आन लाईन पढ़ाई बच्चों में तनाव और अवसाद बढ़ाने की बात कई चिकित्सक और अन्य लोग भी करते रहे है। लेकिन मेरी नजर में इससे अवसाद और तनाव होने की स्थिति आने की तो नौबत नहीं होती क्योंकि पढ़ाई के दौरान पूरा ध्यान यानी एक चित होकर मनन करना होता है जो और कुछ सोचने का मौका ही नहीं देता तो तनाव व अवसाद कैसे होगा यह तो जो इस संदर्भ में बात करते है वो ही बता सकते है।
हम हमेशा यह तो रट्टू तोता है यह तो रटन विद्या में माहिर है जैसे शब्छ पढ़ने वाले बच्चे चाहे वो छात्र हो पढ़ने में रूचि रखने वाले। छात्र हो या युवा उनके अभिभावकों और मिलने वालों के श्रीमुख से सुनने को मिलते ही रहते है। लेकिन अब एक बात चारों ओर से सुनाई दे रही है कि रट्टामार पढ़ाई बढ़ाती है यारदास और आपको कामयाबी के शिखर तक पहुंचाने में करती है मदद। इसलिए ऊपर दिये गये शब्दों की चिन्ता न करके दोस्तों पढ़ाई चाहे किताबों से कर रहे हो या ऑन लाईन उसे बोलकर पढ़ने और रट्टा मारने और रट्टू तोता बनने का मौका बिलकुल चूकने की आवश्यकता नहीं है।
कई लोग यह भी कहते है कि मोबाइल पर कट कॉपी पेस्ट करके नोटस तैयार कर लेते है बोलकर नहीं पढ़ते इसलिए अच्छे से याद नहीं रहता। जो लोग लिखते है वो स्थाई रूप से दिमाग में बैठ जाता है। ऐसी सोच रखने वालों को शायद याद नहीं है कि जब सोशल मीडिया प्रचलन में नहीं था तब भी पढ़ने वाले बच्चे इधर उधर से मेटर इक्ट्ठा कर एवं कटिंग काटकर नोटस बनाते थे। लेकिन आज कहीं ओर दिमाग लगाने के बजाए गूगल आदि पर जानकारी प्राप्त कर कट पेस्ट कर लिया जाता है। इसमें कोई हर्ज भी नहीं है। क्योंकि जैसे पहले कुछ लिखने से पूर्व उसे याद किया जाता था उसी तरीके से अब भी प्रयास किये जाते है। जो हाथ की अंगुलियों का संचालन तेज करने और पढ़ने में एकाग्रता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। जहां तक कुछ लोगों का यह कहना है कि पहले बच्चे क्रिकेट कबड्डी और खो खो जैसे गेम खेलते थे थकान भी होती थी और नींद भी अच्छी आती थी और आज वो घंटों रील देखते है और अपना यूट्ब चैनल चलाते है और इसमें लाईक और कमेंट के चलते मानसिक तनाव से गुजर रहे है। खेल कोई सा भी हो उससे शारीरिक रूप से व्यायाम हो जाता है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि यूट्यूब चैनल चलाने और रील देखने अथवा कमेंट व लाईक के चक्कर में मेहनत नहीं करनी पड़ती ऐसा नहीं है। इस मामले में बच्चे हो या बड़े उन्हें पूरा दिमाग लगाना पड़ता है और हाथ भी चलते है और साथ में गूगल उन्हें यह भी बताता है कि उन्हे स्वस्थ रहने के लिए क्या क्या करना है।
कुछ लोगों का कहना है कि मोबाइल पर पढ़ाई के दौरान बीच बीच में ध्यान बंटता है एकाग्रता नहीं बन पाती। इस बारे में तो यही कहा जा सकता है कि एकाग्रता मोबाइल और यूट्यूब चैनल व इस पर आने वाले कार्यक्रमों को देखने से होती है वो कम नहीं है।
आज मानसिक स्वास्थय दिवस के मौके पर मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि जीवन में आगे बढ़ने और हर क्षेत्र में तरीक्की करने और कामयाब होने हेतु खेल चाहे वो कोई सा भी हो जरूरी है। बोलकर पढ़ना और रटना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता हैं चाहे वो किताबों में पढ़कर की जाए या गूगल पर देखकर। सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि कुमार बिश्नोई की इस बात से मैं सहमत हूं कि जीवन में आगे बढ़ने और बिना कुछ खर्च किये तथा औरों की तरफ देखने के मुकाबले सोशल मीडिया मंचों द्वारा निशुल्क रूप से वो ज्ञान हमें दिया जा रहा है जिसके लिए हमें औरों की तरफ भागना पड़ता था।
मैं इस संदर्भ में ना तो चिकित्सकों की किसी राय के विरोध में हूं और ना ही किसी ज्ञानी के द्वारा दी जाने की सीख के मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि किसी भावना से प्रेरित होकर सोशल मीडिया और उसके मंचों को बदनाम कर युवाओं सहित हर नागरिक को उसके लाभों से वंचित करने की बजाए अगर समाज के लोग इसके साथ ही स्वस्थ रहने कामयाबी हासिल करने के लिए कुछ साकारात्मक उपाय बताये तो मानसिक स्वास्थय दिवस के पीछे जो भावनाऐं छिपी है वो पूर्ण रूप से साकार और आम आदमी की कामयाबी का परचम फहराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
(प्रस्तुतिः अंकित बिश्नोई सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए के राष्ट्रीय महासचिव व मजीठिया बोर्ड यूपी के पूर्व सदस्य)
मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर विशेष! सोशल मीडिया पर रट्टू तोते की भांति बोल-बोलकर पढ़िए अपने काम की बातें
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