सरकारी कानून और नियमों के विरूद्ध काम करने वालों के खिलाफ चलने वाले अभियान जब भी जोर पकड़ते हैं या अफसर जनहित में कुछ करने की सोचते हैं तो हमेशा कुछ व्यापारी एवं राजनेताओं की मीटिंग चलती है। अफसरों के साथ सलाह होती और फिर तय होता है कि आपसी सहमति से चलेगा नियमों को पालन कराने वाला अभियान। पिछले पांच दशकों से तो एक ही बात दिखाई दे रही है कि वो आपसी सहमति कभी नहीं बनती जिसके बाद अतिक्रमण हटाओं अभियान चलाया जा सके। मिलावटी खाद्य सामग्री की रोकथाम के लिए काम हो। चाहे वह अतिक्रमण हो या अवैध निर्माण सब में एक सा ही नजारा देखने को मिलता है क्योंकि पहले तो सहमति नहीं बन पाती। अगर बन गई तो इसके खिलाफ नहीं होगा काम। उस क्षेत्र में नहीं चलेगा अभियान जैसी शर्तें सामने खड़ी होने लगती है। परिणामस्वरूप एक जमाने में शहर में नाले और चौड़ी सड़कें, सामूहिक कार्यों के लिए छोड़े गए चौक और सफाई का जो माहौल नजर आता था अब वो गायब हो गया है। क्येांकि जितनी गहरी दुकान उससे ज्यादा सड़क घेरने नाले पाटने अवैध निर्माणों के कारण चारों तरफ अव्यवस्थित कंक्रीट का जंगल, गंदे नाले निकली गंदगी सड़क किनारे आदि के चलते यह शहर अब महानगर सा नहीं लगता। पिछले कुछ वर्षों से लाखों करोड़ों रूपया शहर को स्मार्ट सिटी बनाने पर खर्च हो चुका है। लेकिन स्मार्ट तो दूर अब तो लोग बदबू के चलते कभी कभी नगर निगम क्षेत्र को नरक निगम भी कहने लगे है। कहने का मतलब यह है कि व्यापार संघ हो या राजनीतिक वोटों का मामला महत्वपूर्ण है। लेकिन हमारे जनप्रतिनिधियों और व्यापारी नेताओं को यह भी सोचना होगा कि अगर उनका शहर सुंदर होगा जनसमस्याओं से मुक्त रहेगा अतिक्रमण तथा गंदगी नजर नहीं आएगी। चारों ओर हरियाली होगी तो उनका भी नाम और सम्मान इंदौर शहर की भांति पूरे देश में होगा। सांसद और विधायक जी नियम कानून आप ही बनाते हैं। धन भी आप लोगों द्वारा ही आवंटित किया जाता है और वो पैसा आम आदमी से प्राप्त टैक्सों के रूप में मिलता है। यह सभी जानते हैं कि बड़ी तादात में अधिकारी विकास और निकायों से संबंध या तो काम नहीं करना चाहते सड़क पर उतरते भी है तो फिर यह बैठक का दौर और सहमति की चर्चा शुरू होती है। शहर स्मार्ट सिटी बनने की बजाय और गंदा नजर आने लगता है। जो पैसा सरकार इन विभागों को देती है उसका बंदरबाट जानकारों के अनुसार जरूर हो जाती है लेकिन शहर की इच्छाओं पर कुठाराघात होता है। आखिर क्यों। जनप्रतिनिधि जी ऐसे तो यह शहर कभी उल्लेखनीय और साफ सुथरों की श्रेणी में आने का ही नही। इसलिए नाले नालियों का अतिक्रमण हटवाया जाए। सड़कों पर रखा जाने वाला सामान दुकान के अंदर ही रहे और साफ सफाई व हरियाली का माहौल बने तो सहमति की बात तो छोड़ ही दीजिए क्योंकि ना तो कोई अपना अवैध निर्माण हटवाएगा ना पाटे हुए नाले खाली करेगा। अपने आप तो कोई कुछ कराने का है नहीं। इसलिए आपको अधिकारियों के साथ जनहित के अभियान में सड़क पर रहकर यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी के साथ ज्यादती ना हो पाए। अतिक्रमण हटाओं अभियान के लिए चुना गया क्षेत्र ठीक है लेकिन कभी सोतीगंज लाला का बाजार जैसे मुख्य बाजारों मंे जली कोठी आदि में अभियान चलाकर ऐसी व्यवस्था हो कि भविष्य में अतिक्रमण ना हो पाए। शायद सभी जानते होंगे कि जब अनिल शर्मा नगरायुक्त थे तो सरकारी पैसा खर्च करके अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाए गए थे। जब कुलदीप एसडीएम ने अभियान चलाया था मगर यह सहमति के कारण रात को जो सड़कें चौड़ी नजर आती हैं दिन में वहां से पैदल लोगों का निकलना भी मुश्किल हो जाता है। यह परेशानी बढ़ेगी ही कम होने वाली नहीं है। इसलिए यह सहमति का प्रयास छोड़ जनहित में काम को प्राथमिकता आपको देनी चाहिए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
ना सहमति बनेगी ना अतिक्रमण अवैध निर्माण हटेगा और होगी सफाई
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