Date: 19/09/2024, Time:

एक देश एक चुनाव का निर्णय है सबके हित में, रामनाथ कोविंद और पीएम मोदी को इस फैसले के लिए पूर्ण बधाई

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जैसा कि हमेशा और हर मुददे पर पक्ष व विपक्ष की राय लगभग अलग होती है उसी प्रकार से एक देश एक चुनाव को लेकर बहुजन समाज पार्टी जो विपक्ष में है और उसके द्वारा इस निर्णय का समर्थन किया गया है को छोड़ दें तो कांग्रेस सपा द्वारा इसका खुलकर विरोध किया जा रहा है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए जब भी जरूरत हो चुनाव होने चाहिए। अससदुदीन औवेशी का कहना है कि आप अपनी सुविधा के आधार पर काम नहीं कर सकते। संवैधानिक सुविधाओं पर काम हो यह हमेशा आरएसएस और भाजपा की विचारधारा रही है लेकिन बीते दिवस कंेद्रीय कैबिनेट की पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में एक देश एक चुनाव पर विचार के लिए गठित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने कमेटी की दो चरणों में दी गई सिफारिशों पर कैबिनेट की मुहर लगा दी गई है। पीएम का कहना है कि इसके क्रियान्वयन के लिए समूहों का गठन किया जाएगा। कोशिश की जाएगी की 2029 का लोकसभा चुनाव राज्यों के चुनाव के साथ हो। खबर यह भी है कि सरकार शीतकालीन सत्र विधेयक पेश कर उसे जेपीसी को सौंप आम सहमति बनाने की कोशिश कर सकती है। जो भी हो फिलहाल 1983 में भी चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव की सिफारिश की थी तथा आजाद भारत के पहले चार लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे। जो यूपी से बदली से एक साथ चुनाव कराने की परंपरा। अगर यह हिसाब चलता है तो 2027 में यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद सरकार का कार्यकाल दो साल का होगा क्योंकि उसके बाद एक साथ चुनाव होने की व्यवस्था होगी। स्मरण रहे कि 18 हजार से अधिक पन्नों की राष्ट्रपति को सौंपी गई रिपोर्ट में इससे संबंध कई सिफारिशें की गई हैं।
आज के सभी समाचार पत्रों में एक देश एक चुनाव पर लगी कैबिनेट की मुहर की खबर सुर्खियों में रही तो नागरिकों में भी यह चर्चा हुई। फैसला तो सरकार जनप्रतिनिधियों और जो समिति बनेगी उससे विचार के बाद ही हो पाएगा। लेकिन एक खबर से पता चलता है कि इसे लागू करने के लिए संविधान में 18 संशोधन करने होंगे। कुल मिलाकर भाजपा और एनडीए के 32 दल एक देश एक चुनाव के समर्थन में है जबकि कांग्रेस समेत 15 विपक्षी दल विरोध मे हैं। इनमें से वो दल भी है जिन्होंने इस पर पहले कोई राय नहीं दी।
भारत में एक देश, एक चुनाव का इतिहास
भारत के पहले चार आम चुनावों (1951-52, 1957, 1962, 1967) के दौरान मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव के साथ अपने राज्यों की विधानसभाओं के लिए भी वोट डाले। बाद में नए राज्य बनने और कुछ राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह प्रक्रिया बंद हो गई। 19, 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाओं को भंग किया गया। इससे लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया पूरी तरह से बंद हो गई। 1983 में चुनाव आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने की व्यवस्था फिर से शुरू का सुझाव दिया। 1999 में विधि आयोग की रिपोर्ट में भी एक देश, एक चुनाव का उल्लेख किया गया। 2018 में विधि आयोग ने दोबारा एक देश, एक चुनाव का समर्थन किया। मई, 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने बार- बार एक देश, एक चुनाव के विचार का समर्थन किया। एक देश, एक चुनाव के समर्थकों का कहना है कि इससे देश में हर दूसरे माह कहीं न कहीं चुनाव नहीं होंगे। उदाहरण के लिए जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे हैं, वहीं हरियाणा के मतदाता विधानसभा चुनाव के लिए अक्टूबर में मतदान करेंगे। महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव अगले कुछ महीनों में होने वाले हैं। आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ होते हैं।
कमेटी ने क्या सुझाव दिए?
सभी विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए।
पहले चरण में लोकसभा-विधानसभा चुनाव और फिर दूसरे चरण में 100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं।
चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकाय चुनावों के लिए सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड बनाए।
देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग करने की भी सिफारिश की है।
वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने के क्या फायदे हैं?
लोकसभा के पूर्व सचिव एस के शर्मा का कहना हैं कि देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने से कई फायदे होंगे। जैसे-
चुनाव खर्च में कटौतीः देश में बार-बार चुनाव कराने पर लॉजिस्टिक्स, सुरक्षा और जनशक्ति समेत कई चीजों पर बहुत पैसा खर्च होता है। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में अनुमानित कुल खर्च करीब 1.35 लाख करोड़ रुपये तक हुआ है, जोकि 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में बहुत अधिक है। 2019 में 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। अगर राज्यवार विधानसभा व स्घ्थानीय चुनाव का खर्च भी जोड़ा जाए तो अंदाजा लगाइए कि ये खर्च कितना होगा। ऐसे में वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने पर चुनाव खर्च में कम होगा।
प्रशासनिक कार्यक्षमता में वृद्धि: चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू होने से नीति निर्माण और विकास कार्यों में रुकावट आती है। अगर पांच साल में सिर्फ एक बार आचार संहिता लागू होगी तो स्वाभाविक है कि प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी।
देश में हर छह माह चुनाव होने पर प्रशासनिक मशीनरी और सुरक्षाबलों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकता है।
लुभावने वादे नहीं आएंगे काम: बार-बार चुनाव लोकलुभावन नीतियों को बढ़ावा देते हैं। एक साथ चुनाव लंबी अवधि की नीति योजना और सतत विकास पर ध्यान केंद्रित करने में मददगार साबित होंगे।
वोट प्रतिशत में वृद्धिरू एक साथ चुनाव होने से मतदाता एक ही समय में कई वोट डाल सकते हैं, जिससे मतदाता भागीदारी में वृद्धि हो सकती है।
पक्ष विपक्ष की राय जो भी हो लेकिन मुझे लगता है कि एक देश एक चुनाव की व्यवस्था में कोई बुराई नहीं है। यह निर्णय लोकतंत्र को ज्यादा जीवित और भागीदार बनाने में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। क्येांकि एक तो इससे बार बार होने वाले चुनावों पर जो धन और समय खर्च होता है वो बचेगा। दूसरे देश के विकास और आम आदमी के हित में बनाई जाने वाली योजनाओं को अधिकारी तेजी से पूरा कराने का प्रयास कर सकते है। नागरिकों को भी बार बार वोट डालने की जहमत नहीं जुटानी पड़ेगी और जब देश में नगर निगम और पार्षद के चुनाव एक साथ हो सकते हैं तो लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में कहीं कोई कठिनाई नहीं होगी। इसे लेकर जो बाजारों में छुटटी होती है नागरिक प्रभावित होते है उससे छुटकारा मिलेगा। यह जरूर है कि पीएम साहब इस मुददे पर विपक्ष के साथ सहमति बनाने पर नागरिकों से भी राय ली जा सकती है। क्येांकि जितने विस्तार से इसे लागू करने का फैसला होगा उतना ही लोकतंत्र मजबूत होगा। अगर विपक्ष के दृष्टिकोण से देखें तो मुझे लगता है कि विधानसभा लोकसभा चुनाव एक साथ होने से विपक्ष दल एक होकर अपनी जीत का परचम फहराने का प्रयास कर सकते हैं क्योंकि कितनी बार देखा गया कि थोड़ा समय मिलने पर गठबंधन में वैचारिक मतभेद होने लगते हैं और फिर अपनी विचारधारा को लागू कराने और उस पर फैसला कराने के लिए सहयोगी दल मुख्य पार्टी पर दबाव बनाती हैं और जब आजादी के बाद पहले चुनाव को छोड़ दें तो बाकी चार चुनाव सीमित सुविधाओं में एक साथ कराए जा चुके हैं तो अब तो सरकार पर पूर्ण व्यवस्था और साधन सुरक्षा के इंतजाम भी मौजूद हैं। निर्वाचन आयोग भी निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए पूरी निगरानी की व्यवस्था कर सकता है इसलिए एक देश एक चुनाव मेरी निगाह में सबके हित मे है। इसके लिए अपनी रिपोर्ट बनाने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उनकी टीम व कैबिनेट मंजूरी दिलाने के लिए पीएम मोदी को बधाई व शुभकामनाएं दी ही जानी चाहिए।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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