प्रयागराज,10 जुलाई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरफेसी एक्ट के तहत ऋण वसूली कार्रवाई में आपराधिक हमले को न्याय व निष्पक्षता के उद्देश्य को विफल करने वाला अकल्पनीय नया तरीका करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह केवल शारीरिक हमले का मामला नहीं है बल्कि कानून व विधान पर हमले के समान है।
यह कानून को दरकिनार करने का दुस्साहस है। कोर्ट ने कहा कि कानून को नकारने की बढ़ती प्रवृत्ति को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। हम कानून के शासन की रक्षा व न्याय हित में हस्तक्षेप करेंगे। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ एवं न्यायमूर्ति पीके गिरि की खंडपीठ ने डीईबी बैंक लिमिटेड की याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने एडीएम गाजियाबाद को निर्देश दिया कि याची को सुनवाई का अवसर देते हुए धारा 14 की अर्जी दो माह में नए सिरे से निस्तारित करें। याची बैंक ने त्यागी मार्केट लोनी के सेक्टर दो व तीन में ब्लाक एच के मकान की सुरक्षित संपत्तियां तत्काल दिलाने की मांग प्रतिभूतिकरण एवं वित्तीय संपत्तियों का पुनर्निर्माण और प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम 2002 की धारा 14 के तहत की।
यह था मामला
डीसीबी (डेवलपमेंट क्रेडिट बैंक) ने एक संपत्ति को बंधक बनाकर करीब 18 लाख रुपये ऋण स्वीकृत किया था। कर्जदार ने जब ऋण नहीं चुकाया तो बैंक ने सरफेसी एक्ट के तहत संपत्ति पर कब्जे के लिए आवेदन किया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। नीलामी की कार्यवाही की गई और बोलीदाता के पक्ष में बिक्री प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया। इस बीच कर्जदार ने कथित रूप से संपत्ति पर कब्जा कर लिया। याची बैंक ने दुबारा सरफेसी एक्ट के तहत कब्जे के लिए आवेदन किया, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि एक बार कब्जे का आदेश दिया जा चुका है तो नए आवेदन पर विचार नहीं किया जा सकता। याची बैंक ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।