asd बनने के बाद तुरंत टूट जाने वाली सड़कों के निर्माण में होने वाले घपले, आखिर कब तक खामोश रहेंगे जनप्रतिनिधि

बनने के बाद तुरंत टूट जाने वाली सड़कों के निर्माण में होने वाले घपले, आखिर कब तक खामोश रहेंगे जनप्रतिनिधि

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पुल हो या सड़क अथवा नाले नाली सरकारी स्तर पर होने वाले निर्माण को लेकर हमेशा ही सवाल उठते रहे हैं। जहां तक देखा जाए तो यह गलत भी नहीं है क्योंकि बड़े नेता भी कई बार मंचों से कह चुके हैं कि विकास कार्यों में जो पूरा पैसा दिया जाता है वो लगता नहीं। दूसरी तरफ आए दिन खबरें पढ़ने सुनने को मिलती है कि फलां पुल बनते बनते गिर गया या समय से पहले धराशायी हो गया। नाले नालियों का निर्माण हुआ नहीं विभाग ने भुगतान कर दिया। सड़क बनते बनते टूटी ठेकेदार ने सुधार की जहमत नही उठायी।
जब यह सब आम आदमी को पढ़ने सुनने को मिल रहा है तो अधिकारी और जनप्रतिनिधियों को इनके बारे में पता नहीं चलता हो यह संभव नहीं है क्योंकि पीएम मोदी जी और सीएम योगी जी द्वारा कई बार भ्रष्टाचारियों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई से प्रोत्साहित होकर जनता भी आवाज उठाने लगी है मगर कार्रवाई करने में सक्षम प्रतिनिधि जितना ध्यान देना चाहिए नहीं दे रहे हैं इसलिए मुख्यमंत्री की प्रदेश को गडढा मुक्त बनाने के वादे भी सफल नहीं हो रहे हैं क्योकि या तो सड़क बनती नहीं या बनते हुए टूट जाती है। या निर्माण नियमानुसार ना होकर बस सड़क काली करनी और भुगतान ले लेना ही होता है। जिससे पहली ही बारिश में यह टूटने लगती और फिर उनमें गढढे हो जाते है। यह कोई एक बार की बात नहीं है। हमेशा ही ज्यादातर सरकारी निर्माणों में ऐसा ही होने की खबरें सुनने पढ़ने को मिलती है।
यूपी के सीएम ने 20 साल और पांच साल वाली गारंटी की सड़कें बनाने का निर्देश अधिकारियों को दिया है। उसके बावजूद जो सड़कें बन रही हैं वो इतनी खस्ताहाल है जिन्हें देखकर कोई भी कह सकता है कि यह छह माह भी सही सलामत रह जाएं तो गनीमत है। मजे की बात यह है कि पिछले कई सालों से टूटी और गडढा युक्त सड़कों को बनवाए जाने के प्रस्ताव पास हो जाने की बात तो खूब सुनने को मिल रही थी लेकिन अब जब लोकसभा चुनाव के लिए व्यवस्थाएं चल रही है तो ऐसी सड़कें बननी शुरू हुई लेकिन जहां यह बन रही है वहां के नागरिकों का कहना है कि सड़क बनने के दूसरे ही दिन ज्यादातर उखड़ना शुरू हो गई या उनकी बजरी उखड़नी शुरू हो गई। कई जगह उंची नीची सड़क बनाई गई। लोग कहते सुने जाते हैं कि जितनी मोटाई की सड़क बननी चाहिए थी वो नहीं बनी। गुणवत्ता का पालन नहीं किया गया है। इतना सब होने के बाद भी जनप्रतिनिधि इन घटिया सड़कों के निर्माण को लेकर खामोश क्यों हैं और ठेकेदार अधिकारियों से विरोध क्यों नहीं जता रहे। खस्ताहाल सड़कों की हालत यह है कि यूपी के मेरठ में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े काली पलटन और वेस्ट एंड रोड के बीच बनी सड़क में कुछ माह बाद ही गडढे होने शुरू हो गए। इतने बड़े धार्मिक स्थल की सड़क में सुधार भी पिछले छह माह से सुधार कराने का प्रयास नहीं हुआ। बॉंबे बाजार के हनुमान चौक पर कई साल बाद सड़क बनी वो भी तब जब व्यापारियों ने मतदान बहिष्कार की बात कही। चर्चा इस बात की है कि छावनी बोर्ड में सत्ताधारी दल के नेता सदस्य के रूप में मौजूद है। उसके बावजूद धार्मिक स्थलों के आसपास सड़कों का निर्माण सीएम की भावनाओं के अनुसार नहीं बनी। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। इस ओर देशभर में जनप्रतिनिधियों को ध्यान देने के लिए पीएम को संदेश देना होगा। वरना आम आदमी की मेहनत की कमाई को कुछ अधिकारी और ठेकेदार मिल बांटकर पचाते रहेंगे और आम आदमी सुविधाओं से वंचित रहेगा। मेरा मानना है कि मतदाताओं को अपनी समस्याओं के बारे में इस समय उम्मीदवारों के सामने ऐसे मुददे उठाने चाहिए।

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