Date: 23/11/2024, Time:

विपक्ष के सोशल मीडिया के रणनीतिकार हाथी के दांत दिखाने के और खाने को और बनकर रह गये, गठबंधन के नेता आम आदमी की समस्याओं से संबंध मुद्दे उठाते तो लोकसभा चुनाव परिणाम बाकई आश्चर्यजनक हो सकते थे

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वैसे तो चुनाव चाहे ग्राम प्रधानी का हो या लोकसभा का अथवा प्राईवेट संस्थाओं का उसमें जोर अजमाईस कर रहे व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण होता है। लेकिन वर्तमान में हो रहा लोकसभा निर्वाचन कांटे का होने के साथ साथ हर उम्मीदवार और पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया है। कुछ लोगों का कहना है कि निर्वाचन आयोग के द्वारा लगाये गये प्रतिबंधों के चलते कम प्रचार होने के बाद भी यह चुनाव आजतक का सबसे महत्वपूर्ण हो सकता है। सभी दलों के राजनेताओं का कहना है कि परिणाम आश्चर्यजनक होंगे। लेकिन मतदाता खामोश है। भाजपा और उसके सहयोगी दल केन्द्र सरकार में विराजमान है और कई प्रदेशों में भी उनकी सरकार चल रही है इसलिए मंत्री और मुख्यमंत्री इसके उम्मीदवारों का प्रचार कर रहे तो विपक्ष के बड़े नेता भी गठबंधन उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रहे है। और यह कहने में कोई हर्ज महसूस नहीं हो रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के इस बार 400 पार के दावे के बावजूद भी नागरिकों के अनुसार विपक्ष की स्थिति भी उतनी कमजोर नहीं है जितनी 2014 और 2019 में थी। क्योंकि श्री नरेन्द्र मोदी जी के धुआंधार प्रचार और पूर्व में इनके समकक्ष विपक्ष के नेता राहुल गांधी जी की भारत जोड़ो यात्रा और सपा मुखिया अखिलेश यादव का पिछले चुनाव में पराजय के बावजूद रहा अच्छा प्रदर्शन। मतदातों को इनके प्रति भी आर्कषित कर रहा है। तथा गांधी परिवार के सोनिया गांधी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का आज भी मतदाताओं में क्रैज नजर आता है। कुल मिलाकर सभी दलों के नेता एड़ी से चोटी तक जोर स्वयं और अपने उम्मीदवारों को जीताने के लिए लगा रहे है।
जहां तक पढ़ने और सुनने व देखने को मिल रहा है इस चुनावी महारथ में बीते दस सालों में प्रयोग किये गये चुनावी राजनीतिक मुद्दे गुम हो गये है। और सभी दलों के नेता चुनाव जीतने के बाद वो क्या क्या मुफ्त की रेबड़ियां बांटेंगे और छूट देंगे इसका भरपूर प्रचार कर रहे है। लेकिन ये कोई नहीं बता रहा है कि जिन प्रदेशों में इनकी सरकार है ये सुविधाऐं अब तक वहां क्यों नहीं दी जा रही। सत्ताधारी दलों को अपने वायदों पर भरोसा नजर आ रहा है तो विपक्ष के नेता भी उन्हीं के सुर में उनका जबाव दे रहे है। वर्तमान में जो नागरिकों के सामने विकट समस्याऐं कानून व्यवस्था महिलाओं से छेड़छाड़ महंगाई और लोकत्रांतिक प्रक्रियाओं में सबसे मजबूती जिन्हें दी जानी चाहिए थी चौथे स्तम्भ मीडिया का जो कुछ सरकारी अफसर उत्पीड़न कर रहे है उन पर कोई मजबूती से बोलने को तैयार नजर नहीं आता है और आम आदमी इसलिए चुप है कि अगर वो बोला तो किसी न किसी आरोप में जेल की हवा तो खानी पड़ेगी ही उत्पीड़न भी शुरू हो सकता है।
इस चुनाव में कोई भी हारे कोई भी जीते लेकिन एक बात जरूर नजर आई कि 2014 और 2019 के चुनाव में सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग कर सत्ता तक पहुंची भाजपा इस बार भी इस मीडिया का उपयोग करने में बिलकुल पीछे नहीं है उसके द्वार हर स्तर पर और हर मामले में सोशल मीडिया मंचों का उपयोग किया जा रहा है लेकिन विपक्षी दल गठबंधन के सहभागी कांग्रेस सपा आप अथवा अन्य दल इस स्तर पर सोशल मीडिया का उपयोग नहीं कर पा रहे जिससे उन्हें जनता तक अपनी बात पहुंचाने में आसानी हों। जहां तक दिखाई दे रहा है विपक्षी दलों में मीडिया मैजेमेंट और खासकर सोशल मीडिया के उपयोग के लिए बनाये गये पदाधिकारी हाथी के दांत खाने के ओर दिखाने के और साबित हो रहे है। जहां तक पता चलता है और सुनने को मिलता है आप कांग्रेस और सपा के सोशल मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय कर्णधार अपनी जिम्मेदारी को सही प्रकार से निभाते तो इस बार की चुनावी स्थिति और परिणाम बाकई में आश्चर्यजनक साबित हो सकते थे। लेकिन ये सिर्फ नाम कार्ड और समाचार पत्रों में अपनी फोटो और विज्ञप्ति छपवाने या सोशल मीडिया में चलाने तक ही सिमटकर रह गये ज्यादातर मामलों में । इन्होंने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह किसी भी रूप में सफलता के साथ नहीं हुए और यह कहने में भी कोई हर्ज महसूस नहीं हो रहा है कि इन्होंने ज्यादातर पार्टी मुखिया और उम्मीदवारों को अंधेरे में रखा इस कारण ना तो यह पार्टी की नीतियां मतदाता तक पहुंचा पाए और ना ही उम्मीदवार और नेता वहां तक पहुंच पाए। कुल मिलाकर विपक्ष सोशल मीडिया मंचों का सही उपयोग भारत निर्वाचन आयोग की नीति के अनुसार भी नहीं कर पाया।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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