेढ़ लाख लोग कुत्ते और बंदरों का शिकार हो रहे हैं। ध्यान से देखें तो हर दिन 150 के आसपास लोगों पर हमला इन हिंसक जानवरों द्वारा किया जाता है। मजबूरीवश नागरिक कुछ कर नहीं पा रहे हैं और जिम्मेदार इस समस्या के समाधान पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। मेरा मानना है कि जब तक पीड़ित और उसके परिवार के लोग मुखर होकर हमलावर जानवर पालतू है तो उसके मालिक के खिलाफ एफआईआर और उनकी सूचना अधिकारियों और सीएम पोर्टल पर देकर यह नहीं बताएंगे कि उक्त जानवर को टीके आदि नहीं लगवाए गए हैं तब तक आसानी से इस समस्या का समाधान होने वाला नहीं है लेकिन जिस प्रकार से अदालत द्वारा उत्पीड़नों के मामलों में निर्णय दिए जा रहे हैं उसे देखते हुए पीड़ित मुआवजे और कार्रवाई की मांग कर सकते हैं। ऐसे कुछ उपाय किए जाएं तो इनका आतंक कुछ कम और रैबीज पीड़ितों की संख्या कम हो सकती है।
हर दिन 150 से ज्यादा लोगों को काट रहे कुत्ते
मेरठ। शहर के हर गली मोहल्ले में आवारा कुत्तों का आतंक है। जिला अस्पताल में हर माह पांच हजार से अधिक लोगों को एंटी रेबीज वैक्सीन लगती है। यानि हर रोज 150 से ज्यादा लोगों को कुत्ते शिकार बना रहे हैं।
यह है रेबीज
कुत्ता, बंदर, लंगूर आदि के काटने से जो लार व्यक्ति के खून में मिल जाती है, उससे रेबीज की बीमारी होने का खतरा रहता है। रेबीज मानसिक संतुलन बिगाड़ता है। यह रोग 19 साल तक मरीज को अपनी गिरफ्त में ले सकता है।
रेबीज के लक्षण
रेबीज रोगी को सबसे ज्यादा पानी से डर लगता है। रोगी के मुंह से लार निकलती है। यहां तक की वह भौंकना भी शुरू कर देता है।
रेबीज का उपचार
रेबीज की रोकथाम के लिए एंटी रेबीज वैक्सीन लगाई जाती है। नियमानुसार पहला इंजेक्शन 72 घंटे मेें, दूसरा तीन दिन बाद, तीसरा सात दिन बाद, चौथा 14 दिन बाद और पांचवा 28 दिन बाद लगाया जाता है।
एमए खान, फार्मासिस्ट जिला अस्पताल का कहना है कि कुत्ता काटने पर मिर्च लगाने का चलन अभी भी है। इससे बचना चाहिए। जानवर के काटने पर 72 घंटे के भीतर एंटी रेबीज वैक्सीन लगवानी चाहिए।
दोस्तों अपने हितों और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए महात्मा गांधी द्वारा जो मार्ग हमें दिखाया गया है उस पर चलते हुए सरकार का ध्यान आकर्षित करो देर सवेर इस उत्पीड़न से छुटकारा मिलेगा यह बात विश्वास से कही जा सकती है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
हिंसक जानवरों के उत्पीड़न से छुटकारा पाने के लिए गांधी जी के मार्ग पर चलकर करना होगा प्रयास
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