बसंत हर साल आता है उसकी खुमारी भी हमेशा चढ़ती है उत्साह और उल्लास से प्रेम की भावनाऐं भी खूब उछाले लेती है लेकिन इस बार ज्ञान की माता सरस्वती जी की पूजा से शुरू होने वाली बंसत पंचमी पर कुछ ऐसा माहौल भी बन सकता है जो एक पुरानी मनोज कुमार की फिल्म पूरब पश्चिम का गाना चल सन्यासी मंदिर में तेरा चिमटा मेरी चूड़ियां दोनों साज बजाएंगे का माहौल भी बन सकता है। क्योंकि इस बार बंसत पंचमी वेलेन्टाइन-डे एक दिन ही मनाया जा रहा है। और यह किसी से छिपा नहीं है कि प्रेम के रंग में रंगे प्रेमियों के लिए हर जगह एक समान है वो कब कहां प्रेम की पिंग बढ़ाने लगे कोई कुछ नहीं कह सकता। दूसरी तरफ अभी से जगह जगह बंसत पंचमी तैयारियों के साथ ही सत्संग समारोह शुरू हो गये है। बीते दिनों दिव्य ज्योजि जाग्रति संस्था के तत्वाधान में बंसत पंचमी पर आधारित सत्संग समागम जागृति विहार के सेक्टर 5 में हुआ जहां साध्वी अंबिका भारती ने बंसत पंचमी का महत्व बताते हुए कहा कि बंसत रितू प्रकृति की यौवन अवस्था है। हम हर संभव प्रयास करे कि हमारे कदम शीघ्रता से ईश्वर की ओर बढ़े।
बंसत पंचमी को हम पतंगों का उत्सव भी मनाते है और हर साल की तरह इस बार भी बाजारों में तरह तरह की पतंग और चरखिया दिखाई देने लगी है। एक समय तथा जब खैरनगर इसका मूल मार्किट था मगर अब जनपद के हर कोने में पतंग की दुकान सजी मिलती है और वहां हर तरह का मांजा और पतंग और डोर उपलब्ध होती है। जिस प्रकार से समाज में बदलाव आ रहे है उसी प्रकार पतंग मांजे चरखी और डोर के नामों में परिवर्तित हो रहे है और बाजारों में पांच रूपये से लेकर 100 रूपये की पतंग मौजूद है तो ऑटोमैटिक चरखी भी अलग अलग ही उपलब्ध है।
बंसत पंचमी के दिन हमेशा ही अबूझ साया होता है इस दिन बिना मोहुरत निकलवाये शादी होती है इस बार 13 व 14 फरवरी को एक अनुमान अनुसार लगभग 1200 जोड़े एक दूजे के होंगे। जिस कारण से तमाम विवाह मंडप बैण्ड बाजे वाले तो बुक हो ही चुके है वेलेन्टाइन डे के चलते इस बार शादी विवाह वाले घर के लोगों को फूल भी काफी महंगे खरीदने पड़गे और बताते है कि विवाह मंडप वालों के भी नखरे भी कुछ ज्यादा दिखाई देने लगे है।
स्मरण रहे कि इस दिन ही होली जलने वाले स्थानों पर लकड़ियां रखी जाती है और रंग के दिन तक वो बढ़ती रहती है कई जगह मंदिरों में बंसत उत्सव की पूजा और मस्ती भरे माहौल में रंग गुलाल से उत्साह से भरे लोग होली खेलते है। कुल मिलाकर यह कह सकते है कि बंसत पंचमी से होली तक माहौल मदमस्त और खुशियों भर बना रहता है। साल में सावन और बंसत से लेकर होली तक मार्च में खूब मस्ती छाई रहती है तथा भगवान कृष्ण और राधा की नगरी मथुरा वृदावंन बरसाना के गांव गली मोहल्लों में बंसत और होली के बीच का माहौल देखने के लिए लोग दूर दूर से बरसाने की लठमार होली पर यहां पहुंचते है। यह उत्सव कितना बड़ा होता होगा इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि सरकार लठमार होली पर विशेष रूप से व्यवस्था कराती है तथा कानून व शांति बनाये रखने के लिए अधिकारियों की तैनाती भी की जाती है।
(प्रस्तुतिः अंकित बिश्नोई सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी संपादक व पत्रकार)