पिछले चालीस साल से 107 परिवार बंगाली हिंदू नंगला गौशाला में झील की जमीन पर बसे हुए हैं। झील व तालाबों की देश में अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए एनजीटी के आदेश पर इन्हें यहां से हटाया जा रहा है। इस पर तो कोई विरोध नहीं है। लेकिन हस्तिनापुर से कानपुर ले जाकर इन परिवारों को बसाने की योजना समयानुकुल नहीं कही जा सकती। मुझे लगता है कि 40 साल से जो व्यक्ति कहीं रह रहा हो उसके रिश्ते नाते और संबंध मजबूत हो जाते हैं। आसपास के लोग तथा चार दशक में हर व्यक्ति अपनी व्यवस्था के अनुसार काम का जुगाड़ भी करता है। ऐसे में इन्हें यहां से सैंकड़ों मील दूर ले जाकर बसाना एक प्रकार से इनके घरों को उजाड़ना ही कह सकते हैं जो सरकार की नीति है। मुझे लगता है कि कानपुर की बजाय झील की जमीन से हटाकर इन परिवारों को आसपास के क्षेत्र में सरकारी भूमि पर बसा दिया जाए तो अच्छा है। क्योंकि आधी जिंदगी इनकी यहां बीत गई। जीवन के अंतिम पड़ाव में जो लोग पहुंच चुके हैं वो कानपुर जाकर इतने रिश्ते नाते बना पाएंगे और व्यापार कर पाएंगे यह भी पक्का नहीं है। इसलिए यूपी सरकार इन्हें कानपुर भेजती है तो इन्हें खेती की जमीन के साथ रोजगार भी उपलब्ध कराए वरना हस्तिनापुर में ही किसी दूसरे जगह पर इन परिवारों को बसाया जाए। अगर यह देश के किसी प्रदेश का हिस्सा है तो इनके साथ ऐसा नहीं होना चाहिए और अगर घुसपैठिये हैं तो कानपुर में भी नहीं बसाना चाहिए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सरकार झील की जमीन से हटाकर हस्तिनापुर में ही बसाए 107 बंगाली परिवारों को
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