asd दुष्कर्म जैसे अपराधों की कार्रवाई रदद करने से पहले समझौतों को परखे कोर्ट

दुष्कर्म जैसे अपराधों की कार्रवाई रदद करने से पहले समझौतों को परखे कोर्ट

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नई दिल्ली 18 नवंबर। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म जैसे गैर-समझौते योग्य अपराधों की कार्यवाही को रद्द करने की याचिका पर विचार करने से पहले हाईकोर्ट को पीड़ित और आरोपी के बीच समझौते की वास्तविकता के बारे में खुद को संतुष्ट करना चाहिए। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने गुजरात हाईकोर्ट के 29 सितंबर, 2023 के आदेश के खिलाफ एक दुष्कर्म पीड़िता की याचिका को स्वीकार कर लिया।

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, “कथित अपराध बहुत गंभीर थे. कथित अपराध आईपीसी की धारा 376(2)(N) और अत्याचार अधिनियम के तहत थे… हाई कोर्ट को खुद को संतुष्ट करना चाहिए कि पीड़ित और आरोपी के बीच वास्तविक समझौता है.”

पीठ ने कहा कि जब तक अदालत वास्तविक समझौते के अस्तित्व से संतुष्ट नहीं हो जाती, तब तक याचिका को रद्द करने की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ सकती. पीठ ने कहा कि अगर अदालत वास्तविक समझौते के अस्तित्व से संतुष्ट है, तो विचार करने योग्य दूसरा सवाल यह है कि क्या मामले के तथ्यों के आधार पर, याचिका को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग किया जाना उचित है.

शीर्ष अदालत ने 5 नवंबर को पारित आदेश में कहा, “भले ही समझौता स्वीकार करने वाली पीड़िता का हलफनामा रिकॉर्ड में हो, लेकिन गंभीर अपराधों और विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ मामलों में, पीड़िता की व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थिति सुनिश्चित करना हमेशा उचित होता है, ताकि अदालत ठीक से जांच कर सके कि क्या वास्तविक समझौता हुआ है और पीड़िता की कोई शिकायत नहीं है.”

शीर्ष अदालत ने गुजरात हाई कोर्ट के 29 सितंबर, 2023 के आदेश के खिलाफ दुष्कर्म पीड़ित महिला की याचिका को स्वीकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं. पीड़ित महिला की पैरवी करने वाले वकील ने दलील दी कि उनकी मुवक्किल अशिक्षित हैं और उन्हें विषय-वस्तु के बारे में बताए बिना ही संदिग्ध परिस्थितियों में टाइप किए गए हलफनामों पर अंगूठे के निशान लिए गए हैं.

हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा 376(2)(N) और 506 तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(R), 3(1)(W) और 3(2)(5) के तहत महिला द्वारा अपने मालिक (नौकरी पर रखने वाला) के खिलाफ दर्ज की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया था. हाई कोर्ट ने आरोपी द्वारा महिला के पति को तीन लाख रुपये का भुगतान और समझौते के आधार पर दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस आदेश को खारिज कर दिया और मामले को वापस हाई कोर्ट को भेज दिया. पीठ ने कहा कि कार्यवाही को रद्द करने के हाई कोर्ट के फैसले और आदेश को बरकरार नहीं रखा जा सकता.

शीर्ष अदालत ने कहा कि जब अशिक्षित व्यक्ति अंगूठे का निशान देकर ऐसे हलफनामों की पुष्टि करते हैं, तो आमतौर पर हलफनामे पर इसका उल्लेख होना चाहिए कि हलफनामे की विषय-वस्तु के बारे में संबंधित व्यक्ति को समझा दिया गया है.

यह देखते हुए कि हलफनामे की पुष्टि करने वाला अनुपस्थित था, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट को अपीलकर्ता को व्यक्तिगत रूप से अदालत के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश देना चाहिए था.

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हाई कोर्ट को यह सत्यापित करना चाहिए था कि अपीलकर्ता ने हलफनामे पर अपने अंगूठे का निशान लगाया है या नहीं, जब उसे हलफनामे की विषय-वस्तु के बारे में जानकारी दी गई थी और उसने हलफनामे की विषय-वस्तु को पूरी तरह समझ लिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक ही दिन में दो हलफनामे तैयार किए गए, जो हाई कोर्ट के लिए हलफनामों पर कार्रवाई करने से पहले बहुत सावधानी बरतने का एक और कारण होना चाहिए था. हाई कोर्ट को हलफनामों के तैयार करने के तरीके के बारे में न्यायिक अधिकारी द्वारा जांच का आदेश देने का पूरा अधिकार है.

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