asd जनप्रतिनिधियों के वेतन और पेंशन बढ़ोत्तरी हो समाप्त

जनप्रतिनिधियों के वेतन और पेंशन बढ़ोत्तरी हो समाप्त

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केंद्रीय वित्त सचिव श्री सोमनाथ का कहना है कि पुरानी पेंशन प्रणाली व्यवस्था लागू होना अब मुमकिन नहीं है। इसके कारण के रूप में उनका कहना था कि अगर यह लागू होती है तो आम आदमी पर टैक्स बढ़ाने पड़ेंगे। और उसका लाभ सिर्फ कुछ लोगों को मिलेगा क्योंकि सभी लोग सरकारी नौकरी में नहीं है। इसलिए यह व्यावहारिक नहीं है। अगर ध्यान से सोंचे तो उनका कथन बिल्कुल सही है। क्योंकि पुरानी पेंशन लागू होती है तो सरकार पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा। और उसकी भरपाई सिर्फ टैक्स बढ़ाकर ही हो सकती है। मेरा मानना है कि केंद्रीय वित्त सचिव के कथन से यह स्पष्ट है कि कहीं भी अगर कोई बढ़ोत्तरी की जाती है तो उसकी पूर्ति के लिए फिलहाल तो सिर्फ कर बढ़ाना ही एक समाधान नजर आता है। क्येांकि सरकार द्वारा चलाए जाने वाले उपक्रमों से तो शायद इतनी आमदनी नहीं होती है जो किसी नई व्यवस्था की पूर्ति हो सके। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब सरकार पुरानी पेंशन व्यवस्था आर्थिक कारणों से वर्तमान में लागू करने की स्थिति में नहीं है तो फिर सांसद और विधायकों को जो वेतन और पेंशन मिल रही है उनकी बढ़ोत्तरी के बारे में तो सोचा ही नहीं जाना चाहिए। क्योंकि इसका आर्थिक बोझ भी आम नागरिकों पर ही पड़ना है। आज एक खबर पढ़ने को मिली कि राजस्थान के विधायकों को हर वर्ष दस फीसदी वेतन और पेंशन बढ़कर मिलेगी। अब अगर यह खबर ठीक है तो कितना आर्थिक बोझ सरकार पर पड़ेगा इसका जोड़ घटान तो वित्त विभाग को ही करना है।
बताते चलंें कि 2026 तक चर्चा अनुसार लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन होना है। उसके बाद लोकसभा सदस्यों की संख्या 543 के स्थान पर 720 हो जाएगी। इससे यह स्पष्ट है कि लगभग 180 सांसदों का खर्च और बढ़ जाना है। जो जरूरी भी है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि जितने लोकसभा क्षेत्र अब है उनकी दूरी नापना और वहां के निवासियों से मिलना सांसदों से मिलना भी आसान नहीं होता।
मगर मेरा मानना है कि सांसदों विधायकों तथा विधान परिषद के सदस्यों की संख्या में बढ़ती जनसंख्या और क्षेत्रफल के हिसाब से बढ़ोतरी होना जरूरी है लेकिन जिस प्रकार से सरकार द्वार वित्तीय समस्याओं को ध्यान में रखते हुए पुरानी पेंशन व्यवस्था समाप्त करने और 2005 के बाद जो लोग नौकरी में आए उनको पेंशन ना देने की बात सुनाई देती है। उसके हिसाब से मुझे लगता है कि सरकार की आमदनी और आर्थिक स्थिति को देखते हुए नए सांसदों व विधायकों की पेंशन भी बंद होनी चाहिए। जब तक वो हैं तब तक वेतन मिलना चाहिए और यह जो राजस्थान के सीएम द्वारा हर साल दस प्रतिशत वेतन और पेंशन विधायकों की बढ़ाने की बात की गई है इस पर भी रोक लगनी चाहिए क्योंकि एक नागरिक का यह कहना सही है कि अगर यह पेंशन और वेतन बढ़ते रहे तो एक दिन ऐसा आएगा कि टैक्स देते देते नागरिकों की कमर टूट जाएगी। करना क्या है यह तो शासन और सरकार का काम है लेकिन जिस प्रकार से केंद्रीय वित्त सचिव द्वारा पुरानी पेंशन को लेकर बिंदु दर्शाए गए हैं उससे तो यही लगता है कि अब सरकार के खर्च बढ़ाने की नहीं कम करने की जरूरत है आम आदमी के हित में।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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