Date: 21/11/2024, Time:

जागरूक नागरिकों में है चर्चा! बिल्डरों की विश्वसनीयता हो रही है कम, उपभोक्ता आंख मिचकर न करे विश्वास

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हर व्यक्ति को सिर पर छत और घर उपलब्ध कराने के सरकार के सपने को साकार करने हेतु शासन प्रशासन और संबंधित विभागों द्वारा बिल्डरों को नियम अनुसार सभी सुविधाऐं उपलब्ध कराई जा रही बताई जाती है दूसरी ओर रियल स्टेट से जुड़े लोग जो अन्य सुविधाऐं चाहिए वो भी आपसी तालमेल बैठाकर प्राप्त करने में कभी पीछे नहीं रहते। पर क्योंकि सरकार और उसके द्वारा निर्धारित किये गये विभाग समय से सभी को यह सुविधा उपलब्ध कराने में थोड़ा परेशानी महसूस करते है इसलिए कई मामलों में बिल्डरों की मनमानी और कुछ बिल्डरों द्वारा अनकहे रूप में की जाने वाली नियमों का पालन करने मेें कोताही को भी नजरअंदाज किया जाता है। जागरूक नागरिकों में चर्चा है कि कुछ वर्ष पूर्व नागरिकों को सस्ते व सुलभ गुणवत्ता युक्त आवास समय से उपलब्ध कराने के लिए रेरा विभाग बनाया गया। लेकिन नागरिकों के अनुसार इसके बावजूद भी कुछ बिल्डरों द्वारा सरकार की निर्धारित नीति के अनुसार सब कुछ तय करने के बाद भी तय व्यवस्थाओं के अनुसार आवास उपलब्ध नहीं कराये जा रहे।
परिणाम स्वरूप देश के कई जाने माने बिल्डर वायदा खिलाफी उपभोक्ताओं से हुए समझौते में की जाने वाली बेईमानी करने के लिए जेलों की हवा खा रहे तो कुछ के प्रॉजेक्ट जब्त किये गये और कईयों को मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है।
दोस्तों जैसे हाथ की पांचों अंगुली समान नहीं हो सकती वैसे ही सारे ही बिल्डर गलत काम कर रहे हो ऐसा नहीं कह सकते। लेकिन जितना देखने और सुनने को मिल रहा है उसके अनुसार यह जरूर कह सकते है कि बिल्डर छोटा हो या बड़ा कितनी ही अच्छी छवि वाला क्यों न हो आंख मिचकर उसकी व उसके कर्मचारियों की बातों पर अब यकीन नहीं किया जा सकता। नागरिकों के इस कथन से अब मैं भी सहमत हूं। क्योकि इस संदर्भ की कुछ उपभोक्ताओं की यह बाते बिलकुल सही है कि छोटे से लेकर नामचीन बिल्डरों में से ज्यादातर विभिन्न तरीकों से सरकारी नियम अनुसार जो जमीन विकास के दौरान छोड़ी जानी चाहिए उसका उपयोग मकान बनाकर बेचने और प्रॉफिट कमाने में कर ही लेते है। कई बिल्डर मकान और प्लॉट से बिजली की तार 7 फीट होने की बात का पालन नहीं करते और कई के द्वारा जमीन में लाईनें बिछाकर खंभे खड़ा कर नियमों का पालन नहीं किया जाता। तथा कई बिल्डर तो कच्ची कालोनियों में विद्युत विभाग के नियमों को बलाये ताक रख उनके अफसरों से मिलीभगत कर नागरिकों के लिए भविष्य में खतरनाक साबित होने वाली लाईनें डालकर कालोनी काट देते है। कई अपनी अच्छी छवि के नाम पर बुकिंग का पैसा लेते है और समय से भूखण्ड और मकान देने के बजाए लिया गया पैसा अन्य कार्यों में लगा देते है। तथा नाले नाली खडजों और मौका लगता है तो बड़े नहरों आदि को काटकर उनकी एवं विभिन्न उपयोग की सरकारी जमीन अपनी कालोनियों में जाने का रास्ता बनाने तो कई सरकारी जमीन घेरकर उन पर भव्य ईमारते खड़ी कर बेचने में भी पीछे नहीं रहते है। इसलिए कुछ जागरूक उपभोक्ताओं का कहना है कि मकान दुकान और प्लॉट लेने से पूर्व बिल्डरों के कारिदों की मीठी मीठी बातों में न फंसकर यह जरूर देख लेना चाहिए कि जहां वो अपना आसियाना या व्यापारिक स्थान लेने जा रहे है वहां सरकार की नीति के तहत बिल्डर के द्वारा कार्रवाई की गई है या नहीं। क्योंकि बाद में ना तो सरकार के प्रतिनिधि सुनते है और ना ही बिल्डर और ना ही उसके कारिदें और आम आदमी चकरहिनी बनकर रह जाता है और कभी कभी तो जो पैसा उसने जमा कराया है मकान और दुकान तो दूर वो भी खतरे में पड़ जाता है शायद इसलिए कई नामचीन बिल्डरों के प्रॉजेक्ट न्यायालय के निर्देशों के अनुसार तय एजेंसियां बनाकर देने के मामले में सक्रिय है। एवं कई बड़े बिल्डर जेल की हवा खा चुके है तो कुछ अभी भी खा रहे है तथा कई को उपभोक्ताओं के कहे हिसाब से पुलिस ढूंढ रही है। इसके उदाहरण के रूप में बीते दिनों शारदा एक्सप्रोर्ट से संबंध व्यक्तियों और ग्रेटर नोएडा के शासक रहे मोहन दत्त की मिलीभगत का जो मामला सामने आया है उसे बिल्डर और इससे संबंध सरकारी कार्यालयों के अफसरों की कारगुजारी खुलकर सामने आती है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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