Date: 07/09/2024, Time:

विश्व तंबाकू निषेद्य दिवस पर विशेष! यारों अपने लिए नहीं तो अपनों की खुशहाली के लिए इसे त्याग दो, नशा मुक्ति क्यों नहीं हो पाया देश का कोई भी गांव

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7 अप्रैल 1998 को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन द्वारा विश्व धुम्रपान निषेद्य दिवस मनाने की अपील की गई बताई जा रही है जिसका उददेश्य था दुनियाभर में तंबाकू इस्तेमाल करने वालों को उससे मुक्त कराना। लेकिन यह ताज्जुब की बात है कि पहले यह मृत्युदर 45 से 55 साल वालों में देखी जा रही थी लेकिन अब 30 से 35 साल वाले इसका शिकार हो रहे हैं। बताते हैं कि आज देश का हर दूसरा युवक इसकी लत से ग्रस्त है। जबकि तंबाकू दिवस की थीम पर प्रोटेक्टिंग चिल्ड्रन फ्रॉम तंबाकू इंटर पेंरेंस रखी गई है जिसका उददेश्य है बच्चों को तंबाकू उद्योग से दूर और तंबाकू सेवन से बचाना।
98 के बाद अब 2024 चल रहा है। जिसका मतलब है कि लगभग 26 साल से हम नागरिकों को तंबाकू की लत से बचाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। लेकिन ग्रामीण कहावत ज्यो ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता ही गया के समान कम होने की बजाय इसके आदी होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही हैं। ऐसा क्यों हो रहा है यह किसी को बताने या सुनाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह जानते बूझते भी यह धीमा जहर है जो हमें धीरे धीरे मारने का काम करता है के बावजूद देशभर में अरबो रूपये का गुटखा विभिन्न नामों से जो बिक रहा है इसके आदी वो खा रहे हैं और अरबो रूपये सिगरेट के धुंओं के छल्लों में उड़ा रहे हैं तथा प्रतिबंध के बावजूद हुक्का प्रचलन के बढ़ते ज्यादातर शहर और कस्बों में चर्चा है कि अवैध हुक्काबार खुले हैं और यह सब इसे रोकने वालों की जानकारी में चल रहे बताए जाते हैं। आखिर जिम्मेदारी इसके बढ़ते प्रचलन को रोकने से नजर क्यों चुराते हैं यह सबको सोचना और समाज को इसके प्रति मुखर होना पड़ेगा। एक टीवी विज्ञापन में हीरो अक्षय कुमार एक व्यक्ति जो सिगरेट पी रहा है उससे कह रहे हैं कि तेरे पास मौत देने वाली सिगरेट खरीदने के पैसे हैं लेकिन भाभी को मौत से बचाने वाले सेनेटरी नैपकिन खरीदकर नहीं दे सकता। दूसरी तरफ ज्यादातर सोशल मीडिया आदि पर जितने भी कार्यक्रम दिखाए जाते हैं ज्यादातर में तंबाकू से नुकसान के बारे में सबको जागरूक किया जाता है लेकिन जिस प्रकार से इसका उपयोग बढ़ रहा है उससे लगता है कि सभी प्रयास बेअसर जरूर नजर आ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि तंबाकू से निजात पाना नामुमकिन नहीं है बस एक बार पक्का इरादा कर धूम्रपान छोड़ दे तो इसके नुकसान को दवाई से ज्यादा होता है। एक नारा भी नशे से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए गोष्ठियों और प्रभातफेरियों में दिया जाता है टूटे सपने टूटी आशा धूम्रपान से मिली निराशा। लेकिन यह सब नारों तक या विश्व तंबाकू निषेद्य दिवस तक मनाने तक ही सीमित होकर रह गया लगता है।
दोस्तों मैं कोई डॉक्टर या विद्वान तो हूं नहीं लेकिन जितना पढ़ने सुनने को मिलता है शरीर में कैंसर में लक्षणों की शुरूआत शरीर के किसी हिस्से में खून आना, हडडी चटकाना, मुंह में घाव होना और गांठ महसूस होना आदि कुछ ऐसे लक्षण हैं जिनके बारे में डॉक्टरों से तुरंत सलाह लेकर प्रयास किए जाने चाहिए क्योंकि जीवन बहुत बहुमूल्य है। यह सबसे श्रेष्ठ अवतार कहलाता है। भगवान की इस अमूल्य देन को बचाने और स्वस्थ रहने हेतु मुझे लगता है कि प्रतिदिन इसका उपयोग करने वालों को सुबह उठकर परिवार की सामाजिक आर्थिक स्थिति और बच्चों और बड़ों की संदर्भ में सोचना चाहिए। ऐसा करेंगे तो शायद नशा करने से पहले सोचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और यही इसे छोड़ने की शुरूआत हो सकती है। देशभर में सरकार की तरफ से और कुछ संगठनों की तरफ से नशा छुड़ाने के लिए नशा मुक्ति केंद्र खुले हैं उनकी क्या स्थिति है और वहां क्या माहौल रहता है इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता लेकिन जब सरकार को पता है कि नशा नागरिकों को मौत की ओर धकेल रहा है और इससे संबंध शराब सिगरेट पर लिखना अनिवार्य किया गया है कि यह नुकसान दायक हो सकता है के बावजूद जब सरकार को पता है कि यह गलत है तो मुझे लगता है कि इसके उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध लगना चाहिए। हो सकता है इससे राजस्व की प्राप्ति काफी बड़े स्तर पर हो रही है । लेकिन मानव जीवन को ध्यान में रखकर सोचें तो इस राजस्व की प्राप्ति के मोह से सरकार को मुक्त होना होगा वरना कितने ही विश्व तंबाकु निषेद्य दिवस मना ले और नशा मुक्ति केंद्र खुलवा लें कुछ होने वाला नहीं है। जब तक हम खुद को इससे बचाने की नहीं सोचेंगे तब तक हर प्रयास असफल ही होगा कहते भी हैं कि जब तक अपने पैर ना पड़े बिवाई तब तक क्या जाने पीर पराई। आज तक जितने लोगों ने नशा छोड़ा है सरकार को उनके संरक्षण मेें नशा मुक्ति अभियान चलाना चाहिए क्योंकि इसके नुकसान के बारे में वो झेल चुके हैं इसलिए वो इसे रोकने का अच्छा प्रयास कर सकते हैं। आखिरी में सिर्फ इतना ही कह सकता हंू कि अपने लिए नहीं तो अपने बच्चों माता पिता और परिजनों के लिए ही यह नशाखोरी छोड़ दो। आपका और सबका जीवन बन जाएगा खुशहाल।
चर्चा है कि इस साल एक भी गांव नशा मुक्त नहीं बन पाया। अगर यह खबर सही है तो इस अभियान में लगे लोगो के लिए सोचने का विषय है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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