14 अगस्त 1947 से पहले भले ही भारत से अलग होकर गए जिन्ना के प्रयासों से पाकिस्तान एक अलग देश बन गया लेकिन किसी का भाई या कोई रिश्तेदार दोनों देशों में छूट गए। जिस कारण नागरिकों का अपनी रिश्तेदारी में आवागमन और रोटी बेटी का रिश्ता चलने के साथ ही एक दूसरे के देश के लोग अपनी बेटी बेटे की शादी करते रहे। इसमें दोनों देशों की सहमति से कोई समस्य नहीं आ रही थी। बताते चलें कि पाकिस्तान ने जब अपनी आजादी का जश्न मनाया था तब उसके संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की बेटी दीना भारत में ही थी और उसने अपने पिता के बनाए देश में जाने से मना कर दिया था। उनकी शादी भारतीय उद्योगपति नेविल वाडिया से हो चुकी थी। बंटवारे के बाद अपने पिता को अंतिम विदाई देने वो कराची गई थी और चंद दिनो बाद वापस आ गई। अब पहलगाम मामले के उपरांत एक दूसरे देश के नागरिकों को जो अनुमति लेकर इन देशों में रह रहे थे और नागरिकता हुए बिना ही कुछ ने शादी कर ली। कई नौकरी करने लगे और लापरवाही के चलते कुछ के आधार कार्ड और वोटर कार्ड भी बन गए बताए जाते हैं और कुछ साल पहले पता चला था कि यूपी के एक जिले में एक महिला पंचायत की चेयरमैन चुनी गई थी। अब जो यह स्थिति उत्पन्न हुई है। उसमें उनके सामने समस्या आ रही है जिन्होंने बिना नागरिकता के शादी तो कर ली लेकिन वो रहे पाकिस्तानी या हिंदुस्तानी। अब उनके बच्चे हो गए जिन्हें दोनों देश अपना नागरिक नहीं मानते। उनके मां बाप को अपने जिगर के टुकड़ों को छोड़कर वापस अपने देश जाना पड़ रहा है। पहलगाम हमले के दोषियों को सख्त सजा देने की कार्रवाई भारत सरकार कर चुकी है। अन्य आतंकवादी ठिकाने और विध्वंस की मंसा रखने वालों को जल्द ही सबक सिखाया जा सकता है। इसी के साथ ही भारत के विदेश मंत्रालय को कुछ ऐसे प्रयास भी करने चाहिए कि एक दूसरे के देश के जिन लोगों के विवाह के बाद बच्चे हुए उन्हें वो वापस ले क्योंकि नाबालिग रोते बिलखतों का इस व्यवस्था से कोई संबंध नहीं है। बताते चलें कि पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर और बाडमेर जिलों के सोढ़ा राजपूत भी पाक में बहू या दामाद की तलाश करते है। जोधपुर के एक सीमांत संगठन के रिपोर्ट के अनुसार हर साल यहां के करीब 200 हिंदू परिवारों में विवाह होते हैं। पहले सिंधी हिंदू परिवार ही सीमा पार शादी करते थे। फिल्म निर्माता सतीश आनंद की बहन टीना आनंद का विवाद भी रवि वच्छानी से हुआ। सतीश आनंद पाकिस्तान के फिल्म वितरक माने जाते हैं। खबरों के अनुसार पाकिस्तान में हिंदूओं की स्थिति आर्थिक रूप से कमजोर हो रही है। इसलिए इनमें एक दूसरे देशों में शादियां कम होती है लेकिन मुस्लिमों में अभी भी खूब होना बताया जाता है। मुझे लगता है कि अब ऑनलाइन शादियों के चलने के चलते तथा सीमा पार निकाह के खतरों से अंजान काफी लोग अभी भी एक दूसरे के यहां शादियों पर या तो रोक लगे या ऐसा नियम बने कि अगर नागरिकों को वापस भेजा जाए तो बच्चों को भी सरकारें वापस लें। बताते हैं कि एक अनुमान के अनुसार 300 से ज्यादा शादिया सीमा पार होती है। कर्नाटक के भटकल का मामला देखे तो 2023 में वहां 70 पाकिस्तानी महिलाओं को भारतीय नागरिकता का इंतजार है और दीर्षकालीन वीजा लेकर रह रही है। पाक क्रिकेट बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष शहरयार खान ने भोपाल की कन्या को अपनी बहू बनाया था। ऐसे चर्चित मामले और भी हो सकते हैं। तथा भावनात्मक रूप से बंटवारे से बंटे लोग अपने मिटटी से रिश्ता रखना चाहते हैं। जो आंकड़े मिलते हैं उनमें भी स्पष्टता नहीं मिलती लेकिन इंसानियत से हिसाब से ऐसे नियम बनाए जाएं जो मासूमों का अपने अभिभावकों से बंटवारा ना हो और दोनों देश बच्चों को वापस जरूर ले। इसमें कोई राजनीतिक फैसला भी ले। यह जरूर है कि देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा जो निर्णय लिए जा रहे हैं देर सवेर उससे पड़ोसी देश को सबक सीखने को मिले लेकिन बच्चों का बंटवारा मां बाप से सही नहीं कह सकते हैं। समयानुकुल कोई फैसला इस पर होना ही चाहिए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
मासूमों की हो रही दुर्दशा को देखते हुए मां बाप के साथ बच्चों को वापस लेने का इंसानियत के आधार पर हो फैसला
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