Date: 22/11/2024, Time:

यौन उत्पीड़न के मामले को समझौते के जरिए रद्द नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली, 07 नवंबर। यौन उत्पीड़न के मामले को सिर्फ इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच समझौता हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज यह अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें नाबालिग छात्रा का यौन उत्पीड़न करने के आरोपी शिक्षक को राहत दी गई थी और उसके खिलाफ मुकदमा रद्द करने का आदेश दिया गया था।

जस्टिस सीटी रविकुमार और पीवी संजय कुमार की पीठ ने फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त किया जाता है। एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही कानून के अनुसार आगे बढ़ाई जाए। हमने मामले की योग्यता पर कोई टिप्पणी नहीं की है। कोर्ट ने सहायता करने के लिए एमिकस क्यूरी आर बसंत को भी धन्यवाद दिया। फैसला अक्टूबर 2023 में सुरक्षित रखा गया था। मामले में सवाल था कि क्या उच्च न्यायालय धारा 482 सीआरपीसी के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए आरोपी और पीड़िता के बीच समझौते के आधार पर यौन उत्पीड़न के मामले को रद्द कर सकता है?

मामला तब सामने आया, जब 15 वर्षीय लड़की के उत्पीड़न के मामले में अपील की गई। इसमें पिता की शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी। हालांकि, बाद में लड़की के परिवार और आरोपी के बीच समझौता हो गया, जिसके आधार पर आरोपी ने मामले को रद्द करने के लिए राजस्थान उच्च न्यायालय का रुख किया। कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली और आपराधिक मामले को रद्द कर दिया।

अब जिस याचिका पर फैसला सुनाया गया है, वह एक अप्रभावित तीसरे पक्ष रामजी लाल बैरवा की ओर से दायर की गई है। इसमें उच्च न्यायालय के आदेश पर आपत्ति जताई गई है। मामले की सुनवाई के शुरुआत में शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि आपराधिक मामले में अप्रभावित पक्ष याचिका दायर नहीं कर सकता। हालांकि, बाद में कोर्ट ने उठाए गए मुद्दे की जांच करने का फैसला किया और आदेश दिया कि आरोपी और पीड़िता के पिता को मामले में पक्ष बनाया जाए।

सितंबर 2022 में पारित एक आदेश में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता और केरल उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आर बसंत को न्यायालय की सहायता के लिए मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था।

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