asd 13 साल से जिले में नहीं मिला पोलियो का केस खुशखबरी है! मुख्यमंत्री जी एसी कमरों से निकलकर सीएमओ सहित डॉक्टरों को मलिन बस्तियों में जाने और जागरूकता अभियान चलाने के दीजिए निर्देश

13 साल से जिले में नहीं मिला पोलियो का केस खुशखबरी है! मुख्यमंत्री जी एसी कमरों से निकलकर सीएमओ सहित डॉक्टरों को मलिन बस्तियों में जाने और जागरूकता अभियान चलाने के दीजिए निर्देश

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पोलियो जैसी घातक बीमारी से मुक्ति के लिए पिछले कई दशक से हमारी सरकार और प्रमुख जनप्रतिनिधियों द्वारा रोटरी क्लब के सहयोग से भरपूर प्रयास किए जाते रहे हैं। आज पोलियो दिवस के अवसर पर यह खबर मिलना कि पिछले 13 साल से अपने जनपद में पोलिया का केस नहीं मिला। इस बारे में सीएमओ डॉ. अशोक कटारिया का कहना है कि नागरिक हल्का फ्लू सिरदर्द उल्टी गले में खराश गर्दन में दर्द पैरों में दर्द होने पर अगर दस दिन तक यह लक्षण नजर आते हैं तो पोलियों की दवा पिलाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त पांच साल तक के बच्चों को यह दवाई पिलाई जाती है क्योंकि आम तौर पर पोलियो शून्य से 15 साल तक की उम्र में होता है। जनपद का पोलियो मुक्त होना हम सबके लिए महत्वपूर्ण है। इसके लिए केंद्र व प्रदेश सरकार के प्रयासों की सराहना भी की जानी चाहिए।
मगर मुझे लगता है कि नागरिकों को स्वस्थ रखने और उन्हें बीमारी से बचाने के लिए जो प्रयास स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को करने चाहिए वो नहीं हो रहे हैं। क्योंकि यह अच्छी बात है कि अपना जिला पोलियो मुक्त है लेकिन जहां तक मुझे पता है पूरे साल में पोलियो की रोकथाम और बीमारियों के कारणों से बचाव के लिए जागरूकता हेतु गली मोहल्लों और बस्तियों में जहां बीमारी ज्यादा होने की संभावना है वहां स्वास्थ्य विभाग द्वारा अपेक्षित प्रयास नहीं किए गए।
वर्तमान समय में मीडिया में पढ़ने सुनने देखने को मिल रहा है कि बीमारियां काफी बढ़ रही हैं। नगर निगम कैंट बोर्ड और अन्य जिम्मेदार चारों तरफ फैली गंदगी के चलते जो बीमारियां बढ़ सकती हैं उनके प्रति सड़क पर उतरकर जागरूकता लाने की कोशिश और सरकार के अभियान सभी को निरोगी बनाए रखने का प्रयास उस स्तर पर नहीं कर रहे हैं जितना करना चाहिए। सरकारी दफतरों में बैठक के नाम पर कुछ देर की चर्चा या कचहरी परिसर अथवा वीआईपी इलाकों व मुख्य बाजारों से जुलूस निकालकर उसे जागरूकता का नाम दिया जाता हो तो वो तो ठीक नहीं है। क्योंकि जानकारी की आवश्यकता मलिन बस्तियों गंदगी से ग्रस्त इलाकों में है। जिसे पूरा करने में स्वास्थ्य विभाग सही मायनों में अपने आप का कितना महिमामंडन कर लें लेकिन सफल नागरिकों के हित में नजर नहीं आता है। इसके जीते जागते उदाहरण के रूप में हम प्रदेश सरकार द्वारा दिए जाने वाले कायाकल्प अवार्ड को देख सकते हैं इसमें जिला अस्पताल और जिला महिला अस्पताल फिसडडी रहे वो प्रथम रैंक प्राप्त नहीं कर पाए जबकि कोशिश करते तो अवार्ड के साथ मिलने वाली सहायता राशि दोनों अस्पतालों को मिल सकती थी जिससे काफी कार्य यहां पूर्ण हो सकते थे। यह फिसडडी पना क्यों रहा इसका मनन तो संबंधित अधिकारियों को करना है।
बीते दिनों प्रसृति एवं स्त्री रोग सोसायटी की संरक्षक डॉ. उषा शर्मा अध्यक्ष डॉ. भारती माहेश्वरी सचिव डॉ. प्रियंका गर्ग, एसीएमओ डॉ कांति प्रसाद व डॉ. आरके सरोहा की उपस्थिति में जिले में स्वास्थ्य सेवाओं को सृदूढ़ बनाने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के मिलकर काम करने पर चर्चा हुई। इनिशिएटिव संस्था के सहयोग से कार्यक्रम में इस पर मंथन भी हुआ। सीएमओ डॉ. अशोक कटारिया की अध्यक्षता में हुई बैठक में सरकार के स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर चर्चा हुई इसमें जिले के 29 निजी अस्पतालों से 19 प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञों व दस अन्यों ने भाग लिया। स्वास्थ्य सेवा को सुदृढ़ बनाने के लिए यह चर्चा हुई अच्छा है लेकिन निजी अस्पतालों की जो स्थिति है उसका अंदाजा सरधना विधायक अतुल प्रधान द्वारा सस्ती चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए जो संघर्ष कराया जा रहा है उससे तथा कोरोना काल में आयुष्मान योजना के तहत फर्जी उपस्थिति कुछ अस्पतालों में दिखाई गई तथा कई अस्पतालों के संचालक जो मरीजों को परेशान करते है। उसे देखकर कहा जा सकता है कि सरकारी और निजी अस्पताल आपस में सहयोग करें यह अच्छी बात है लेकिन उनके रहमोकरम पर मरीजों को नहीं छोड़ा जा सकता । अगर निजी क्षेत्रों को ही काम करना है तो सरकारी अस्पतालों और डॉक्टरों पर आम आदमी के टैक्स की कमाई क्यों खर्च की जा रही है।
मेरा मानना है कि जिले में 13 साल से पोलिया का केस ना मिलने से यह स्पष्ट हो रहा है कि गंभीर बीमारी से भी हम छुटकारा पा सकते है। मुख्यमंत्री हर जनपद के सीएमओ व डॉक्टरों को मलिन बस्तियों में भेजकर कैंप लगवाए जाएं और हर माह कैंसर टीबी और एडस डेंगू जैसी बीमारियों से बचाव के उपाय बताने के लिए मलिन बस्तियों में रैलियां कराने के साथ स्कूलों में विचार गोष्ठियां आयोजित कराई जाएं। क्योंकि जिस प्रकार बीमारियां बढ़ रही है उसे मोटा वेतन पाने वाले अफसर एसी कमरो में बैठकर दूर नहीं कर सकते।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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