वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में डीजीपी की नियुक्ति प्रदेश सरकार के अधिकार में लाने हेतु किए गए निर्णय को लेकर आलोचना और समर्थन का दौर चल रहा है। जबकि मुझे लगता है कि 2006 में दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुधारों को लेकर दिए गए फैसले को अमल में ना लाने के बाद जिन आठ राज्यों को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना का नोटिस जारी किया था उनमें यूपी भी शामिल था। अब अदालत का सम्मान करते हुए मुख्यमंत्री द्वारा नवीन पुलिस अधिनियम बनाया जा रहा है उसके तहत अब ना तो प्रदेश सरकार को डीजीपी की नियुक्ति के लिए केंद्र को पांच अधिकारियों के नाम भेजने पड़ेंगे और ना उनके लौटने की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। अब सरकार अपने हिसाब से यूपी में डीजीपी की नियुक्ति नियमावली 2024 के तहत कर सकती है। खबर के अनुसार पीएम मोदी से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मुलाकात के बाद लिए गए इस निर्णय को कुछ नेता केंद्र व प्रदेश सरकार के बीच चल रहे मनमुटाव का परिणाम बता रहे हैं। तो कुछ कह रहे हैं कि यह सही निर्णय है। जो भी हो अब योगी आदित्यनाथ 2027 का चुनाव अपने मनपसंद डीजीपी की मोैजूदगी में करा सकेंगे। पूर्व में बीएस चौहान, आरके विश्वकर्मा, विजय कुमार, और वर्तमान डीजीपी प्रशांत कुमार को लेकर लोगों का कहना है कि यह सीएम की अपनी पसंद नहीं थे। मगर मेरा मानना है कि अगर ऐसा होता तो क्या कोई भी डीजीपी अपने पद पर रहकर कार्य कर सकता था। फिर प्रशांत कुमार को तो काफी छूट भी मिली हुई हैं और इसके उदाहरण के रूप में पूर्व डीजीपी मुकुल गोयल को देख सकते हैं जो सीएम से तालमेल ना होने के चलते काबिलियत के बावजूद यूपी के डीजीपी नहीं बने रह पाए। उप्र के पूर्व डीजीपी और दबंग पुलिस का इनकलाब बनाने में सफल रहे भाजपा नेता बृजलाल का कहना है कि डीजीपी की नियुक्ति के लिए बनाई गई नियमावली सही है। आने वाले समय में इसके अच्छे परिणाम होंगे। मगर सपा मुखिया अखिलेश यादव का कहना है कि इसे एक खास अधिकारी को बचाने के लिए अपनाया गया पैंतरा है। शायद इसी कारण प्रशासनिक अमले में विधि रूप से इसे पुख्ता करार दिया जा रहा है। अखिलेश यादव ने अपने एक्स पर लिखा कि सुना है किसी बड़े अधिकारी को स्थायी पद देने और और उसका कार्यकाल 2 साल बढ़ाने की व्यवस्था बनायी जा रही है। उन्होंने कहा कि सवाल ये है कि व्यवस्था बनानेवाले खुद 2 साल रहेंगे या नहीं। कहीं ये दिल्ली के हाथ से लगाम अपने हाथ में लेने की कोशिश तो नहीं है। दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अजय राय का कहना है कि तीन साल से कार्यवाहक डीजीपी से प्रदेश का पुलिस महकमा चलवाया जा रहा है। यह निर्णय भाजपा की सिर फुटव्वल का खामियाजा जनता भुगत रही है। भाजपा विधायक राजेश ने लिखा कि अखिलेश जी पहले आपको कार्यवाहक डीजीपी होने पर परेशानी थी।
मुझे ना तो सरकार के निर्णय पर टिप्पणी करनी है ना विपक्ष के आरोपों पर। जहां तक मुझे लगता है यही कहा जा सकता है कि स्थायी डीजीपी की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन पर जो यह निर्णय यूपी के सीएम ने लिया है वो जनहित का है। जो व्यक्ति सरकार चला रहा है अगर उसके हिसाब से अफसर तैनात नहीं होंगे तो शांति व्यवस्था कैसे बन पाएगी। वर्तमान डीजीपी प्रशांत कुमार इस मामले में जो प्रयास कर रहे हैं वो उनका प्रशंसनीय कार्य है। जहां तक 2027 के चुनाव की बात है। तो वो तो वक्त ही बताएगा क्योंकि यह सही है विपक्ष की ताकत भी बढ़ रही है। मगर जो आरोप लगाए जा रहे हैं उसमें तो यही कहा जा सकता है कि अगर ऐसा होता तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं मिलती जितनी मिली।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन पर प्रदेश सरकार को डीजीपी बनाने का अधिकार गलत नहीं
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