काल कोई सा भी रहा हो कुछ कटटरवादियों और अहम से पीड़ित व्यक्तियों द्वारा अगर सीमा तोड़कर अत्याचार किए गए तो अच्छे लोग भी उभरकर सामने आए। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन सरकार समाज सुधारक सब अमन चैन महिलाओं के सम्मान युवाओं के उत्थान और शिक्षा की अलख जगाने तथा जातीय व्यवस्था समाप्त करने के लिए हरसंभव प्रयास करते नजर आते हैं लेकिन अंदर ही अंदर हम इसे आत्मसात कर देश की मजबूती और एकता का माहौल बनाने के लिए जो प्रयास किए जाने चाहिए वो अभी भी शायद नहीं कर पा रहे हैं या कुछ लोग उन्हें सफल नहीं होने देना चाहते। उदाहरण के तौर पर हम समाज को हर दिन नया संदेश देने में सक्षम फिल्मी दुनिया और इसके व्यक्तियों के बारे में कह सकते है। भले ही सब ऐसा ना कर रहे हों मगर कुछ प्रोडसयूसर फाइनेंसर फिल्म निर्माता अपनी टीआरपी बढ़ाने ज्यादा पैसा कमाने को ध्यान में रखकर समाज में हिंसा दुष्कर्म जातिवाद को फिल्मों के माध्यम से बढ़ावा देने में अभी भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। वैसे तो हर क्षेत्र में ऐसी कुरीतियों से युक्त फिल्में कम या ज्यादा बन रही है लेकिन दक्षिण भारत में इनका कुछ ज्यादा ही प्रचलन नजर आता है जिसमें यह शोषित और पीड़ितों को साक्षर नहीं बनने देना चाहते। दलितों और पिछड़ों पर अत्याचार करने में कोई चूक नहीं करते और इतनी दरिंदगी दिखाते हैं कि नई पीढ़ी उसे देखकर मानसिक रूप से प्रताड़ित होती है। इससे इनकार नहीं कर सकते कि यह भी नहीं है कि इससे उसमें बदला लेने की भावना भी पनप सकती है। इन फिल्मों में जो दिखाया जाता है उससे यह पता चलता है कि इनकी निगाह में शोषित पिछड़ा कोई जाति नहीं बल्कि हर गरीब इनकी प्रताड़ना का शिकार बनता है। सवाल उठता है कि एक तरफ तो नागरिक ऐसी घटनाओं का विरोध करते हैं। नेता ऐलान करते हैं कि किसी को उत्पीड़न नहीं होना चाहिए। जाति व्यवस्था समाप्त हो महिलाओं को साक्षर बनाया जाए तो फिर ऐसी घटिया फिल्मों को देखकर उन्हें बढ़ावा क्यों देते हैं और फिल्म सेंसर बोर्ड ऐसी फिल्मों को अनुमति क्यों देता है जिसमें हिंसा अत्याचार और गरीब का उत्पीड़न करना दिखाया जाता हो। मेरा मत है कि केंद्र व प्रदेश सरकार व नागरिक किसी जाति वर्ग से क्यों ना हो उन्हें एकजुट होकर प्रयास करना होगा जिससे भगवान महावीर स्वामी के संदेश और महात्मा ज्योतिबा फुले के अभियानों और डॉ अम्बेडकर द्वारा लिखित संविधान से देश का संचालन हो। हर आदमी भयमुक्त हो। जगह जगह शिक्षा की फसल लहराए किसान मजदूर सब खुशहाल रहे इसका प्रयास हम करेंगे तो सरकार तो नीति नियम बना रही है और जो नौकरशाह इन्हें लागू नहीं कर पा रहे हैं उन्हें भी मजबूर किया जा सकता है। क्योंकि अब हम 21वीं सदी की ओर बढ़ रहे तो हमें सोच का पालन और निर्धारण करना होगा तभी भावी पीढ़ी महात्मा गांधी के सपनों का भारत में रामराज्य की स्थापना में शुरूआत में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
महापुरूषों के दिखाए भारत के निर्माण हेतु ? हिंसा जातिवाद व्याभिचार को बढ़ावा देनी वाली फिल्मों पर लगे रोक, इनके निर्माताओं का हो सामाजिक बहिष्कार
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