सिवनी 22 मई। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में सर्पदंश घोटाला सामने आया है, जिसने प्रशासनिक व्यवस्था की लापरवाही और भ्रष्टाचार की पोल खोल दी है. इस घोटाले में 47 मृत व्यक्तियों के नाम पर बार-बार फर्जी मृत्यु का दावा कर शासन की राशि का गबन किया गया. पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए एक वीडियो शेयर किया है.
उन्होंने कहा कि प्रदेश में सांप घोटाला हुआ है, केवल एक जिले से ही 11 करोड़ रुपए का कागजी मुआवजा सर्पदंश पीड़ितों को दिया गया. प्रदेश के सांप घोटाले पर जीतू पटवारी ने ट्वीट करते हुए मध्यप्रदेश वासियों से पूछा- सोचिए, बाकी 54 जिलों में सरकारी भ्रष्टाचार की क्या स्थिति होगी? बोले- देश-विदेश में कई घोटाले हुए हैं जिनमें अब नया सांप घोटाला भी शामिल हो गया है.
प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष जीतू पटवारी ने राज्य सरकार पर सांप काटने के नाम पर कागजी मुआवजा बांटकर घोटाले का आरोप लगाया. उन्होंने बताया कि सिवनी की एक व्यक्ति को 38 बार सांप ने काटा और हर बार के 4-4 लाख रुपए उसके नाम पर निकाल लिए.
उन्होंने कहा- मध्य प्रदेशवासियों, कई प्रकार के घोटाले, कई प्रकार के करप्शन, कई प्रकार की चोरियां हमने देखी हैं, दुनिया में कहीं नहीं होगा, मध्यप्रदेश में सांपों की गिनती करने का आदेश दिया गया है. यह कहीं नहीं होगा लेकिन हमें करना है. एक व्यक्ति को सांप ने 38 बार काट लिया. सिवनी का साथी है हमारा, उसको 38 बार काटा और 38 बार के 4-4 लाख रुपए उसके नाम पर निकाल लिए. एक जिले में 11 करोड़ रुपए ऐसे सांप के काटने के सरकार ने डिस्पोजल किए, ये पैसा वही है जो कर्ज लेकर आपसभी पर बोझ डाला है. प्रदेश की जनता पर बोझ डाला गया है.
जांच में सामने आया है कि मृत व्यक्तियों के नाम पर बिना मृत्यु प्रमाण पत्र, पुलिस वेरिफिकेशन और पीएम रिपोर्ट के ही बिल पास किए जाते रहे. दरअसल, एमपी सरकार सांप काटने से मृत्यु होने पर 4 लाख रु का मुआवजा देती है. रमेश नाम के शख्स को 30 बार अलग-अलग दस्तावेजों में मृत बताया गया. वह भी हर बार सांप के काटने से. ऐसा करके भ्रष्ट अधिकारियों ने 1 करोड़ 20 लाख रुपये का गबन किया. इतना ही नहीं रामकुमार नाम के शख्स को सरकारी दस्तवाजों में भी 19 बार मरा हुआ दिखाया गया.यह घोटाला साल 2019 से शुरू हुआ और 2022 तक जारी रहा यानी कमलनाथ सरकार में शुरू हुआ भ्रष्टाचार का सिलसिला शिवराज सरकार तक चला.
इस घोटाले में तत्कालीन एसडीएम अमित सिंह और पांच तहसीलदारों की भी भूमिका संदिग्ध पाई गई है. जांच के दौरान यह भी सामने आया कि इन अधिकारियों की आईडी और अधिकारों का दुरुपयोग कर फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए और उसी आधार पर कोषालय स्तर से भुगतान भी पास हुआ. अभी तक इस पूरे मामले में सिर्फ एक ही गिरफ्तारी सहायक सचिव की ही हुई है, जबकि अन्य आरोपियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.