सौर ऊर्जा के कल पुर्जे बनाने का संयंत्र लगाने के लिए खर्च होने वाले सात हजार करोड़ रूपये में से पांच प्रतिशत रकम 350 करोड़ रूपये बतौर कमीशन मांगे जाने की शिकायत पर इन्वेस्ट यूपी के सीईओ अभिषेक प्रकाश को शासन ने निलंबित कर दिया गया है और इस मामले में निकान्त जैन गिरफ्तार हो चुका है। राजस्व परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष रजनीश दुबे और कानपुर के तत्कालीन मंडलायुक्त अमित गुप्ता की रिपोर्ट पर चार एसडीएम चार तहसीलदार सहित 16 अधिकारियों को खबर के अनुसार दोषी मानकर जांच चल रही है बताई जाती है। इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी द्वारा डिफेंस कॉरिडोर के लिए लखनऊ के भटगांव भूमि अधिग्रहण धांधली में भी तत्कालीन आईएएस अभिषेक प्रकाश को दोषी बताया जा रहा है। बताते हैं कि इसमें आरक्षित सरकारी जमीन भी घपलेबाजों के नाम की गई बताई जा रही है। कुछ अधिकारी एडीएम प्रशासन अमर पाल सिंह, एसडीएम संतोष कुमार शंभूशरण सिंह, आनंद कुमार सिंह, देवेंद्र कुमार विजय कुमार ज्ञानेंद्र सिंह, भुवनेश सिंह, मनीष त्रिपाठी, कविता ठाकुर, हरीशचंद व ज्ञानप्रकाश राधेश्याम, जितेंद्र सिंह व नैंसी शुक्ला को निलंबित किया जा रहा है। इस मामले में कोर्ट ने इन्वेस्ट यूपी के अधिकारी की संलिप्ता को स्पष्ट करने में कौन कौन शामिल थे उनकी भी रिपोर्ट मांगी है। इसमें मुख्य मीडिएटर कहे जा रहे निकांत जैन जेल जा चुके हैं।
यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का कहना है कि विजिलेंस जांच में आईएएस अफसरों पर कार्रवाई आसान नहीं होती है। आईएएस अभिषेक प्रकाश के खिलाफ सीबीआई जांच होनी चाहिए और राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई करने के साथ ही इन्हें बर्खास्त या समयपूर्व सेवानिवृति देनी चाहिए। उनका कहना है कि बसपा सरकार में हुए 14 अरब रूपये के स्मारक घोटाले में आईएएस अफसरों के नाम सामने आए थे। लोकायुक्त ने सभी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। करीब 12 साल से फाइल विजिलेंस में धूल खा रही है लेकिन रामबोल को छोड़कर कोई सलाखों के पीछे नहीं गया।
इस प्रकरण में क्या होगा यह तो समय ही बताएगा। व्यवस्थाएं बदलेंगी। तब तक कौन क्या निर्णय लेता है यह कोई नहीं कह सकता लेकिन एक बात जरूर कही जा सकती है कि जिस प्रकार प्रदेश में जमीनों की कीमत बढ़नी शुरू हुई है उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि बिल्डरों और अफसरों व दलालों तथा भूमाफियाओं के बीच जो गठजोड़ की परंपरा शुरू हुई है उस पर अंकुश लगना भ्रष्टाचार को रोकने के लिए समय की सबसे बड़ी मांग कही जा सकती है।
प्रदेश के सीएम योगी के नेतृत्व में सरकार के आठ साल की उपलब्धियां जनप्रतिनिधि और मंत्री गिना रहे हैं। इसमें कुछ गलत भी नजर नहीं आता है क्योंकि काम तो हुए हैं। मगर इसके साथ ही यह भी सब जानते हैं कि जितने काम की जांच शुरू हुई है ज्यादातर में घपलों की बात सामने आ रही है जो इस बात का प्रतीक कह सकते हैं कि सरकार की मंशा तो अच्छी है। घोषणाओं के अनुरूप वो कार्य भी कर रही है लेकिन कुछ विभागों के अधिकारी सरकारी नीति कार्यो के आदेशों को ना कराकर अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने के लिए नीतियों को तोड़मरोड़कर काम कर रहे हैं उससे सरकार की उपलब्धियां जितनी होनी चाहिए थी उनमें कुछ कमी इन अधिकारियों के कारण नजर आ रही है।
प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का कथन बिल्कुल सही है। लेकिन आए दिन अगर मीडिया की सुर्खियां बन रही नगर निगम और प्राधिकरणो की कार्यप्रणाली पर ध्यान दिया जाए तो आईएएस अधिकारी अभिषेक समेत प्रदेश के इन विभागों के कुछ अधिकारी सरकारी नीति के विरोध में काम करते नजर आ जाएंगे। ध्यान से देखें तो मेरठ विकास प्राधिकरण और नगर निगम मेरठ के कुछ अधिकारियों की सरकार खुफिया जांच कराए तो उसकी निर्माण नीति और जमीनों के बारे में अपनाई जा रही योजनाओं के विपरित अवैध निर्माण और भूमाफियाओं को बचाने के लिए सीएम के जनशिकायत पोर्टल पर शिकायतों का फर्जी निस्तारण और कच्ची कॉलोनियों को काटने वालों को बढ़ावा और नगर निगम में सफाई आदि में घोटाले मिल सकते हैं। अब प्रदेश के मुखिया थोड़ी सी सख्ती कराएं तो अभिषेक जैसे कितने ही घोटाले खुलकर सामने आ जाएंगे।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
ऊर्जा निगम और भूमि घोटाले में फंसे अधिकारियों की सीबीआई से जांच की पूर्व डीजीपी की मांग है उचित, मुख्यमंत्री जी मेडा और नगर निगम के कुछ अफसरों की गोपनीय जांच कराई जाए तो अनेक घपले खुलकर सामने आ सकते हैं
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