asd स्पर्म या ऐग डोनर का बच्चे पर कोई कानूनी हक नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

स्पर्म या ऐग डोनर का बच्चे पर कोई कानूनी हक नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

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मुंबई 14 अगस्त। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि स्पर्म और एग डोनेट करने वाले उससे जन्मे बच्चे पर कानूनी अधिकार नहीं जता सकते. कोर्ट ने 42 वर्षीय महिला को उसकी पांच साल की जुड़वा बेटियों से मिलने का अधिकार देते हुए कहा कि जिन्होंने स्पर्म और एग डोनेट किया वह सिर्फ जेनेटिक माता-पिता हो सकते हैं, बायोलॉजिकल नहीं.

याचिकाकर्ता महिला ने कोर्ट को बताया कि उसकी जुड़वा बेटियों का जन्म सरोगेसी से हुआ था, जिसके लिए उसकी छोटी बहन ने एग डोनेट किए थे. याचिकाकर्ता महिला के पति का दावा था कि उसकी पत्नी का बच्चों पर कोई अधिकार नहीं है,पत्नी की छोटी बहन ऐग डोनर है इसलिए उसे जुड़वा बच्चियों की बायोलॉजिकल मां माना जाना चाहिए.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता महिला के पति की दलील नहीं मानी. कोर्ट ने कहा कि जो महिला एग डोनर है वह बच्चों की बायोलॉजिकल मां नहीं हो सकती. इसलिए, क्योंकि उसने स्वेच्छा से ऐसा किया था. उसे जेनेटिक मां माना जा सकता है. कोर्ट ने ये भी कहा कि एग डोनर महिला को बच्चियों पर अपने सारे अधिकार छोड़ने होंगे. याचिकाकर्ता महिला और उसका पति ही बच्चियों के माता-पिता हैं.

क्या है पूरा मामला
मुंबई के रहने वाले एक दंपति गर्भधारण करने में सक्षम नहीं थे. याचिकाकर्ता महिला के मुताबिक जब उसकी छोटी बहन को ये पता चला तो वह अपनी इच्छा से एग डोनेट करने को तैयार हो गई. अगस्त 2019 में सरोगेसी से जुड़वा लड़कियों का जन्म हुआ. उसी साल एक सड़क दुर्घटना में एग डोनर महिला के पति और बेटी की दुखद मौत हो गई. इसके बाद एग डोनर अपनी बड़ी बहन और जीजा के साथ एक ही घर में रहने लगी. 2021 में किसी बात को लेकर घर में कलह हुई और याचिकाकर्ता महिला का पति अपनी दोनों बच्चियों को लेकर किसी दूसरी जगह रहने लगा. एग डोनर बहन भी अपने जीजा के साथ ही रहने लगी और बड़ी बहन को उसकी बच्चियों से मिलने से रोक दिया.

याचिकाकर्ता ने पति के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया. लोकल कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई और कोर्ट ने महिला की अपील खारिज कर दी. इसके बाद वह हाईकोर्ट पहुंची, जहां अदालत ने आदेश को पलट दिया और ये भी कहा कि निचली अदालत ने बिना सोचे समझे ही आदेश पारित किया था. कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि महिला को अपनी जुड़वा बच्चियों से मिलने का अधिकार है. हर सप्ताह वह तीन घंटे के लिए अपनी बच्चियों से मिल सकेगी.

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