Date: 23/12/2024, Time:

शिक्षकों को मनचाहे जिलों में तबादले का अधिकार नहींः हाईकोर्ट

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प्रयागराज 20 जनवरी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा परिषद के शिक्षकों की ओर से अंतरजनपदीय स्थानांतरण करने की मांग वाली दायर की गई याचिकाएं खारिज दी हैं। कोर्ट ने कहा कि बेसिक शिक्षा परिषद की स्थानांतरण नीति के तहत स्वीकृत पद के सापेक्ष अधिक संख्या वाले अध्यापकों के जिलों में अंतरजनपदीय स्थानांतरण नहीं करने का निर्णय सही है। शिक्षक अपने इच्छित जिलों में कार्य करने का अधिकार नहीं रखते हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने रचना सहित 57 याचिकाओं पर एक साथ सुन कर खारिज करते हुए दिया। बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से अधिवक्ता अर्चना सिंह ने पक्ष रखा।

याचिकाओं में दो जून 2023 को घोषित अंतरजनपदीय स्थानांतरण नीति के क्लाज चार को चुनौती दी गई थी। इस क्लाज के अनुसार जनपद में स्वीकृत पद के सापेक्ष 30 अप्रैल 2023 तक कार्यरत अध्यापकों की संख्या के 10 प्रतिशत की अधिकतम सीमा तक अंतरजनपदीय स्थानांतरण किया जाएगा। किसी जनपद से स्थानांतरित होकर आने वाले व स्थानांतरित होकर जाने वाले शिक्षकों की अधिकतम सीमा 10 प्रतिशत होगी।

साथ ही सरकार ने कुछ ऐसे जिलों, जहां स्वीकृत संख्या से अधिक संख्या में अध्यापक कार्यरत थे, वहां के संबंध में निर्णय लिया कि उन जिलों में कार्यरत अध्यापक दूसरे जिलों को स्थानांतरित तो किए जा सकेंगे, लेकिन दूसरे जिलों से उन जिलों में कोई अध्यापक स्थानांतरित करके नहीं भेजा जाएगा। ऐसे जिलों को शून्य घोषित किया गया।

याचियों का कहना था कि 10 प्रतिशत पदों की गणना व निर्धारण और उसकी व्याख्या तथा जिलों को शून्य घोषित करना न सिर्फ नीति के विपरीत है बल्कि क्लाज चार की गलत व्याख्या भी है। कहा गया कि सरकार ने स्वीकृत पद के सापेक्ष अधिक संख्या वाले जिलों को भी 10 प्रतिशत की सीमा में शामिल कर लिया है। इस प्रकार पदों की गणना में गलती की गई है।

कोर्ट ने कहा कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि कुछ जिलों में स्वीकृत संख्या के सापेक्ष अधिक संख्या में अध्यापक कार्यरत हैं। इसलिए राज्य सरकार ने ऐसे जिलों में बाहर से किसी को स्थानांतरित नहीं करने का निर्णय लिया है। इसे मनमाना नहीं कहा जा सकता है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि अध्यापकों को अपने इच्छित जिलों में कार्य करने का अधिकार नहीं है। स्थानांतरण नीति लोक कल्याणकारी राज्य की नीति है और किसी प्रकार के मनमाने या विधि विरुद्ध निर्णय के अभाव में इसमें हस्तक्षेप करना संभव नहीं है।

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