Date: 16/09/2024, Time:

संस्कृत विद्यालयों की कराई जाए जांच, छात्रों को दी जाए चार गुणा छात्रवृति

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देश में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर हमेशा ही जोर दिया जाता रहा है। परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रीय भाषाओं को भी हिंदी के साथ प्राथमिकता मिल रही है और उनका प्रचलन बोलचाल में बढ़ रहा है। जबकि कई भाषाओं की जननी बताई जाने वाली संस्कृत को जहां तक नजर आता है। अभी उतनी लोकप्रियता समाज में नहीं मिल पा रही है जितनी मिलनी चाहिए। जबकि इस भाषा की शिक्षा देने के लिए चल रहे स्कूल कॉलेज में अनेक प्रकार के घपले होने की खबरें समय समय पर सुनने पढ़ने को मिलती ही रहती है। शायद यही कारण है कि अभी तक संस्कृत नागरिकों की सार्वजनिक बोलचाल की भाषा का रूप नहीं ले पाई है।
बीते दिवस यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जी की अध्यक्षता में कैबिनेट की हुई बैठक में खबर के अनुसार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में प्रदेश के संस्कृत विद्यालयों और महाविद्यालयों के विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति में वृद्धि करने का फैसला लिया गया। यह बढ़ोत्तरी 24 साल बाद की गई है। कैबिनेट ने वर्ष 2001 से लागू वर्तमान छात्रवृति दरों में वृद्धि के प्रस्ताव को मंजूरी दी। स्वीकृति प्रदान की है।
कक्षा छह व सात के छात्रों को भी मिलेगी छात्रवृत्ति माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गुलाब देवी का कहना है कि मंत्रिमंडल ने उनके विभाग से संबंधित इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इसके तहत प्रथमा (कक्षा 6 एवं 7) के लिए 50 रुपये प्रतिमाह और मध्यमा (कक्षा 8) के लिए 75 रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति निर्धारित की गई है। इसके साथ ही पूर्व मध्यमा (कक्षा 9 व 10) के लिए 100 , उत्तर मध्यमा के लिए 150 रुपये, शास्त्री के लिए 200 रुपये एवं आचार्य के लिए 250 रुपये प्रति माह की दर से छात्रवृत्ति दिए जाने के प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया। वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि 517 संस्कृत विद्यालय हैं।
जनसामान्य से इस भारतीय संस्कृति और परंपराओं व इतिहास को बनाए रखने में सक्षम इस भाषा को बढ़ावा देने की आवश्यकता से कोई भी इनकार नहीं कर सकता। मगर यह भी सही है कि इसकी आड़ में जो छात्रों की संख्या ज्यादा बताकर और रखरखाव के नाम पर जो घपलों के बारे में सुनने को मिलता है उसे और इसके शिक्षकों के वेतन पर खर्च होने वाले बजट को ध्यान में रखते हुए सरकार को गोपनीय रूप से जानकारियां प्राप्त कर व्यवस्था को सुधारने की बड़ी आवश्यकता है। प्रदेश के 517 संस्कृत विद्यालयों में जो बच्चे पढ़ रहे हैं उनकों छात्रवृति जो दी जाती है उस पर 24 साल हुई बढ़ोत्तरी मेरा मानना है कि आवश्यकता पूरी करने लायक नहीं है। कक्षा एक से लेकर शास्त्री और आचार्य तक की पेंशन में जो निर्धारित की गई है उसमें चार गुणा बढ़ोत्तरी होनी चाहिए क्येांकि 50 रूपये से लेकर 250 रूपये तक प्रति छात्र छात्रवृति देने का सुझाव है उसमें बदलाव कर 50 रूपये की जगह कम से कम 200 और 250 की जगह 1000 रूपये छात्रवृति दी जाए और इससे जो सरकार पर आर्थिक बोझ पड़े उसकी पूर्ति आए दिन जो भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं उनकी जांच कराई जाए और सुधार कर पूर्ति की जाए।
बताते चलंे कि हिन्दी और संस्कृत की मांग विदेशो में जिस तरह से बढ़ रही और और इसके जानने वालों को पुजारी के रूप में तनख्वाह मिलती है इसके लिए संस्कृत की लोकप्रियता बच्चों मंे आसानी से बढ़ सकती है। इसके लिए प्रचार प्रसार और छात्रों को इसके बारे में विस्तार से बताने की आवश्यकता महसूस की जाती रही है। इसलिए मेरा मानना है कि नागरिकों में होने वाली चर्चा और संस्कृत में बच्चों के उज्जवल भविष्य को देखते हुए मदरसे हो या स्कूल हिंदी मीडियम हो या अंग्र्रेजी सभी में बच्चों को संस्कृत पढ़ाना अनिवार्य हो और समय समय पर शिक्षकों के अलावा संस्कृत के विद्वानों के माध्यम से बच्चों को संस्कृत और हिंदी की सही शिक्षा दी जा रही है या नहीं इसकी परीक्षा और समीक्षा दोनों ही कराई जाए। कई मामलों में संस्कृत आदर्श वाक्य परंपरा और धार्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण हो जाती है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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