asd संयुक्त राष्ट्र संघ और सभी देशों के प्रमुख सोंचे! ऑस्ट्रेलिया के लाजामानु की 800 आबादी भोजन के लिए क्यों है परेशान

संयुक्त राष्ट्र संघ और सभी देशों के प्रमुख सोंचे! ऑस्ट्रेलिया के लाजामानु की 800 आबादी भोजन के लिए क्यों है परेशान

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वर्तमान समय में भारत हो या ऑस्ट्रेलिया सभी को जीवनयापन से संबंध सुविधाएं प्राप्त करने का अधिकार है। तो फिर ऑस्टेªलिया के एक इलाके लाजामानु में रहने वाले 800 लोग इस अधिकार से वंचित क्यों है। परिस्थिति कोई भी हो लेकिन भोजन सबको उपलब्ध कराने का काम वहां की सरकार और समस्या आ रही है तो सहयोगी देशों के प्रमुखों को ऐसे मामलों में जहां तक मुझे लगता है सहयोग की भावना के साथ आगे आना चाहिए। अगर सीधे नहीं तो संयुक्त राष्ट के माध्यम से यह व्यवस्था करानी चाहिए कि लाजामानु तक जाने वाली सड़कें सही रहे और उसमें सुधार हो जिससे प्रमुख शहरों से नेटवर्क समाप्त हो जाने पर जो समस्या एक खबर के अनुसार यहां के नागरिकों के समक्ष आती है उससे उन्हें छुटकारा दिलाया जा सके। इस बारे में छपी एक खबर के अनुसार मध्य ऑस्ट्रेलिया में गाड़ी चलाना आसान नहीं है, क्योंकि यहां कदम-कदम पर धूल, बाढ़, आग, ध्वस्त सड़कों और नेटवर्क की कमी से जूझना पड़ता है। और जब गाड़ी में खाने-पीने की चीजें भरी हों, तब बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है। ऑस्ट्रेलिया सरकार ने स्थानीय समुदाय के लिए वर्ष 1949 में उत्तरी इलाके के लाजामान में स्वायत्त क्षेत्र का गठन किया था। बाद में दूसरे समुदायों के अनेक लोग विस्थापित होकर लाजामानु में बस गए। यहां की आबादी आज सिर्फ 800 है। ऑस्ट्रेलिया के दूसरे आदिवासी समुदायों के इलाकों की तरह लाजामानु में भी लोगों की जरूरतों की पूर्ति के लिए एक ही दुकान है, जिसमें खाने-पीने की चीजों से लेकर डाइपर और वाशिंग मशीन तक सब मिलता हैं। इस दुकान में सामान की आपूर्ति सप्ताह में, तो कभी दो सप्ताह में एक बार होती है। सामान की आपूर्ति करने वाले ट्रक ड्राइवरों को उबड़-खाबड़ रास्तों और प्रतिकूल वातावरण से गुजरना पड़ता है
रिकॉर्ड बारिश, तूफान व बाढ़ के कारण लाजामानु तक पहुंचने वाली इकलौती सड़क इस साल के शुरुआती कुछ महीने तक कटी रही थी। इससे लाजामानु की अकेली दुकान में खाने-पीने के सामान, पानी और दवाओं की आपूर्ति रुक गई। जब हालात बेकाबू हुए, तंब लाजामानु के लोग और जरूरी सामान के आपूर्तिकर्ताओं ने नॉर्दन टेरिटरी की सरकार से आपातकाल की घोषणा करने के लिए कहा। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ, तब स्थानीय लोगों के प्रयास से एक इंजन वाले एयर चार्टर के जरिये लाजामानु में जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति हुई। लेकिन मांग के हिंसाब से मंगाया गया सामान कम था। स्थानीय लोगों की शिकायत थी कि अगर बड़े सैन्य विमानों से सामान की आपूर्ति होती, तो दुकान में जरूरी चीजों की इतनी कमी नहीं होती। लाजामानु से 500 मील दूर स्थानीय मिनेरी समुदाय के शहर हॉडसन डाउन्स और वहां से 750 मील दूर बोरोलूला शहर भी बाढ़ के कारण मुख्यधारा से कट गए हैं। बोरोलूला में खाद्य पदार्थों की कमी है, जिससे खरीदारी बढ़ गई है। नेटवर्क ठप हो जाने से वहां क्रेडिट कार्ड के जरिये भुगतान भी नहीं हो पा रहा। मार्च के अंत तक बाढ़ के भयावह हो जाने से बोरोलूला से लोगों को निकालने के लिए सैन्य अभियान चलाया गया। इन विभिन्न जगहों के स्थानीय समुदायों का कहना है कि विपत्ति के समय ऑस्ट्रेलिया की संघीय सरकार और नॉर्दन टेरिटरी सरकारों का रवैया निराशाजनक रहा है।
मुझे लगता है कि जब दुनियाभर के लोग चौरिटी की योजना बनाते हैं और संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारी सबकी भलाई की सोच तो इनको ध्यान में रखते हुए योजनाएं तैयार करते हैं उस समय मात्र 800 आबादी की आबादी वाले ताजामानु जैसे स्थानों को भी ध्यान में रखकर योजनाएं बनानी चाहिए और दुनिया में जहां छोटे कबीलों व टापुओं पर बने शहरों के नागरिकों के सामने आने वाली समस्याओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। क्योंकि जहां तक बताते हैं ऑस्ट्रेलिया के साथ ही दुनिया के कितने स्थान ऐसे हो सकते हैं जहां के नागरिको को भोजन पानी और सुविधाएं उपलब्ध नहीं होते हैं। उन्हें यह सब उपलब्ध कराने के लिए हमें भविष्य योजना तय करना चाहिए। जिससे कोई भी भूखा ना सोए और सभी की आवश्यकता पूरी हो।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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