Date: 19/09/2024, Time:

एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण के फैसले पर पुनर्विचार करे सुप्रीम कोर्ट

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लखनऊ 05 अगस्त। बसपा प्रमुख मायावती ने आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से असहमति जताई है। बसपा प्रदेश मुख्यालय में रविवार को मीडिया से बातचीत में उन्होंने साफ कहा कि हमारी पार्टी शीर्ष न्यायालय के फैसले से पूरी तरह से असहमत है। आरक्षण का बंटवारा अनुचित व असंवैधानिक है। अनुसूचित जाति व जनजाति का उपवर्गीकरण भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत है।

शीर्ष अदालत ने इससे पहले 2004 में फैसला सुनाया था, तब उन्होंने वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी थी। अब फैसला पलट दिया गया है। बसपा प्रमुख ने एनडीए सरकार के साथ-साथ कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा किया। आरोप लगाया कि इन्होंने सही पैरवी नहीं की।

मायावती ने कहा कि शीर्ष अदालत ने इस बिंदु पर भी विचार नहीं किया कि अनुसूचित जाति व जनजाति में किन लोगों को क्रीमिलेयर लेयर की श्रेणी में रखा जाएगा और इसका मानक क्या होगा। कहा, इस निर्णय से असंतोष की भावना पैदा होगी। इससे केंद्र व राज्य सरकारों के बीच भी टकराव बढ़ेगा। राज्य सरकारें अपने वोट बैंक के लिए मनचाही जातियों को आरक्षण का लाभ देंगी। एससी और एसटी को मिल रहा आरक्षण ही समाप्त हो जाएगा। यह वर्ग आरक्षण से वंचित हो जाएगा। हम सुप्रीम कोर्ट से यही कहेंगे कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे।

बसपा प्रमुख ने भाजपा और कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि इन दलों ने ऐसी दलील दी कि जिससे मौजूदा चल रहे आरक्षण के विरुद्ध निर्णय आए। जाहिर है यह लोग आरक्षण को खुद न खत्म कर, न्यायपालिका के माध्यम से खत्म करना चाह रहे हैं। इससे भाजपा, कांग्रेस व समाजवादी पार्टी को आरक्षण खत्म करने के लिए संविधान बदलने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।

मायावती ने साफ कहा कि हम भाजपा और कांग्रेस को कोस सकते हैं, इन्होंने सही पैरवी नहीं की, बहुत खराब हुआ है। यह भी कहा कि यदि भाजपा की नीयत साफ है तो संसद में संविधान में संशोधन करे और इस फैसले को पलटे। यदि नहीं पलटते हैं तो इससे साफ हो जाएगा कि इनकी नीयत ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि जाटव या उससे मिलती जुलती जाति में कुछ लोग मजबूत हो गए, तो पूरा समाज तो नहीं हो गया। 90 प्रतिशत की हालत अब भी खराब है, उन्हें आरक्षण की सख्त जरूरत है। उन्होंने केंद्र की एनडीए सरकार व आइएनडीआइए गठबंधन से भी एससी व एसटी आरक्षण को पहले से बहाल करने के लिए जरूरी कदम उठाने और इनके आरक्षण को संविधान की नौंवी अनुसूची में रखने की मांग की।

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