हमारी आस्था के प्रतीक परंपरागत रूप से सांप्रदादिक सौहार्द और गंगा जमुनी तहजीब से जुड़े नौचंदी मेले को इस बार तो बख्श ही दो। सब जानते हैं कि इस मेले का महत्व नवरात्रों में पूजा पाठ और धार्मिक आयोजनों से जुड़ा होता है। हमेशा होली से एक रविवार छोड़कर दूसरे रविवार को मेले का शुभारंभ कमिश्नर किया करते हेैं और फिर एक दो सप्ताह में मेला अपने पूरे शबाब पर पहुंच जाता है। चंडी देवी के मंदिर में चुनरी चढ़ाने और भोग लगाने वालों का जमावड़ा होता है तो बाले मियां की मजार पर आयोजन होते हैं। इनमें भाग लेने हेतु नागरिकों की काफी भीड़ होती है। साम्प्रदायिक सौहार्द और भाईचारे से यह मेला संपन्न होता रहा है। कुछ साल पहले मेले को प्रांतीय मेले का दर्जा मिला तो लगा कि अब सरकारी नियंत्रण में होने के चलते हर कार्य समय से होगा। और नागरिक यहां पूजा पाठ और मनोरंजन कर पाएंगे।
लेकिन इसे क्या कहे कि अधिकारियों के स्थानांतरण के चलते प्रांतीय होने के बाद मेला समय से नहीं लग पाया। इस बार तो हद ही हो गई है। इसलिए नागरिकों की यह बात सही लगती है कि इस बार मेले के बजट की एफडी करा दी जाए और बरसात के बाद पटेल मंडप नौचंदी क्षेत्र चंडी मंदिर और बाले मियां की मजार पर सौंदर्यीकरण के कार्य कराएं जाएं और अगले साल मेला परंपरागत रूप से शुरू होना चाहिए। इस बार जो परिस्थितियां नजर आ रही है मानसून आने वाला है। गर्मी भी भयंकर पड़ रही है और मेले का स्वरूप भी नहीं बन पाएगा। इसलिए अच्छा है कि इस बार आस्था और भावनाओं से जुड़े इस मेले को स्थगित कर दिया जाए और अगले साल मेले की जानकारियां रखने वालों को मेला समिति का सदस्य बनाया जाए। यह काम जनप्रतिनिधियों की कमेटी बनाकर उनकी सहमति से मेला कमेटी बनती थी उसी को अंजाम दिया जाए तो मुझे लगता है कि इसमें किसी को कोई ऐतराज नहीं होगा। मेला अब लगे ना लगे उसका मेन उददेश्य तो अब निकल ही गया।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
साहब जी मेला इस बार स्थगित कर इसके बजट से चंडी मंदिर, बाले मियां पटेल और मेला क्षेत्र का सुधार करा दिया जाए तो ?
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