आज हम विश्व महिला दिवस मना रहे हैं और इसके पीछे उददेश्य है दुनिया की आधी आबादी मातृशक्ति को सम्मान और बराबरी के मौके उपलब्ध कराना। ऐसा नहीं है कि पूर्व में महिलाएं किसी से पीछे थी। क्योंकि देश में प्रचलित देवियों को अगर हम पूजते हैं तो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवंतीबाई लोधी और अहिल्याबाई होल्कर जैसी वीरांगनाओं को उनके साहस के लिए याद ही नहीं करते इनके स्मरण स्कूलों में पढ़ाए भी जाते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि महिलाएं देश में सम्मान आस्था वीरता का संदेश देने में हमेशा अग्रणी रही है। पाठकों नारी शक्ति के लिए आठ मार्च का दिन खास है लेकिन आखिर इस दिन ही महिला दिवस क्यों मनाया जाता है यह बात महत्वपूर्ण हैं। एक जमाना था जब महिलाओं की कोई पहचान सामान्य रूप से नहीं थी। ना उन्हें वोट देने का अधिकार था ना शिक्षा प्राप्त करने का। ना ही उन्हें पुरूषों के बराबर की मान्यता मिली थी। उस समय इस असमानता के खिलाफ 1908 में न्यूयॉर्क शहर में करीब 15 हजार महिलाओं ने प्रदर्शन किया जिसमें बेहतर काम करने की परिस्थतियां और वोटिंग की मांग की गई। आंदोलन ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा। 1910 में डेनमार्क के कोपेनहेगन शहर में एक अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन हुआ जिसमें जर्मनी की समाजवादी नेता कलारा ने प्रस्ताव रखा कि साल में एक दिन महिलाओं का होना चाहिए। तत्पश्चात 8 आठ मार्च 1917 को रूसी क्रांति में महिलाअेां ने युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन किया और बेहतर जीवन की मांग की। नारी शक्ति के सामने सरकार को झुकना पड़ा और उन्हें वोटिंग के साथ अन्य सुविधाएं मिली। इसीलिए हर साल आठ मार्च को यह दिवस मनाया जाता है। बाद में संयुक्त राष्ट्र ने 1977 में आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया और यह भी खास हो गया। वैसे तो वर्तमान में हमारी माता बहनें और बेटियां मां से लेकर मोर्चे तक की कमान संभाल रही हैं चाहे पुलिस हो या आर्मी। हवाई जहाज चलाना हो या रेल उद्योग हो या व्यापार चिकित्सा हो या मीडिया हर क्षेत्र में इनकी सफलता और नाम की गूंज प्रमुखता से हो रही है। मजे की बात यह है कि नारी जाति की सफलता इससे भी आंकी जाती है कि यह बड़े घर की बेटियां ही नहीं अभावों में पलने वाली बेटियां भी संघर्ष के बाद आसमान में अपने नाम की पताका फहरा रही है।
भारतीय महिलाएं भी दुनिया के किसी भी देश की नारी शक्ति से कम नहीं हैं इनमें अपना व्यवसाय शुरू करने का जुनून व्याप्त है। कामकाजी महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान मिले। लगातार सफलता की ओर बढ़ रही आधी आबादी के कदम को सम्मान देने का अच्छा तरीका यही हो सकता है कि इन्हें आगे बढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। क्योंकि बदलती सोच और नारीवाद की पनपती आशा से यह स्पष्ट होता है कि आजादी की आस में आधी आबादी समाज की हर जरूरत को पूरा करने में भूमिका निभा रही है। लेकिन इस सबके साथ यह भी जरूरी है कि मातृशक्ति को उर्जावान और स्वस्थ बनाए रखने के लिए उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं और निशुल्क इलाज और शहरों के साथ ही देहातों में भी अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो इसके लिए अच्छे डॉक्टरों की जरूरत वक्त की मांग कही जा सकती है। ललक से पदक तक पहुंची बेटियेां का हौंसला कितना बुलंद है इसकी झलक हमें कहीं ना कहीं रोज देखने को मिलती है। एक जमाना था फिल्मों में हीरों के मुकाबले अभिनेत्रियों को बहुत कम मेहनताना मिलता था। आज महिला प्रधान फिल्में बन रही और हीरों से ज्यादा भुगतान अभिनेत्रियों को मिल रहा है। सम्मान की बात करें तो इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सरकार से लेकर औद्योगिक घरानें वा सामाजिक संगठनों द्वारा मातृशक्ति का महिमा मंडन किया जा रहा है। सरकार ने दिव्यांग महिलाओं के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं जो इस बात का प्रतीक है कि हर महिला को आगे बढ़ने के अवसर समाज के साथ सरकार भी दिला रही है। इसलिए दिव्यांग महिलाओं के लिए बड़ी पहल की गई है।
एक समय था जब देशभर से प्रताड़ित महिलाएं वृंदावन आकर बुरी परिस्थितियों में रहते हुए अपना समय भजन कर बीताती थी लेकिन इस वर्ष पीएम मोदी की पहल पर ब्रज के अनेक संगठनों द्वारा सरकार के साथ मिलकर वृंदावन के भजनआश्रम में रहने वाली 2000 महिलाओं को होली खेलने का मौका मिलेगा। रंग के अनूठे समारोह में यहां की विधवा महिलाएं समाज की मुख्य धारा में होने का अहसास करेंगी और इस अदभुत पल को गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज होना है। मेरा राजनीतिक दलों से आग्रह है कि आज कुछ संगठन गर्भावस्था में महिला चिकित्सक का हाथ से परीक्षण करने का विरोध कर रहे हैं ऐसे में जेलों में जब कोई महिला या पुरूष पहुंचता है तो उसे निर्वस्त्र कर उसकी तलाशी ली जाती है। फिल्मों में दिखाते हैंं कि उस दौरान निजता बनाने का प्रयास पुलिसकर्मी नहीं करती है। मेरा सरकार से आग्रह है कि यह जांच पूर्ण रूप से बंद हो और निजता का ध्यान रखते हुए इस कार्य को किया जाए। इसमें किसी प्रकार की क्रूरता का समावेश ना हो। दूसरे आजादी के इतने सालों बाद भी हम आजादी और बराबरी का दर्जा महिलाओं को देने की बात करते हैं वो शायद नहीं मिल पा रहा है। इसलिए मेरा उस व्यक्ति जो कुछ देने की स्थिति में है उसे चाहिए कि महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए 40 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए। एक बात बच्चा बच्चा जानता है कि सभी महिला किसी अच्छे मैनेजमेंट गुरू से ज्यादा काबिलियत रखती है क्योंकि कम पैसों में घर का मैनेजमेंट किया जाता है वो अनुकरणीय है। मेरा पीएम साहब से आग्रह है कि कम आय वाली हर महिला को पांच हजार रूपये महीना अनुदान दिया जाए जिससे वो दो समय की रोटी का जुगाड़ कर सके। यह सभी जानते हैं कि परिवार की गाड़ी जिस प्रकार महिलाएं आगे बढ़ाती है। उनके इस हुनर को लोग भी समझे तो हर क्षेत्र में पुरूष भी कामयाबी के झंडे फहरा सकते हैं। कहा जाता कि आदमी की कामयाबी के पीछे औरत का हाथ होता है। इसलिए घर में खुशहाली के लिए महिलाओं को खुश रखने का संकल्प लेना होगा यही इस दिवस की सार्थकता होगी। वरना यह हर साल मनाया जाता है और आगे भी मनाया जाता रहेगा।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष! जेलों में निर्वस्त्र कर होने वाली जांच हो बंद, हर क्षेत्र में कामयाबी का परचम फहराती मातृशक्ति को राजनीति में मिले 40 प्रतिशत आरक्षण, पांच हजार रूपये महीना अनुदान और चिकित्सा सुविधा व सुरक्षा
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