देश में हर साल दस अक्टूबर को राष्ट्रीय डाक दिवस मनाया जाता है। डाकिये की अपनी जीवन में कितनी लोकप्रियता और जरूरत रही इसका अंदाजा हम इससे लगता सकते हैं कि कुछ साल पहले तक जब डाकिया गांव में आता था तो जो खुशी चेहरे पर नजर आती थी उसका बखान कर पाना संभव नहीं है। अब चिटठी पत्रों का स्थान वॉटसऐप जीमेल और मनिऑर्डर का स्थान यूपीआई ने ले लिया है। जिससे इनका प्रभाव थोड़ा कम हुआ है लेकिन समाप्त हो गया हो ऐसा नहीं कह सकते। बताते हैं कि 1874 से पहले लेटर बॉक्स हरे रंग के होते थे लेकिन इन्हें पहचान करने में मुश्किल के चलते ब्रिटिश शासन ने इन्हें लाल रंग का कर दिया और इनका प्रचलन शुरू हुआ। इन्हें इस व्यवस्था को जिंदा रखने के लिए डाक विभाग द्वारा कई व्यवस्थाएं अपनाई जा रही है और वो लोकप्रिय भी हो रही है। जिसके उदाहरण के रूप में सुकन्या समृद्धि योजना को देखा जा सकता है। डाक की ऐतिहासिकता इससे पता चलती है कि 1766 में देश में पहली बार डाक व्यवस्था शुरू हुई। 1774 में कलकत्ता में पहला डाकघर स्थापित हुआ और आज के दिन डाक दिवस मनाना शुरू किया क्योंकि 9 अक्टूबर 1874 को यूनिवर्सल पोस्टल के गठन के लिए 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे। आज भले ही सोशल मीडिया के चलते डाक सेवा का महत्व कम होने की बात कही जा रही हो मगर फिर भी बचत खाते बीमा योजना इंडिया पोस्ट पेमेंटस कॉमन सर्विस आधार केंद्र पासपोर्ट सेवा सहित 76 से अधिक ऐसी सेवाएं हैं जो डाकघर में ग्राहकों को मिल रही है। यह जनसेवा हमारी डाक व्यवस्था को कायम रखने में भूमिका निभा रही है। डाक और डाकिये की महत्ता इससे पता चलती है कि इस पर कई फिल्में बनी जिनमें संजय दत्त की एक फिल्म का गाना डाकिया डाक लाया बड़ा ही लोकप्रिय हुआ। इसलिए आओ डाकखानों की योजनाएं अपनाएं और नए सुझाव इसके अधिकारियों को दे जिससे इसकी लोकप्रियता और डाकियों का अस्तित्त्व बना रहे।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
डाक दिवस पर विशेष! प्रसिद्ध फिल्मी गाना डाकिया डाक लाया, महत्ता भी नहीं हुई है कम
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