asd यह आकस्मिक आपदा नहीं बिजली विभाग नगर निगम और वन विभाग की लापरवाही का परिणाम कह सकते हैं! संबंधित अधिकारियों से मृतकों के परिवारों को एक करोड़ का मुआवजा और अन्यों को नुकसान की भरपाई कराई जाए

यह आकस्मिक आपदा नहीं बिजली विभाग नगर निगम और वन विभाग की लापरवाही का परिणाम कह सकते हैं! संबंधित अधिकारियों से मृतकों के परिवारों को एक करोड़ का मुआवजा और अन्यों को नुकसान की भरपाई कराई जाए

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आंधी बारिश तूफान एक आकस्मिक आपदा है जो वर्ष में कई बार कभी बारिश तो कभी तूफान या बाढ़ अथवा सूखे के रूप में नागरिकों के सामने आती रहती है। इससे आम आदमी परेशान भी होता है। उसे आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है और अपनों को खोने का दर्द भी झेलना पड़ता है लेकिन भगवान की मर्जी मानकर वो अपने दुख को कम करने की कोशिश करता है।
यह सब जानते हुए भी संबंधित विभाग के लोगों द्वारा समय से तैयारियां ना करना और काम मानक के अनुकूल ना होने से जो नुकसान होते हैं उन्हें आकस्मिक आपदा नहीं कह सकते वो कुछ लोगांें के लालच जिनमें कुछ सरकारी अफसर और ठेकेदार शामिल हो सकते हैं। इसीलिए थोड़े से मौसम के बदलाव में ही लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। आखिर इन मौतों के लिए जो किसी के स्वार्थवश होती है उसमें ना तो संतोष हो पाता है और ना ही भगवान की मर्जी मानकर उसे भूला जा सकता है। फिलहाल तो इस समय हम बिजली विभाग और उसके कुछ अफसर व ठेकेदारों के कारण आए दिन और अब होने वाली मौतों के बारे में चर्चा करे तो मुझे लगता है कि इसका दोषी सीधे संबंधित लोगों को ही माना जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि इनकी लापरवाही का खामियाजा नागरिक ही भुगतते हो। इनके कर्मचारी भी समय असमय अपनों से बिछड़ जाते हैं इनका शिकार होकर। 21 और 22 की रात्रि को तूफान आया। बारिश भी हुई। इसका नुकसान भी होना ही था। ऐसा हमेशा ही होता रहा है मगर जितना नुकसान इस बार बिजली विभाग के लोगों के कारण जनता को भुगतना पड़ा है वैसा कम देखने सुनने को मिलता था। क्योंकि कहीं 18 तो कहीं 24 घंटे बिजली नहीं आई। दिन रात लोग गर्मी में तड़पते रहे। पूरा दाम देने के बावजूद इसे आकस्मिक आपदा बताकर जिम्मेदार बच नहीं सकते। क्योंकि शहर में दो हजार से ज्यादा यूनिपोल हैं। 70 किमी की रफतार से 14 साल में दूसरी बार हुई आंधी बारिश में 1867 विद्युत पोल जमींदोज हुए तो 340 ट्रांसफार्मर भी क्षतिग्रस्त हो गए। एक खबर के अनुसार अफसरों ने रातों रात बिजली सही कराकर नागरिकों को राहत पहुंचाने की बजाय अवैध यूनिपोल होर्डिंग्स के सबूत मिटाने में ज्यादा ध्यान दिया। अब कहा जा रहा है कि यूनीपाल का स्ट्रक्चर मजबूत ना हुआ तो ठेके रद होंगे। यह कथन तो नगर निगम अधिकारियों का है लेकिन सवाल उठता है कि बिजली विभाग क्या कर रहा था। विद्युत पोल जमींदोज कैसे हो गए और 340 ट्रांसफार्मर किसकी गलती से क्षतिग्रस्त हो गए। नागरिकों का यह कहना सही है कि कुछ ठेकेदारों व कर्मचारियों अधिकारियों की मिलीभगत का यह नतीजा है। अगर खंबे सही लगाए गए होते और ट्रांसफार्मरों की सही देखभाल हो रही होती तो यह क्षतिग्रस्त नहीं हो पाते। मेरा मानना है कि नुकसान नगर निगम की गलती से हुआ हो या बिजली विभाग कीदोनों की जवाबदेही तय करने के साथ ही जिसके भी कारण नागरिकों को आर्थिक नुकसान और अपनी जान से हाथ धोना पड़ा हो उसकी भरपाई इन दोनों विभागों के अफसरों से निजी रूप से कराई जाए क्योंकि इनकी लापरवाही से ही यह सब हुआ वरना इससे पहले कभी ना इतने खंबे गिरे ना ट्रांसफार्मर क्षतिग्रस्त होने की खबर थी। इस तूफान और बारिश में लोगों का कहना है कि 100 से 150 करोड़ के बीच का नुकसान हुआ होगा। यह तो आम आदमी की कमाई जो टैक्स के रूप में मिलती है उससे सभी दोषी मिलजुलकर भरपाई कर लेंगे लेकिन आम आदमी का क्या। इनका कसूर क्या था कि 20 घंटे तक बिजली पानी के लिए तरस गए। मेरा मानना है कि सरकार जनता के नुकसान की भरपाई और जिन लोगों की अधिकारियों ठेकेदारों की लापरवाही से जानें गई उन्हें मुआवजा दे और भविष्य में किसी की कमी के चलते इतना बड़ा नुकसान और नागरिक हताहत ना हो इसके लिए पूर्ण तैयारी की जाए। फिलहाल मरने वालों के परिजनों को एक एक करोड़ का मुआवजा और जिनके नुकसान हुए उनकी जांच कराकर सरकार भरपाई करे। क्योंकि इसमें प्रभावित होने वालों का कोई कसूर नहीं था। इन मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है यह तो स्पष्ट होना ही चाहिए। जिनकी लापरवाही ज्यादा सामने आए उन्हें सेवानिवृति दी जाए। जिन ठेकेदारों अफसरों की लापरवाही से ज्यादा नुकसान हुआ उसकी वसूली इनसे करते हुए ब्लैक लिस्ट किए जाए और भविष्य में चाहे बिजली के खंबे लगने हो या टांसफार्मर या विज्ञापन होर्डिंग्स इन सबमे यह जरूर दिखवाया जाए कि गुणवत्ता का पालन किया जा रहा है या नहीं। इसके लिए डीएम की अध्यक्षता में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाई जाए जिससे ऐसी घटना की पुनरावृति होती है तो उन्हें दोषी ठहराया जाए। जहां तक पेड़ गिरने की बात है तो इसके लिए डीएफओ से जवाब तलब किया जाए कि गिरे पेड़ों की जड़ें कमजोर थी तो उन्हें समय से क्यों नहीं कटवाया गया। यह भी पूछा जाए कि 40 घंटे में भी पेड़ों को हटवाकर रास्ते क्यों नहीं खुलवाए गए। रूड़की रोड से लावड़ जाने वाले मार्ग पर कैश कॉलेज के सामने के मार्ग को देखा जा सकता है। जहां आज दोपहर तक भी अकेले आदमी के निकलने का रास्ता भी नहीं बन पाया था।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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