लखनऊ 16 अगस्त। प्रदेश के प्राइमरी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को अध्यापक किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक दंड नहीं दे सकते हैं। इसे लेकर राज्य महानिदेशक कंचन वर्मा ने इस संबंध में सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी किया है। महानिदेशक की ओर से जारी आदेश में बच्चों को शारीरिक दंड दिए जाने पर गंभीर चिंता जताते हुए उनके अधिकारों के प्रति संवेदनशील तथा हिंसक संस्कृति का द्योतक मानते हुए पूर्ण प्रतिबंधित किया गया है।
विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा बच्चों को झड़ना फटकारना परिसर में दौड़ना चिकोटि काटना छड़ी से पीटना चांटा मारना चपत मारना घुटनों को पर बैठना यौन शोषण प्रताड़ना कमरों में बंद करना आदि प्रकार के दंड पर रोक लगाने का आदेश जारी किया गया है। ऐसा कोई कृत्य जिसमें छात्रों को अपमानित करना या नीचा दिखाना शारीरिक और मानसिक आघात पहुंचाने वाला हो उसे पूरी तरह से रोका गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि सभी बच्चों को व्यापक प्रचार प्रसार से यह बताएं कि वह शारीरिक दंड के विरोध में अपनी बात कहने का पूरा अधिकार रखते हैं।
वही इस आदेश को लेकर बीएसए प्रयागराज प्रवीण त्रिपाठी ने बताया कि किसी भी विद्यालय में बच्चों को दंडित नहीं किया जाएगा। यदि कहीं से ऐसी कोई शिकायत आती है तो जिम्मेदार अध्यापक के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी।
क्या नहीं कर सकते हैं शिक्षक
बच्चों को डांटना, फटकारना, परिसर में दौड़ाना, चिकोटी काटना, छड़ी से पीटना, चपत मारना, चाटा मारना, घुटनों के बल बैठाना, क्लास रूम में अकेले बंद करना, बच्चों को नीचा दिखाने से जुड़े कार्य, शारीरिक व मानसिक आघात पहुंचाने वाले काम पूर्णरूप से प्रतिबंधित हैं।
यह हैं दंड के स्वरूप
विभाग के अनुसार, विद्यालयों में शारीरिक उत्पीड़न में सामान्य रूप से शिक्षक व सहपाठियों द्वारा पंच मारना, नोचना, कान ऐंठना, छड़ी से मारना, पीठ पर मारना, किताब-कॉपी न लाने के लिए खड़ा करना, सिर पर वजन रखकर खड़ा करना, मुर्गा बनाना, उठक-बैठक कराना शामिल है। भावनात्मक उत्पीड़न में मौखिक, मानसिक उत्पीड़न, मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार, कमरे में बंद करना, कुर्सी से बांधना, आंखें तरेरना, कक्षा से बाहर करना, कक्षा में नजरअंदाज करना, बच्चों को आपस में थप्पड़ भी नहीं मरवा सकेंगे।
सामाजिक उत्पीड़न के रूप
जातिगत, लैंगिक, वर्ण-रंग, आकार और पैतृक व्यवसाय के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। अपमानजनक तरीके से नाम बुलाना, अलग बैठाना, कक्षा में पीछे बैठाना, मिड-डे-मील में अलग बैठाने के साथ ही यौन उत्पीड़न व लैंगिक अपराध भी इस शामिल हैं।
18008893277 नंबर का होगा प्रचार-प्रसार
विद्यालय में पठन-पाठन से जुड़ी बच्चों व अभिभावकों की शिकायतों के त्वरित निस्तारण के लिए जून में मुख्यमंत्री द्वारा शुरू किए गए टोल फ्री नंबर 18008893277 का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा। विद्यालय के नोटिस बोर्ड पर टोल फ्री नंबर चस्पा कराया जाएगा।