लददाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर 30 सितंबर को समर्थकों के साथ सोनम वांगचुक लेह से दिल्ली आए। उन्हें राजधानी के सिंघु बार्डर पर हिरासत में ले लिया गया था। लेह एपेक्स बॉडी के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों को दो अक्टूबर की रात को दिल्ली पुलिस ने रिहा कर दिया। जिसके बाद से लददाख भवन में उनके द्वारा अनिश्चितकालीन अनशन शुरू किया गया। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे सोनम वांगचुक का कहना है कि अभी तक किसी सरकारी प्रतिनिधि ने उनसे संपर्क नहीं किया। कुछ आंदोलनकारियों का यह भी कहना है कि उनसे लददाख के लोगों को मिलने के लिए इधर नहीं आने दिया जा रहा है। आंदोलनकारियों का कहना है कि यह दुखद है कि लोकतंत्र में हमें अपना दर्द बयान करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। एक खबर के अनुसार यह लोग अपनी चिंताओं और मुददों से अवगत कराने के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मिलने की अनुमति देने की मांग के साथ ही छठी अनुसूची में लददाख को शामिल करने की मांग, लददाख को लोकसेवा आयोग और लेह कारगिल के लिए अलग लोकसभा सीटों की मांग कर रहे हैं।
लददाख एक ठंडी जगह है। यहां का तापमान अत्यंत कम होता है। उसके बावजूद इन शांति प्रिय प्रदर्शनकारियों को दिल्ली के तापमान में बैठकर अनशन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यह भी पढ़ने को मिल रहा है कि 40 डिग्री तापमान में बैठे यह लोग कई बीमारियों से ग्रस्त बताए जा रहे हैं। मेरा मानना है कि अगर इनकी मांग देश के संविधान के विपरित है या सरकार मानती है कि इनकी बात नहीं सुनी जानी चाहिए तो जनप्रतिनिधियों को यह बात स्पष्ट कर देनी चाहिए। वरना मुझे लगता है कि जिस प्रकार संविधान की छठी अनुसूची में त्रिपुरा, असम, मेघालय, मिजोरम आदि राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों के लिए प्रावधान शामिल है। अगर संभव हो तो इनकी बात भी मानकर आगे की कार्रवाई की जाए लेकिन इनसे किसी जनप्रतिनिधि का ना मिलना सही नहीं कह सकते। क्योंकि इसका लाभ कुछ लोग गलत भावना से भी उठाने की कोशिश कर सकते हैं। राष्ट्रहित में मुझे लगता है कि अगर सोनम वांगचुक संविधान के तहत मांग कर रहे हैं तो उनकी बात सुनी जानी चाहिए।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सोनम वांगचुक और साथी आंदोलनकारियों की बात सुने सरकार
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