asd चिकित्सा दिवस पर विशेष! आम आदमी से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे डॉ. बिधानचंद राय के पदचिन्हों पर चिकित्सक चलें तो नाम दाम और दुआएं सबकुछ पा सकते हैं

चिकित्सा दिवस पर विशेष! आम आदमी से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे डॉ. बिधानचंद राय के पदचिन्हों पर चिकित्सक चलें तो नाम दाम और दुआएं सबकुछ पा सकते हैं

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आज हम धरती के भगवान कहे जाने वाले अपने चिकित्सकों के सम्मान में यह दिवस एक जुलाई 1882 को जन्में और एक जुलाई 1962 को भगवान के घर के लिए पलायन कर गए 4 फरवरी 1961 को भारत रत्न से सम्मानित हुए बिहार के पटना के बांकीपुर में जन्में पांच भाई बहनों में सबसे छोटे चिकित्सक से लेकर पश्चिम बंगाल की कुर्सी तक पहुंचे लेकिन चिकित्सा के प्रति अपने समर्पण की भावना को नहीं भूले बिधानचंद राय की याद में मनाए जाने वाले राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस मना रहे हैं।
प्रिय पाठकों यह सभी जानते हैं कि चिकित्सक के पास हमारी स्वास्थ्य संबंधी हर समस्या का समाधान मौजूद है चाहे वह यूनानी हो आयुर्वेदिक हो या होम्योपैथिक। अगर हमें भगवान ने कष्ट देने की सोच रखी है तो बात दूसरी है वरना मरीजों को कष्टों से राहत और जीवनदान देने के मामले में हम अपने चिकित्सकों के ऋण को किसी भी रूप में अदा नहीं कर सकते। जिस प्रकार से हमारे माता पिता और परिजन बच्चे का जन्म होने के बाद पालन पोषण शिक्षा और समाज में उसकी प्रतिष्ठा के लिए काम करते हैं उसी प्रकार से हमारे चिकित्सक हमें निरोगी रखने स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से हमारी रक्षा करने के साथ ही हमारे परिवारों की खुशहाली के लिए सेवा भाव से करते है।
देश में लगभग 13 लाख पंजीकृत चिकित्सक बताए जाते हैं इनमें से आठ लाख सक्रिय रूप से सेवा कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार प्रति एक हजार व्यक्तियों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। भारत में यह अनुमान 1834 के लगभग है। मगर आजादी के इतने वर्ष बाद भी हमारे देश की ग्रामीण गरीब और आदिवासी आबादी को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी बनी ही रहती है। इसलिए शायद गांवों में तीस प्रतिशत स्वास्थ्य केंद्रों में नियमित चिकित्सक कार्यरत हैं और इनमें भी काम कितने कर रहे हैं वो बात और हैं। मैं ही क्या सब मानते हेैं कि भारतीय चिकित्सक सच्चे योद्धा की तरह हर चुनौती का सामना करते हैं। कोविड-19 के दौरान 2020 से 2022 तक केंद्रीय भारतीय चिकित्सा संघ के अनुसार 1600 चिकित्सकों ने अपनी जान गंवाई फिर भी तमाम चिकित्सक रात दिन कार्य करने में पीछे नजर नहीं आते हैं। आज भी देश में औसतन 75 लाख नागरिक हर दिन चिकित्सा सेवाएं प्राप्त करते हैं जिनमें सरकारी अस्पताल निजी, स्वास्थ्य शिविर और टेलिमेडिसन सेवाएं इसमें शामिल हैं। एक जमाना था जब चिकित्सक गांव देहातों में जाकर मजबूर और असहायों की सेवा के लिए निःशुल्क सेवा दिया करते थे जो अब कम ही नजर आती है।
वर्तमान में चिकित्सा की स्थिति क्या हो गई है और मानव सेवा की बजाय व्यापार कैसे बन गई है जिसका अंदाजा हम इससे लगा सकते हैं कि चिकित्सा के क्षेत्र में सुविधाएं उपलब्ध कराने के नाम पर मरीजो को आकर्षित करने के लिए डॉक्टर लाखों रूपये खर्च कर समाचार पत्रों में विज्ञापन और प्रचार कराते हैं। यह किसी को बताने की आवश्यकता तो है नहीं कि यह जो प्रचार पर इतना पैसा खर्च होता है वो मरीजों से ही चिकित्सा के नाम पर वसूला जाता है। इनमें भी अगर ईमानदारी दिखाई जाए तो उसे गलत नहीं कहेंगे। मगर नर्सिंग होमों में मेडिकल स्टोर और कई प्रकार की सुविधाओं के नाम पर जो वसूली होती है। यह प्रचार तंत्र उसी के दम पर आगे बढ़ रहा है। हमारे चिकित्सक सब एक से हो ऐसा नहीं है क्योंकि जिस तरह हाथ की पांचों अंगुली एक जैसी नहीं होती उसी प्रकार सभी चिकित्सक एक जैसे नहीं होते। इसलिए जब कोई समस्या आती है तो हम अपने जीवन की डोर और पीड़ा को चिकित्सकों के हवाले कर बेफिक्र हो जाते हैं। यह गलत भी नहीं है क्योंकि चिकित्सक जब दवाई देता है तो आराम होने लगता है। वर्तमान में टीबी कैंसर और एडस जैसी बीमारियों के इलाज भी होने की बात से इनकार नहीं कर सकते।
हमें संजीवनी देने वाले चिकित्सक आखिर व्यवसायी क्यों बनते जा रहे हैं। यह विषय समाज के लिए सोचने का है। क्योंकि सरकार और नेता अधिकारी इसमें कुछ नहीं कर सकते। कुछ चिकित्सक मानवीय संवेदनाएं भूलकर चिकित्सा को व्यापार समझ बैठे हैं और इसमें ध्यान कम अवैध निर्माण कर मोटे किराए पर दुकान और शोरूम देने और कुछ सरकारी जमीन घेरकर निर्माण नीति के विपरीत बिल्डिंग बनाकर पैसा कमाने में लग गए हैं। कुछ लोगों का कहना है कि कई नर्सिंग होम संचालकों द्वारा अपने दलाल छोड़े गए हैं जो इन नर्सिंग होमों तक मरीजों को पहुंचाते है। वसूली में से कुछ हिस्सा इन्हें भी दिया जाता है। यही कारण है कि चिकित्सकों के साथ कोई ना कोई घटना होती रहती है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
देशभर में आज कई डॉक्टरों को मीडिया ने समाजसेवी और चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने वाले समर्पित की संज्ञा दी है। लेकिन जिन्हें समाजसेवी बताया गया है उनके कारनामों का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि यूपी के मेरठ में सरधना विधायक अतुल प्रधान द्वारा इनकी जनविरोधी नीतियों के कारण आंदोलन चलाया गया था। यह भी इनके कॉमर्शियल होने की वज हो सकती है कि हम इन्हें समाजसेवी बता रहे हैं।
डॉ. एमके बंसल, डॉ. तनुराज सिरोही
मैं कम शुल्क लेकर चिकित्सा उपलब्ध कराने वाले चिकित्सकों के साथ ही ज्यादा फीस लेकर देखने वाले चिकित्सकों का भी प्रशंसक हूं क्योंकि वो किसी को डरा नहीं रहे। आईएमए यूपी के पूर्व अध्यक्ष वाकई में समाजसेवी डॉ. एमके बंसल जो तिलक पार्क पर क्लीनिक चलाते हैं और 100 रूपये फीस लेकर दवाई भी देते है। दूसरी तरफ यहीं के छिपीटैंक स्थित क्लीनिक में रोजाना सैंकड़ों मरीज देखने वाले डॉ. तनुराज सिरोही फीस भले ठीकठाक लेते हो लेकिन ना मरीज को डराते हैं ना महंगी दवाई लिखते है। एक बार मुझे डॉक्टर ने बताया कि आप डॉ. तनुराज सिरोही को दिखाकर ईसीजी कराओ। मेरा पुत्र अंकित बिश्नोई डॉक्टर के पास ले गया और चैकअप के बाद बोले कि सीने में गैस भरी है। गोली खा लीजिए आराम होगा। वरना कुछ डॉक्टर तो डराकर आईसीयू में भर्ती कराने में देर नहीं करते।
मुझे लगता है कि आज के दिन मैंने अपनी भावनाएं व्यक्त की लेकिन यह जरूर कहना चाहता हंू कि चिकित्सक की पढ़ाई महंगी हो चुकी है। पढ़ने के लिए जो व्यवस्थाएं चाहिए वो भी महंगी है। इसलिए चिकित्सक महंगी फीस ले रहा है तो कुछ गलत नही है। लेकिन अगर हम डॉ. बिधानचंद राय जिनके पर आज चिकित्सक दिवस मनाया जा रहा है। मेयर के रूप में उनके द्वारा जो काम किया गया उसे याद कर अगर व्यवसाय के रूप में अपनाएं तो इसकी सार्थकता सिद्ध होगी। कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से चिकित्सा की पढ़ाई कर 1909 में ब्रिटेन गए और कई अडचनों के बाद वहां पढ़ाई की। 1911 में देश लौटने पर कई मेडिकल कॉलेजों में सेवाएं दी और बाद में राजनीति की राह पकड़कर बैरकपुर से विधानसभा सदस्य चुने गए। वो कोलकाता के महापौर बने और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के करीबियों में जगह बनाने में सफल रहे। 1948 में वो पश्चिम बंगाल के सीएम की कुर्सी तक पहुंचे लेकिन चिकित्सा की राह नहीं छोड़ी। अगर हम उनके पदचिन्हों पर चलकर महंगी चिकित्सा भी उपलब्ध कराते हैं तो वो गलत नहीं है। इतना जरूर है कि चिकित्सक कम से कम पांच मरीज निशुल्क देखकर दवाई उपलब्ध कराए।
डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी
आज भले ही चिकित्सा के क्षेत्र में काम न कर रहे हों लेकिन वर्तमान में राज्यसभा के सदस्य डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए लोगों को देखते हैं और उन्हें आयुर्वेद चिकित्सा उपलब्ध कराते हैं। साथ में राजनीति की शीर्ष की ओर बढ़ रहे है। हम ईमानदारी से अपने काम को करे तो कोई काम करने में कोई बुराई नहीं है। डॉ. बिधानचंद राय को श्रद्धांजलि देते हुए समस्त चिकित्सकों को बधाई देकर सबको सदबुद्धि देने और गरीबों की सेवा का मार्ग दिखाने की कामना करता हूं।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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